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तीर्थ यात्रा

इस वटवृक्ष के नीचे ही भगवान कृष्ण ने दिखाया था विराट रूप, दिया था गीता ज्ञान

महाभारत में वर्णित है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में ज्योतिसर तीर्थ में अक्षय वटवृक्ष के नीचे भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था

Aug 24, 2016 / 12:25 pm

सुनील शर्मा

jyotisar akshay vatvriksh kurukshetra

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महाभारत में वर्णित है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। जिस जगह यह ज्ञान दिया गया था उस जगह को ज्योतिसर कहा जाता है। यहां एक वटवृक्ष भी है इसी अक्षय वट वृक्ष के नीचे करीब पांच हजार वर्ष पहले कौरवों और पांडवों की सेनाओं के बीच खड़े पीतांबरधारी श्रीकृष्ण ने सारथी के रूप में अर्जुन को दिव्य नेत्र देकर अपने चतुर्भुज और विराट स्वरूप के दर्शन करवाए थे। इस वटवृक्ष को महाभारत युद्ध का साक्षी मान कर इसके आगे भक्त तथा श्रद्धालु शीश नवाते हैं। आइए जानते हैं इस जगह से जुड़ी ऐसी ही कुछ बातें…

इसलिए इस जगह को कहते हैं ‘ज्योतिसर’
ज्योति सर यानी ज्ञान का सरोवर, यहां गीता ज्ञान देने के कारण ही इस स्थल को ज्योतिसर कहा जाता है। यह पवित्र तीर्थ स्थान पौराणिक सरस्वती नदी के किनारे पर है। हालांकि नदी अब लुप्त हो चुकी है। प्राचीन समय में यहां के शिव मंदिर भी हुआ करता था अतः कुछ लोग इसे ज्योतिश्वर महादेव भी कहते हैं। यहां के अक्षय वटवृक्ष की शाखाएं भी पहले काफी दूर तक फैली हुई थी जिन्हें काट दिया गया और अब यह कई भागों में है लेकिन अपने मूल स्थान पर भी कायम है।



गीता के श्लोकों से सजी हैं मंदिर की दीवारें
ज्योतिसर तालाब के किनारे पर मंदिरों की एक पूरी श्रृंखला है। इन मंदिरों में भगवान कृष्ण का विराटस्वरूपधारी मंदिर तथा शुक्राचार्य मंदिर सर्वप्रमुख है। मंदिर की दीवारों पर भी गीता के श्लोक उकेरे गए हैं। वर्ष 1967 में अक्षय वटवृक्ष के निकट कृष्ण-अर्जुन रथ का निर्माण किया गया। दसवीं सदी में आदि शंकराचार्य भी यहां पर तपस्या के लिए आए थे।

महाभारत की कथाओं का लाइट एंड साउंड शो

ज्योतिसर तीर्थ के बगीचे के खुले भाग में सरकार द्वारा रात को लाइट एंड साउंड शो का आयोजन किया जाता है। इस शो में पर्यटक तथा श्रद्धालुओं को महाभारत की प्रमुख घटनाओं के बारे में बताया जाता है। इस शो में महाभारत के युद्ध का माहौल रच कर इन कथाओं का जीवंत वर्णन किया जाता है।



ऐसे पहुंचे ज्योतिसर तीर्थ
ज्योतिसर तीर्थ दिल्ली से लगभग 170 किलोमीटर दूर है। यहां बस, ट्रेन अथवा प्राइवेट गाड़ी से पहुंचा जा सकता है। बड़ा तीर्थस्थल होने की वजह से यहां पर काफी होटल तथा धर्मशालाएं भी हैं।

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