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Middle East : तुर्की इसलिए मध्य-पूर्व के देशों से अलग-थलग पड़ा

-2011 के अरब स्प्रिंग यानी अरब क्रांति (arab spring) के बाद तुर्की (turkey middle east) के राष्ट्रपति एर्दोगन (Recep Tayyip Erdoğan) ने मिस्र (egypt) में सत्ता प्राप्ति के लिए मुस्लिम ब्रदरहुड (muslim brotherhood in egypt) का समर्थन किया और राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी (mohamed morsi) की सहायता की थी।

Jan 21, 2020 / 06:22 pm

pushpesh

तुर्की इसलिए मध्य-पूर्व के दशों से अलग-थलग पड़ा

रेसप तैयप एर्दोगन

जयपुर.

मध्य-पूर्व के देशों में तेल और व्यापारिक विवाद के चलते गतिरोध कोई नई बात नहीं है। कभी सशक्त मुस्लिम राष्ट्र रहा तुर्की अपने पड़ोसी देशों से अलग-थलग पड़ता जा रहा है। जनरल अब्देल फतह अल सिसी के सैन्य तख्तापलट की आलोचना और मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करने से मिस्र नाराज था तो असद विरोधी विद्रोहियों की मदद करने से सीरिया भी तुर्की का दुश्मन बन गया। कतर के खिलाफ गुटबंदी का विरोध करने पर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भी तुर्की के खिलाफ हो गए। अब तुर्की, लीबिया की सरकार को प्रत्यक्ष सैन्य सहायता दे रहा है, जबकि रूस के साथ संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र जनरल खलीफा हफ्टार (लीबिया) की विद्रोही सेना के साथ हैं।
Middle East : क्या एक और ‘अरब स्प्रिंग’ की तरफ बढ़ रहा है मध्य-पूर्व

तुर्की और रूस की कोशिशों के बावजूद संघर्ष विराम विफल रहने के बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेसप तैयप एर्दोगन ने हफ्टार को सबक सिखाने की ठानी है। कुल मिलाकर तुर्की की विदेश नीति अपने पड़ोसियों की समस्या बढ़ा रही है, जिससे वह खुद भी अलग-थलग पड़ गया। मिस्र में सत्ता परिवर्तन लीबिया में तुर्की के हस्तक्षेप को समझने की कड़ी है। 2011 के अरब स्प्रिंग के बाद एर्दोगन ने मिस्र में सत्ता प्राप्ति के लिए मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन किया और राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी की सहायता की। 2011 में जब मुर्सी को सेना ने सत्ता से उखाड़ दिया तो एर्दोगन ने इसे आतंकवाद की संज्ञा दी थी। वह लीबिया की घटनाओं को मिस्र से जोडकऱ देख रहा है। तुर्की के लीबिया से घनिष्ठ संबंध हैं, जहां देश के बाहर रहने वाले तुर्कों की 25 फीसदी आबादी रहती है। दोनों देशों के बीच आर्थिक व्यापार भी अच्छा है।
यह कैसे हुआ
दस वर्षों में तुर्की एक मजबूत इस्लामी लोकतंत्र से दमनकारी राज्य में तब्दील हो गया। मध्य-पूर्व में ज्यादातर सरकारें मुस्लिम आबादी वाले दमनकारी सत्तावादी राज्य बन गए। इसका जवाब ये है कि एर्दोगन ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में इस्लाम को बढ़ाने की मंशा रखी। इस अभियान में कतर ने उसका साथ दिया, जिसके चलते सऊदी अरब, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात उसके विरोधी बन गए।

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