1948 में आजाद देश की घोषणा के बाद शुरुआती दशकों में इजराइल और पड़ोसी अरब बहुमत वाले देशों ने कई युद्ध लड़े। फिर 1979 में मिस्र, इजराइल के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला पहला देश बना। शर्तों के मुताबिक इजराइल सिनाई प्रायद्वीप को वापस करने के लिए सहमत हो गया, जिस पर 1973 में कब्जा कर लिया था।
दोनों ही देशों का इजराइल के साथ कोई औपचारिक शांति समझौता नहीं है, लेकिन संबंध अपेक्षाकृत स्थिर हैं। इजराइली एक पासपोर्ट पर मिस्र और जॉर्डन के अलावा मोरक्को और ट्यूनीशिया की यात्रा कर सकते हैं। 1948 से पहले मोरक्को और ट्यूनीशिया सहित कई मध्य-पूर्वी और उत्तरी अफ्रीकी देशों में यहूदी समुदाय मजबूत थे, लेकिन इजराइल की स्थापना और इजराइल में बड़े पैमाने पर प्रवास के बाद हालात बदल गए। बहरहाल मोरक्को और ट्यूनीशियाई मूल के इजराइलियों ने इन देशों में सांस्कृतिक संबंध बनाए रखे और दोनों ही देशों में आना-जाना भी रहा।
फारस की खाड़ी के देश बहरीन ने इजराइल के साथ संबंधों को औपचारिक बनाने के लिए खुलेपन का संकेत दिया है और यूएई के नेतृत्व की प्रशंसा भी। इस मामले में अब तक चुप रहे सुन्नी देशों के प्रमुख खिलाड़ी सऊदी अरब ने शिया बहुल ईरान के खिलाफ गठबंधन तैयार किया था। 2002 मेें फिर सऊदी अरब को शांति पहले के लिए आगे कर दिया गया। जिसने इजराइल को 1967 में कब्जाई फिलीस्तीनी जमीन लौटाने का आह्वान किया है। अब, जबकि सऊदी अरब, इजराइल के साथ निजी तौर पर संबंधों को मजबूत कर रहा है, विश्लेषकों का मत है कि सार्वजनिक ऐलान अभी भी राजनीतिक रूप से जोखिम भरा हो सकता है। सऊदी इस क्षेत्र में इस्लाम के दो सबसे पवित्र शहरों के संरक्षक के रूप में अहम धार्मिक भूमिका निभाता है। दोनों ही रूढि़वादी देश संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब में अभिव्यक्ति की आजादी अत्यधिक प्रतिबंधित है।
लेबनान, सीरिया और इराक सभी के इजराइल के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं है। लेबनान और इजराइल ने कई युद्ध लड़े हैं। वर्ष 2000 में इजराइली सैनिकों की वापसी तक करीब डेढ़ दशक दक्षिणी लेबनान पर इजराइल का कब्जा रहा। दक्षिणी लेबनान स्थित ईरान समर्थित विद्रोही गुट हिजबुल्ला और इजराइल के बीच वर्षों संघर्ष चलता रहा। हालंाकि हिजबुल्ला लेबनान में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल है। इसी तरह सीरिया और इजराइल के बीच भी कई युद्ध हुए। 1967 में इजराइल ने गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया। हालांकि अभी भी कुछ हिस्सों पर सीरिया अवैध रूप से काबिज है। उधर इराक के साथ इजराइल के संबंध तनावपूर्ण हैं। उत्तरी इराक स्थित कुर्दों के साथ इजराइल ने गुपचुप गठबंधन खड़ा किया। हालंाकि दोनों के बीच कोई औपचारिक संबंध नहीं हैं, लेकिन व्यापार और खुफिया साझेदारी बनी हुई है।
1979 की क्रांति से पहले ईरान और इजराइल की सरकारें काफी करीब थीं। ईरानी शाह के तख्तापलट और मौजूदा लोकतांत्रिक सरकार के उदय के बाद सब बदल गया। ईरान में ज्यादातर आबादी शिया मुसलमानों की है। ईरान में अभी भी एक विशाल यहूदी समुदाय है, हालांकि ज्यादातर अमरीका और इजराइल चले गए। दूसरे अरब राज्यों के साथ ईरान के गठबंधन के बाद इजराइल उसे अपने लिए खतरा समझने लगा। उधर तुर्की और इजराइल के बीच घनिष्ठ सैन्य संबंध हैं। हालंाकि हाल के वर्षों में रिश्तों में खटास आ गई है, क्योंकि तुर्की एक प्रमुख क्षेत्रीय भूमिका की तलाश में है। तुर्की ने यूएई के साथ समझौते की भी निंदा की है।