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काजरी के पशु चिकित्सक डॉ. सुभाष कछवाहा ने बताया कि इसका पौधा सलाद के काम आने वाले चुकन्दर जैसा ही होता है। लेकिन आकार में बड़ा होता है और इसमें शर्करा की मात्रा कम होती है। विश्व के जिन देशों में व्यावसायिक स्तर पर पशुपालन किया जाता है वहां यह फसल बहुत लोकप्रिय है। नीदरलैंड्स में डेयरी एनिमल्स को यही चारा खिलाया जाता है। फ्रांस, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, बेलारूस आदि देशों में चारे के लिए बहुतायत से उगाई जाती है। उसी तर्ज काजरी ने जोधपुर, पाली, गोटन और मध्यप्रदेश के नीमच में इसका सफल शोध किया है।
READ MORE- राजस्थान बजट 2017: जोधपुर पर आखिर बरस ही गई मेहर, सौगातों से भर दी गई झोली चारे में मिलेंगे प्रोटीन और विटामिन इसमें कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन, खनिज तत्व एवं विटामिन जैसे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में है। इसकी बुवाई नवम्बर में की जाती है व इसके कन्द फरवरी के अन्त से खिलने को तैयार हो जाते हैं। इसकी उपलब्धता जून तक बनी रहती है। इसमें कम पानी की जरूरत होती है और खारे पानी में भी इसकी अच्छी उपज ली जा सकती है। खेत में चारा चुकन्दर के कन्द का औसत वजन 4 किलो है। इस चुकन्दर चारे का स्वाद खट्टा और मीठा होता है।
पशुपालन व्यवसाय में होगा मुनाफा काजरी निदेशक डॉ. ओपी यादव ने खेत में लगी फसल को देखकर इस बारे में किसानों एवं वैज्ञानिकों से बातचीत की है। उनका कहना है कि किसान अगर चारा चुकन्दर फसल की तकनीकी अपनाएं तो पशुओं के लिए गर्मियों में हरे चारे की कमी नहीं रहेगी। इससे पशु तंदुरूस्त रहेंगे। पशुपालन व्यवसाय में पहले से ज्यादा मुनाफा बढेगा। काजरी में इस नई फसल को देखने आ रहे पशुपालक व किसान अपने खेत में इसका उत्पादन करने के लिए काजरी के वैज्ञानिकों से जुडऩा चाहते हैं।
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मवेशियों को 10-15 किलो प्रतिदिन खिलाएं काजरी में इस पर अनुसंधान व परीक्षण हो रहा है, किसानों के खेतों पर भी प्रर्दशन किए जा रहे हैं। गाय, भैंस, घोड़ा जैसे बड़े पशुओं को 10 से 15 किलो प्रति दिन के हिसाब से हरा चारा खिलाया जा सकता है।
-एसपीएस तंवर, प्रधान वैज्ञानिक, काजरी।