एडीएफ के सचिव व वरिष्ठ अधिवक्ता के0सी0 जैन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की गयी इस याचिका में यह बात रखी गयी है कि सेन्ट्रल एमपॉवर्ड कमेटी (सीईसी) की सिफारिशों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट योजनाओं में आने वाले वृक्षों को काटने की अनुमति प्रदान करता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से अनुमति की प्रक्रिया में लम्बा समय लग जाता है, जिससे योजनाओं के कार्यान्वयन में विलम्ब होता है व योजनाओं की लागत में भी वृद्धि होती है, जबकि जनहित की ये योजनाएं जल्द से जल्द पूरी होनी चाहिए। अनेक विभाग सुप्रीम कोर्ट में पेड़ काटने की अनुमति के लिये आवेदन पत्र लगाते रहते हैं। पिछली बार 31 जुलाई, 2019 को ही जब एम0सी0 मेहता का प्रकरण सुप्रीम कोर्ट के सामने लगा था, उस समय विभिन्न विभागों के पेड़ काटने की अनुमति के लिये 7 आवेदन पत्र सुनवाई हेतु थे लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो सकी। याचिका में यह भी कहा है कि जिन शर्तों पर सुप्रीम कोर्ट पेड़ काटने की अनुमति प्रदान करता है, वे सभी विभागों के लिये प्रायः समान होती हैं और ऐसी शर्तों को सुप्रीम कोर्ट एस0ओ0पी0 का हिस्सा बना सकता है।
पेड़ काटने पर सहानुभूतिपूर्वक विचार हो
याचिका में यह बात भी रखी गयी है कि टी0टी0जेड में 9 अगस्त 2019 को 1,16,56,105 पौधे लगाये गये जो अपने आप में एक कीर्तिमान था। ऐसी स्थिति में जनहित की योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये यदि वृक्षों को काटने की अनुमति की वास्तव में आवश्यकता होती है तो उसके लिये सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाना चाहिये क्योंकि पर्यावरण एवं विकास दोनों को ही साथ-साथ चलने चाहिये। टीटीजेड में आगरा, मथुरा, हाथरस, फिरोजाबाद और भरतपुर (राजस्थान) जिले आते हैं।
सक्षम प्राधिकारी नियुक्त किया जाए
याचिका में यह भी बात रखी गयी कि जहां तक सम्भव हो, पुराने वृक्षों को काटने की जगह ट्रान्स लोकेट करना चाहिये और सरकारी विभागों का यह भी प्रयास होना चाहिये कि वृक्षों को काटना आखिरी विकल्प हो। यदि वृक्षों को काटे बिना काम चल सकता है तो वृक्ष नहीं काटे जाने चाहिये। आवेदन पत्र में सेन्ट्रल एमपॉवर्ड कमेटी को सरकारी योजनाओं के लिये वृक्ष काटने की अनुमति प्रदान करने हेतु सक्षम प्राधिकारी नियुक्त करने का सुझाव भी दिया है।
पर्यावरण भी सुरक्षित रहे
सचिव जैन द्वारा यह बात कही गयी कि पूर्व में फतेहाबाद रोड पर पेड़ काटने की अनुमति का आवेदन पत्र पीडबल्यूडी विभाग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लगाया गया था, जिसके क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने 10 वर्ष के बाद यह अनुमति प्रदान की। इसी प्रकार गंगाजल परियोजना में भी पेड़ों के काटने की अनुमति मिलने में देरी हुई, जिससे योजना में विलम्ब हुआ। यदि ए0डी0एफ0 की याचिका स्वीकार कर ली जाये तो टी0टी0जेड में सरकारी योजनाओं के लिये वृक्षों के काटने की अनुमति हेतु सुप्रीम कोर्ट में आवेदन लगाने की औपचारिकता से बचा जा सकता है। ए0डी0एफ0 अध्यक्ष पूरन डावर का कहना है कि टी0टी0जेड के विकास के लिये इस प्रकार की प्रक्रियायें बननी चाहिये कि बिना देरी हुए विकास की योजनायें कार्यान्वित हों और पर्यावरण का हित भी सुरक्षित रहे।