scriptUK Elections 2024 : ऋषि सुनक बनें प्रधानमंत्री तो क्या भारत को वापस मिलेगा कोहिनूर हीरा ? | UK Elections 2024: If Rishi Sunak becomes the Prime Minister, will India get the Kohinoor diamond back? | Patrika News
विदेश

UK Elections 2024 : ऋषि सुनक बनें प्रधानमंत्री तो क्या भारत को वापस मिलेगा कोहिनूर हीरा ?

2024 United Kingdom elections : ​ब्रिटेन में आम चुनाव नजदीक हैं और चुनावी सरगर्मियां जोरों पर हैं। ऋषि सुनक (Rishi Sunak) के फिर से ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने पर क्या ब्रिटेन से भारत को भारत का खूबसूरत और कीमती कोहिूनर ( Kohinoor) हीरा वापस मिल सकता है? भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में यह बहस चर्चा का विषय है। सुनक के पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर भी यह बात उठी थी और अब वही चर्चा दुबारा हो रही है।

नई दिल्लीMay 28, 2024 / 05:32 pm

M I Zahir

Kohinoor Daimond in UK

Kohinoor Daimond in UK

UK Elections 2024 : ​ब्रिटेन में जैसे-जैसे आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे यह बात जोर पकड़ रही है कि क्या भारतवंशी ऋषि सुनक ( Rishi Sunak) दुबारा प्रधानमंत्री बनेंगे? इस बार सुनक के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत का खूबसूरत और शानदार कोहिनूर हीरे के भारत लौटने की संभावना है या नहीं,यह बात चर्चा का विषय है।

चर्चा का बाजार गर्म

पिछली बार जब वे प्रधानमंत्री बने थे तो यह विचार सामने आया था कि अभी वे नये हैं और इस बार अभी उतने सशक्त और उन्मुक्त नहीं कि वे इतना बड़ा फैसला ले सकें। इस बार ऐसा नहीं है, क्यों कि अब उनके पास अनुभव है और वो अगर कोहिनूर ( Kohinoor) भारत को वापस करने का प्रस्ताव रखें तो यह यूके में बहुत हिम्मत और हौसले का काम होगा और भारत के लिए खुशी और गर्व का मुकाम होगा। यह हीरा कई राजाओं बादशाहों से होते हुए ब्रिटेन पहुंचा है।

गैरार्ड ( Gerard) से दोबारा बनवाया

आज कोहिनूर हीरा 1849 से ब्रिटिश ताज के आभूषणों का हिस्सा है और इस पर भारत सहित कई देशों ने दावा किया है, जिन्होंने इसकी वापसी की मांग की है। हीरे का वजन मूल रूप से 191 कैरेट था, लेकिन इसकी रोशनी और चमक को बढ़ाने के लिए 1852 में लंदन के शाही जौहरी गैरार्ड ( Garrard) से दोबारा बनवाया गया था।

हिम्मत वाले फैसले की उम्मीद

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एक सामान्य सिद्धांत के रूप में, भारतीय मूल के लोग जो भारत के बाहर महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होते हैं, उन्हें भारत के प्रति सहानुभूति रखने वाले के रूप में देखे जाने का डर होता है। कुछ लोग वास्तव में सार्वजनिक रूप से अपनी भारतीय विरासत को कमतर आंकते हैं। सुनक सशक्त हैं तो उनसे हिम्मत वाले फैसले की उम्मीद की जा रही है।

कोहिनूर (Kohinoor )हीरा : एक नजर

भार 105.60 कैरेट (21.6 ग्राम)
वर्ण ग्रेट व्हाइट
मूल देश भारत
उद्गम खान गोलकुंडा
वर्तमान मालिक एलिजाबेथ द्वितीय

कोहिनूर हीरा, खूबसूरती खूबी और खासियत

( कोहिनूर का शीशे की नक़्ल जैसे वह दिखाई देता था, उलटा हुआ)
कोहिनूर या कोहे नूर (ईरानी फ़ारसी: कूह-ए-नूर) एक 105 कैरेट ( 21.6 ग्राम) का हीरा है, जो किसी समय दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा रह चुका है। कहा जाता है कि यह हीरा भारत में आंध्रप्रदेश (और अब तेलंगाना) के गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। ‘कोहिनूर’ का अर्थ है- आभा या रोशनी का पर्वत (नूर का कोह)। यह कई मुग़ल व फ़ारसी शासकों से होता हुआ, अंततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया व उनके ख़ज़ाने में शामिल हो गया, जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को 1877 में भारत की सम्राज्ञी घोषित किया।

स्यमंतक मणि नाम से मशहूर

इसका उद्गम स्पष्ट नहीं है। इतिहास में कई कहानियां हैं । दक्षिण भारत में, हीरों से जुड़ी कई कहानियां रहीं हैं, लेकिन कौन सी इसकी सही है, कहना मुश्किल है। कई स्रोतों के अनुसार, कोहिनूर हीरा, लगभग 5000 वर्ष पहले, मिला था और यह संस्कृत के प्राचीन इतिहास के अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था। हिन्दू कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यह मणि, जाम्वंत से ली थी, जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्री कृष्ण से विवाह भी किया था। एक अन्य कथा के अनुसार, यह हीरा लगभग 3200 ईसा पूर्व नदी की तली में मिला था ।

गोलकुंडा की खान का हीरा

ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, यह गोलकुंडा की खान से निकला था, जो आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना में), विश्व की सबसे प्राचीन खानों में से एक हैं। सन 1730 तक यह विश्व का एकमात्र हीरा उत्पादक क्षेत्र था। इसके बाद ब्राजील में हीरों की खोज हुई। गोलकुण्डा का हीरा, बहुत ज्यादा सफेद, साफ व उच्च कोटि की पारदर्शिता लिए हुए है। ये अत्यधिक दुर्लभ व बहुत कीमती होते हैं।

कोहिनूर मुगलों के पास रहा

कोहिनूर मुगलो के पास 1739 में हुए ईरानी शासक नादिर शाह के आक्रमण तक ही रहा। उसने आगरा व दिल्ली में भयंकर लूटपाट की। वह मयूर सिंहासन सहित कोहिनूर व अगाध सम्पत्ति फारस लूट कर ले गया। इस हीरे को प्राप्त करने पर ही, नादिर शाह के मुख से अचानक निकल पड़ा: कोहे-नूर, जिससे इसे अपना वर्तमान नाम मिला।

एक हीरे की कई कहानियां

इतिहास के अनुसार इस हीरे के बारे में, दक्षिण भारतीय कथा, कुछ पुख्ता लगती है। यह सम्भव है, कि हीरा, आंध्र प्रदेश की कोल्लर खान, जो वर्तमान में गुंटूर जिला में है, वहां निकला था। दिल्ली की सल्तनत में खिलजी वंश का अंत 1320 में होने के बाद गयासुद्दीन तुगलक ने गद्दी संभाली थी। उसने अपने पुत्र उलुघ खान को 1323 में काकातीय वंश के राजा प्रतापरुद्र को हराने भेजा था। इस हमले को कड़ी टक्कर मिली, परन्तु उलूघ खान एक बड़ी सेना के साथ फिर लौटा। इसके लिए अनपेक्षित राजा, वारंगल के युद्ध में हार गया। तब वारंगल की लूट-पाट, तोड़-फोड़ व हत्या-काण्ड महीनों चली। सोने-चांदी व हाथी-दांत की बहुतायत मिली, जो हाथियों, घोड़ों व ऊंटों पर दिल्ली ले जाया गया। कोहिनूर हीरा भी उस लूट का भाग था। यहीं से, यह हीरा दिल्ली सल्तनत के उत्तराधिकारियों के हाथों से मुगल सम्राट बाबर के हाथ 1526 में लगा।

बाबर ( Babar) के हाथ लगा कोहिनूर


इतिहास के मुताबिक इस हीरे की पहली पक्की टिप्पणी यहीं सन 1526 से मिलती है। बाबर ने अपने बाबरनामा में लिखा है, कि यह हीरा 1294 में मालवा के एक (अनामी) राजा का था। बाबर ने इसका मूल्य यह आंका, कि पूरे संसार को दो दिनों तक पेट भर सके, इतना महंगा हीरा।

बाबर ( Babar )का हीरा ही कोहिनूर ( Kohinoor) कहलाया

बाबरनामा में लिखा है कि किस प्रकार मालवा के राजा को जबरदस्ती यह विरासत अलाउद्दीन खिलजी को देने पर मजबूर किया गया। उसके बाद यह दिल्ली सल्तनत के वारिसों ने आगे बढ़ाया और आखिर सन 1526 में, बाबर की जीत पर उसे प्राप्त हुआ। हालांकि बाबरनामा 1526-30 में लिखा गया था, लेकिन इसके स्रोत ज्ञात नहीं हैं। उसने इस हीरे को सर्वदा इसके वर्तमान नाम से नहीं पुकारा है। बल्कि एक विवाद के बाद यह निष्कर्ष निकला कि बाबर का हीरा ही बाद में कोहिनूर कहलाया।

विक्रमादित्य ( Vikramaditya) ने हुमायूं ( Humayun) को दिया

बाबर व हुमायूं, दोनों ने ही अपनी आत्मकथाओं में, बाबर के हीरे के उद्गम के बारे में लिखा है। यह हीरा पहले ग्वालियर के कच्छवाह शासकों के पास था, जिनसे यह तोमर राजाओं के पास पहुंचा। अंतिम तोमर विक्रमादित्य को सिकन्दर लोदी ने हराया व अपने अधीन किया और अपने साथ दिल्ली में ही बंदी बना कर रखा। लोदी की मुगलों से हार के बाद, मुगलों ने उसकी सम्पत्ति लूटी, किन्तु राजकुमार हुमायूं ने मध्यस्थता करके उसकी सम्पत्ति वापस दिलवा दी, बल्कि उसे छुड़वा कर, मेवाड़, चित्तौड़ में पनाह लेने दी। हुमायूं की इस भलाई के बदले विक्रमादित्य ने अपना एक बहुमूल्य हीरा, जो शायद कोहिनूर ही था, हुमायूं को साभार दे दिया, परन्तु हुमायूं का जीवन अति दुर्भाग्यपूर्ण रहा। वह शेरशाह सूरी से हार गया। सूरी भी एक तोप के गोले से जल कर मर गया। उसका पुत्र व उत्तराधिकारी जलाल खान अपने साले द्वारा हत्या को प्राप्त हुआ। उस साले को भी उसके एक मंत्री ने तख्तापलट कर हटा दिया। वह मंत्री भी एक युद्ध को जीतते जीतते आंख में चोट लगने के कारण हार गया और सल्तनत खो बैठा।

अकबर ( Akbar) ने अपने पास नहीं रखा


हुमायूं के पुत्र अकबर ने यह रत्न कभी अपने पास नहीं रखा, जो बाद में सीधे शाहजहां के खजाने में ही पहुंचा। शाहजहां भी अपने बेटे औरंगज़ेब के तख्तापलट करने पर बंदी बनाया गया, जिसने अपने अन्य तीन भाइयों की हत्या भी की थी।


कोहिनूर एकमात्र हीरा नहीं

इसके अलावा, भारत के कई प्रसिद्ध हीरे – कोहिनूर एकमात्र नहीं है – लेन-देन के माध्यम से बाहर आए हैं, चाहे वे कितने भी संदिग्ध क्यों न हों। यहां कुछ बेहतर ज्ञात बाउबल्स का संक्षिप्त इतिहास दिया गया है। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक, भारतीय उप महाद्वीप दुनिया में हीरे का एकमात्र ज्ञात स्रोत था। प्रसिद्ध गोलकुंडा इंडियन एल डोरैडो था, एक प्रसिद्ध चौकी जिसकी सड़कें, ऐसा कहा जा सकता है, कीमती पत्थरों से पक्की थीं। दरअसल, आज भी अगर आप दुनिया के सबसे बड़े और सबसे मशहूर हीरों को देखें तो उनमें से कई भारतीय मूल के हैं।

सबसे बड़ा बाउबल रीजेंट

यहां लंबे समय तक दुनिया का सबसे बड़ा बाउबल रीजेंट है, जिसे 18वीं शताब्दी में गोलकुंडा के पास एक ‘गुलाम’ की ओर से खोजने पर इसका वजन 410 कैरेट से अधिक था। बाद में इसका स्वामित्व ब्रिटिश प्रधान मंत्री विलियम पिट के पास था, जिन्होंने इसे फ्रांस के रीजेंट (इसलिए द रीजेंट) ड्यूक ऑफ ऑरलियन्स को बेच दिया था। लुई XV ने इसे अपने राज्याभिषेक के समय पहना था और यह मैरी एंटोनेट की टोपी की शोभा बढ़ा रहा था। फ्रांसीसी क्रांति के बाद, इसका स्वामित्व नेपोलियन के पास था जिसने इसे अपनी तलवार की मूठ पर स्थापित किया था। यह अब लौवर में प्रदर्शन पर है।

ब्लू होप, ‘बड़े’ हीरों में छोटा

फिर ब्लू होप है, जो ‘बड़े’ हीरों में छोटा है, लेकिन रहस्य के कारण इसके कुछ ही समकक्ष हैं। ऐसा माना जाता है कि 44 कैरेट का यह पत्थर एक श्राप लेकर आता है। इसके कई मालिक दुःख में मर चुके हैं। यह कभी लुई XIV के स्वामित्व में था। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान चोरी हो गई, यह 1830 में फिर से दिखाई दी और इसे लंदन के हेनरी फिलिप होप (इसलिए होप डायमंड) ने खरीदा, और बाद में न्यूयॉर्क के हैरी विंस्टन ने इसे वाशिंगटन में स्मिथसोनियन संग्रहालय को दान कर दिया, जहां यह अब स्थित है।

स्टार ऑफ द ईस्ट ( Star of the East)

अहमदाबाद में हीरा है, जिसे बाद में स्टार ऑफ द ईस्ट के नाम से जाना गया। इस 94.80 कैरेट के नाशपाती के आकार के पत्थर का इतिहास सत्रहवीं शताब्दी के मध्य में शुरू होता है, जब फ्रांसीसी रत्न व्यापारी टैवर्नियर ने भारत में अपनी यात्रा के दौरान इसे 157 कैरेट का कच्चा खरीदा था। यह ओटोमन साम्राज्य के सुल्तान अब्दुल हामिद द्वितीय के कब्जे में था, जिसे भारतीय कुलीनों ने पुनः प्राप्त कर लिया था और 1908 में बड़ौदा के गायकवाड़ों के स्वामित्व में था, इससे पहले कि यह फिर से पश्चिम की ओर बढ़ता, कुछ अमरीकी नवअमीरों ने छीन लिया गया था।

हीरों की कहानियां

कई अन्य पत्थर हैं जो भारत से उत्पन्न हुए हैं – महान मुगल, निज़ाम, ऑरलॉफ़, ड्रेसडेन, नासाक व आदि प्रत्येक के पास जुनून, साज़िश, धोखे और प्रसिद्ध पत्थरों के लिए जिम्मेदार सामान्य घेरा की अपनी कहानी है, लेकिन कुछ हीरों में कोह-ए-नूर जैसी आभा और रहस्य है, जो ब्रिटिश सम्राट के ताज को सुशोभित करता है, और भारतीयों की मांग है कि महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद इसे भारत को वापस कर दिया जाए।

तो हम उन्हें वापस दे देंगे

इसे वापस लेने के लिए प्रारंभिक आंदोलन इतिहास में एक दिलचस्प समय पर आता है, जब कुछ पूर्व औपनिवेशिक शक्तियों ने अपने पूर्ववर्तियों की क्रूर लूट को मान्यता दी है और जिसे वे चुराए गए खजाने के रूप में स्वीकार करते हैं उसे वापस करने का वचन दिया है। इस संबंध में अग्रणी नीदरलैंड है, जिसके संस्कृति मंत्री ने हाल ही में कहा था कि “चोरी के माध्यम से हासिल की गई सांस्कृतिक विरासत वस्तुओं के लिए डच राज्य संग्रह में कोई जगह नहीं है” और “यदि कोई देश उन्हें वापस चाहता है, तो हम उन्हें वापस दे देंगे… यहां तक ​​कि अगर इसका मतलब हमारे अतीत में हुए अन्यायों के साथ एक दर्दनाक टकराव है।”

चुराए गए खजाने

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने भी कुछ साल पहले कहा था कि “अफ्रीकी सांस्कृतिक विरासत अब यूरोपीय संग्रहालयों की कैदी बनकर नहीं रह सकती।” यहां तक ​​कि संयुक्त राज्य अमेरिका – उपनिवेशवाद का पीड़ित और अपराधी दोनों – मिस्र, इराक, कंबोडिया और भारत सहित अन्य देशों में चुराए गए खजाने और प्राचीन वस्तुओं को वापस करने के लिए सख्ती से काम कर रहा है।

ऋषि सुनक ( Rishi Sunak) ऐसा कर पाएंगे या नहीं ?

बहरहाल लोगों में चर्चा है कि क्या भातर का पूरा ख़ज़ाना कभी पूरा लौटाया जाएगा? अंग्रेजों ने भारत से अनुमानित $45 ट्रिलियन डॉलर हड़प लिए, जो ब्रिटेन की वर्तमान जीडीपी का 20 गुना है। क्षतिपूर्ति या क्षतिपूर्ति का कोई भी रास्ता इसे तोड़ कर रख देगा। यदि ऐसा कभी हुआ तो कोहिनूर लौटाना एक प्रतीकात्मक संकेत होगा। भारतवंशी ऋषि सुनक ऐसा कर पाएंगे या नहीं । यदि ऐसा होता है, तो इसे ब्रिटिश राजशाही से लाना होगा।

Hindi News/ world / UK Elections 2024 : ऋषि सुनक बनें प्रधानमंत्री तो क्या भारत को वापस मिलेगा कोहिनूर हीरा ?

ट्रेंडिंग वीडियो