आजकल हर किसी के हाथ डीजिटल कैमरा नही बल्कि मोबाईल दिखाई देता है, हाई टैक मोबाईल आने के बाद शुरु हुआ फैशन सेल्फी लेने का। और अब यह केवल फैशन नही लोगो के लिए पैशन बन गया है। लेकिन सेल्फी लेने का यह जुनून शार्क हमलों से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है और लोगो की जान ले रहा है।
सेल्फी लेने में होती है ज्यादा मौतेंज्यादा से ज्यादा लाईक्स पाने के लिए सोशल मीडिया पर आकर्षक सेल्फी लगाने का चलन जोर पकड़ रहा है। जितनी आकर्षक सेल्फी होगी उतने ही ‘लाइक्स’ आएंगे। लेकिन सेल्फी के दीवाने अब ज्यादा से ज्यादा लाइक्स बटोरने की होड़ में कोई भी जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं। वेबसाइट ‘माशेबल’ पर जारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2015 में, दुनियाभर में सेल्फी की वजह से होने वाली मौतें, शार्क के हमलों से होने वाली मौतों से अधिक हैं। जिनमें सबसे ज्यादा मौतों का कारण सेल्फी लेते वक्त ऊंचाई से गिरना और चलते वाहन से टकराना है।
जान पर भारी पड़ी सेल्फीबढ़ती हुई मौत के इस सिलसिले के प्रति लोगो को जागरुक करने के लिए एक रूसी ने जोखिमभरी सेल्फी लेने से आगाह करते हुए जुलाई 2015 में ‘सेफ सेल्फी’ नाम से देशभर में एक अभियान की शुरुआत की थी.
एक ‘परफेक्ट’ सेल्फी खींचने की कोशिश में लोग किसी भी तरीके का जोखिम उठाने से भी नही डरते। जिनमें बाघ, चीते, हाथी, मैकाक के साथ सेल्फी, ऊंची एवं खतरनाक पहाड़ी चोटियों पर सेल्फी, समुद्र में सेल्फी, रेल के पुलों और यहां तक कि शार्क के साथ सेल्फी लेना भी शामिल है।
सेल्फी क्रेज के कारण दुर्घटनाओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। भारत समेत दुनियाभर में सेल्फी के चक्कर में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। नागपुर से लगभग 20 किलोमीटर दूर कुही की एक झील में नाव पर सवार छात्रों के एक समूह द्वारा सेल्फी लेने के दौरान नाव संतुलन बिगड़ने से डूब गई। जिनमें सारे छात्र मारे गए।
रूस में एक किशोर ने रेलवे पुल के ऊपर सेल्फी लेने की सोची, इस दौरान उसका पैर फिसला और वह नीचे जा गिरा, जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गई. अमेरिका के कैलिफोर्निया में एक महिला ने कुछ अलग हटकर करना चाहा तो बंदूक के साथ सेल्फी खींचने की कश्मकश में बंदूक का ट्रिगर ही दब गया और उसे सेल्फी की कीमत अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी।
सिंगापुर में तो एक शख्स पहाड़ की चोटी पर सेल्फी खींचने में मगन था और अचानक उसका पैर फिसल गया और वह नीचे जा गिरा। इसी तरह से बुल्गारिया में बुल रन के दौरान सांडों के साथ सेल्फी खींचना भारी पड़ा और उसे उसका खामियाजा अपनी जान गवांकर भरना पड़ा। वही भारत में ताजमहल के सामने एक जापानी पर्यटक के सेल्फी खींचने की घटना को कोई भूल नही सकता, जिसमें सेल्फी खींचने के दौरान जापानी युवक सीढ़ियों से नीचे गिर गया था और बाद में अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया था।
एक परफेक्ट सेल्फी में जान गवांने वाली घटनाए और भी कई है जो लोगो को यह बता सकती है कि उनका यह जुनून उन्हे अपनी जान पर भारी पड़ सकता है।
दिल्ली के पीतमपुरा स्थित साइकोसिस ट्रीटमेंट सेंटर के मनोचिकित्सक अनूप लाघी कहते हैं, “दुनिया के हर कोने में हर रोज, हर मिनट सेल्फी ली जा रही है। सेल्फी के लिए कुछ भी कर गुजरना एक तरह के मनोरोग को भी दर्शाता है, जिसमें भीड़ से हटकर अलग दिखने की चाह में लोग कोई भी खतरा उठाने के लिए तैयार हैं।”
वर्ष 2013 में आस्ट्रेलिया में ‘माशेबल’ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, 18-35 आयुवर्ग की दो-तिहाई से अधिक महिलाएं सेल्फी का इस्तेमाल फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपलोड करने में करती हैं.
लाघी कहते हैं कि यह मानव का स्वभाव है कि वह नई-नई चीजों के इस्तेमाल का आदी हो जाता है और इसके अत्यधिक उपयोग से त्रस्त होने में भी उसे समय नहीं लगता तो जाने-अनजाने आगे चलकर एक तरह के मनोविकार का रूप ले लेता है, जिसका परिणाम कुछ भी हो सकता है. इससे निपटने के लिए उसे संयम की सख्त जरुरत है।
2005 में शुरु हुआ था सेल्फी का चलनसेल्फी की शुरुआती दौर की बात की जाए तो फोटोग्राफर जिम क्रॉस ने साल 2005 में पहली बार सेल्फी शब्द का इस्तेमाल किया था। लेकिन इस शब्द को मान्यता मिली 2012 में। यह मान्यता इस शब्द को एक पत्रिका ने शीर्ष 10 शब्दों में स्थान दिया, उसके बाद मिली।
सेल्फी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 2013 में ऑक्सफोर्ड इंग्लिश शब्दकोश के ऑनलाइन वर्जन में भी इसे शामिल कर लिया गया। इतना ही नही इसी साल सेल्फी को 2013 का ‘वर्ड ऑफ द ईयर’ भी घोषित किया गया.
आॅटोग्राफ युग को किया खत्मसेल्फी के बढ़ते क्रेज ने पुराने जमाने से चले आ रहे आॅटोग्राफ के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है या ये आॅटोग्राफ शब्द को खत्म सा ही कर दिया है। इस बारे में आस्ट्रेलियन क्रिकेटर शेन वार्न ने भी बयान दे डाला था कि सेल्फी ने ऑटोग्राफ के युग का अंत कर दिया है।