चर्चा का बाजार गर्म
पिछली बार जब वे प्रधानमंत्री बने थे तो यह विचार सामने आया था कि अभी वे नये हैं और इस बार अभी उतने सशक्त और उन्मुक्त नहीं कि वे इतना बड़ा फैसला ले सकें। इस बार ऐसा नहीं है, क्यों कि अब उनके पास अनुभव है और वो अगर कोहिनूर ( Kohinoor) भारत को वापस करने का प्रस्ताव रखें तो यह यूके में बहुत हिम्मत और हौसले का काम होगा और भारत के लिए खुशी और गर्व का मुकाम होगा। यह हीरा कई राजाओं बादशाहों से होते हुए ब्रिटेन पहुंचा है।गैरार्ड ( Gerard) से दोबारा बनवाया
आज कोहिनूर हीरा 1849 से ब्रिटिश ताज के आभूषणों का हिस्सा है और इस पर भारत सहित कई देशों ने दावा किया है, जिन्होंने इसकी वापसी की मांग की है। हीरे का वजन मूल रूप से 191 कैरेट था, लेकिन इसकी रोशनी और चमक को बढ़ाने के लिए 1852 में लंदन के शाही जौहरी गैरार्ड ( Garrard) से दोबारा बनवाया गया था।हिम्मत वाले फैसले की उम्मीद
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एक सामान्य सिद्धांत के रूप में, भारतीय मूल के लोग जो भारत के बाहर महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होते हैं, उन्हें भारत के प्रति सहानुभूति रखने वाले के रूप में देखे जाने का डर होता है। कुछ लोग वास्तव में सार्वजनिक रूप से अपनी भारतीय विरासत को कमतर आंकते हैं। सुनक सशक्त हैं तो उनसे हिम्मत वाले फैसले की उम्मीद की जा रही है।कोहिनूर (Kohinoor )हीरा : एक नजर
भार 105.60 कैरेट (21.6 ग्राम)वर्ण ग्रेट व्हाइट
मूल देश भारत
उद्गम खान गोलकुंडा
वर्तमान मालिक एलिजाबेथ द्वितीय
कोहिनूर हीरा, खूबसूरती खूबी और खासियत
( कोहिनूर का शीशे की नक़्ल जैसे वह दिखाई देता था, उलटा हुआ)स्यमंतक मणि नाम से मशहूर
इसका उद्गम स्पष्ट नहीं है। इतिहास में कई कहानियां हैं । दक्षिण भारत में, हीरों से जुड़ी कई कहानियां रहीं हैं, लेकिन कौन सी इसकी सही है, कहना मुश्किल है। कई स्रोतों के अनुसार, कोहिनूर हीरा, लगभग 5000 वर्ष पहले, मिला था और यह संस्कृत के प्राचीन इतिहास के अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था। हिन्दू कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यह मणि, जाम्वंत से ली थी, जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्री कृष्ण से विवाह भी किया था। एक अन्य कथा के अनुसार, यह हीरा लगभग 3200 ईसा पूर्व नदी की तली में मिला था ।गोलकुंडा की खान का हीरा
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, यह गोलकुंडा की खान से निकला था, जो आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना में), विश्व की सबसे प्राचीन खानों में से एक हैं। सन 1730 तक यह विश्व का एकमात्र हीरा उत्पादक क्षेत्र था। इसके बाद ब्राजील में हीरों की खोज हुई। गोलकुण्डा का हीरा, बहुत ज्यादा सफेद, साफ व उच्च कोटि की पारदर्शिता लिए हुए है। ये अत्यधिक दुर्लभ व बहुत कीमती होते हैं।कोहिनूर मुगलों के पास रहा
कोहिनूर मुगलो के पास 1739 में हुए ईरानी शासक नादिर शाह के आक्रमण तक ही रहा। उसने आगरा व दिल्ली में भयंकर लूटपाट की। वह मयूर सिंहासन सहित कोहिनूर व अगाध सम्पत्ति फारस लूट कर ले गया। इस हीरे को प्राप्त करने पर ही, नादिर शाह के मुख से अचानक निकल पड़ा: कोहे-नूर, जिससे इसे अपना वर्तमान नाम मिला।एक हीरे की कई कहानियां
इतिहास के अनुसार इस हीरे के बारे में, दक्षिण भारतीय कथा, कुछ पुख्ता लगती है। यह सम्भव है, कि हीरा, आंध्र प्रदेश की कोल्लर खान, जो वर्तमान में गुंटूर जिला में है, वहां निकला था। दिल्ली की सल्तनत में खिलजी वंश का अंत 1320 में होने के बाद गयासुद्दीन तुगलक ने गद्दी संभाली थी। उसने अपने पुत्र उलुघ खान को 1323 में काकातीय वंश के राजा प्रतापरुद्र को हराने भेजा था। इस हमले को कड़ी टक्कर मिली, परन्तु उलूघ खान एक बड़ी सेना के साथ फिर लौटा। इसके लिए अनपेक्षित राजा, वारंगल के युद्ध में हार गया। तब वारंगल की लूट-पाट, तोड़-फोड़ व हत्या-काण्ड महीनों चली। सोने-चांदी व हाथी-दांत की बहुतायत मिली, जो हाथियों, घोड़ों व ऊंटों पर दिल्ली ले जाया गया। कोहिनूर हीरा भी उस लूट का भाग था। यहीं से, यह हीरा दिल्ली सल्तनत के उत्तराधिकारियों के हाथों से मुगल सम्राट बाबर के हाथ 1526 में लगा।बाबर ( Babar) के हाथ लगा कोहिनूर
इतिहास के मुताबिक इस हीरे की पहली पक्की टिप्पणी यहीं सन 1526 से मिलती है। बाबर ने अपने बाबरनामा में लिखा है, कि यह हीरा 1294 में मालवा के एक (अनामी) राजा का था। बाबर ने इसका मूल्य यह आंका, कि पूरे संसार को दो दिनों तक पेट भर सके, इतना महंगा हीरा।
बाबर ( Babar )का हीरा ही कोहिनूर ( Kohinoor) कहलाया
बाबरनामा में लिखा है कि किस प्रकार मालवा के राजा को जबरदस्ती यह विरासत अलाउद्दीन खिलजी को देने पर मजबूर किया गया। उसके बाद यह दिल्ली सल्तनत के वारिसों ने आगे बढ़ाया और आखिर सन 1526 में, बाबर की जीत पर उसे प्राप्त हुआ। हालांकि बाबरनामा 1526-30 में लिखा गया था, लेकिन इसके स्रोत ज्ञात नहीं हैं। उसने इस हीरे को सर्वदा इसके वर्तमान नाम से नहीं पुकारा है। बल्कि एक विवाद के बाद यह निष्कर्ष निकला कि बाबर का हीरा ही बाद में कोहिनूर कहलाया।विक्रमादित्य ( Vikramaditya) ने हुमायूं ( Humayun) को दिया
बाबर व हुमायूं, दोनों ने ही अपनी आत्मकथाओं में, बाबर के हीरे के उद्गम के बारे में लिखा है। यह हीरा पहले ग्वालियर के कच्छवाह शासकों के पास था, जिनसे यह तोमर राजाओं के पास पहुंचा। अंतिम तोमर विक्रमादित्य को सिकन्दर लोदी ने हराया व अपने अधीन किया और अपने साथ दिल्ली में ही बंदी बना कर रखा। लोदी की मुगलों से हार के बाद, मुगलों ने उसकी सम्पत्ति लूटी, किन्तु राजकुमार हुमायूं ने मध्यस्थता करके उसकी सम्पत्ति वापस दिलवा दी, बल्कि उसे छुड़वा कर, मेवाड़, चित्तौड़ में पनाह लेने दी। हुमायूं की इस भलाई के बदले विक्रमादित्य ने अपना एक बहुमूल्य हीरा, जो शायद कोहिनूर ही था, हुमायूं को साभार दे दिया, परन्तु हुमायूं का जीवन अति दुर्भाग्यपूर्ण रहा। वह शेरशाह सूरी से हार गया। सूरी भी एक तोप के गोले से जल कर मर गया। उसका पुत्र व उत्तराधिकारी जलाल खान अपने साले द्वारा हत्या को प्राप्त हुआ। उस साले को भी उसके एक मंत्री ने तख्तापलट कर हटा दिया। वह मंत्री भी एक युद्ध को जीतते जीतते आंख में चोट लगने के कारण हार गया और सल्तनत खो बैठा।अकबर ( Akbar) ने अपने पास नहीं रखा
हुमायूं के पुत्र अकबर ने यह रत्न कभी अपने पास नहीं रखा, जो बाद में सीधे शाहजहां के खजाने में ही पहुंचा। शाहजहां भी अपने बेटे औरंगज़ेब के तख्तापलट करने पर बंदी बनाया गया, जिसने अपने अन्य तीन भाइयों की हत्या भी की थी।