यह भी पढ़ें ‘मुसलमानों को सही दिशा दिखाने के लिए ऑल इण्डिया शरिया बोर्ड का होगा गठन’ लगभग 50 फीसदी मुस्लिम थे तवारीख-ए-आगरा पुस्तक के लेखक राजकिशोर राजे ने बताया कि धर्म आधारित जनगणना में 44,021 मुस्लिम, 1723 ईसाई और 3906 अन्य लोग थे। उस समय करीब 50 फीसदी मुस्लिम थे। वे बताते हैं कि धर्म आधारित जनगणना के पीछे अंग्रेजों का निहितार्थ छिपा हुआ था। वे यह पता लगाना चाहते थे कि किस धर्म के लोगों को अपने पक्ष में किया जा सकता है।
यह भी पढ़ें 13 दिन की दुल्हन ने उठाया ऐसा कदम कि देख कर पति हो गया बेहोश 1881 की जनगणना इससे पहले 1881 में आगरा की सामान्य जनगणना कराई गई। उस समय आगरा की कुल आबादी 2,91,044 थी। इसमें मात्र 21,409 लोग साक्षर थे। इससे साफ है कि पढ़ने लिखने के प्रति लोगों का रुझान नहीं था। उनका जीवन तो परिवार के पालन-पोषण में ही निकल जाता था। तब यह माना जाता था कि पढ़ना-लिखना अमीरों का काम है। पढ़े-लिखे व्यक्ति को हैरत की नजर से देखा जाता था। जो पढ़ जाता था, उसे अंग्रेज अपने यहां नौकरी पर रख लेते थे। अंग्रेजों को ऐसे लोग चाहिए थे, जो उनके हुक्म का पालन करते रहें।
यह भी पढ़ें कासगंज: ग्रामीणों ने खदेड़े डकैत, घंटों चलीं गोलियां संयुक्त प्रांत आगरा व अवध सन 1877 में अंग्रजों ने आगरा व अवध को मिलकार संयुक्त प्रांत आगरा व अवध का गठन किया। इस प्रांत में 10 कमिश्नरी थीं। आगरा भी एक कमिश्नरी था। सन 1850 में नगर पालिका एक्ट बनाया गया। इसी एक्ट के तहत 1863 में आगरा को नगर पालिक का दर्जा दिया गया। इससे पहले आगरा में टाउन चौकीदारी एक्ट लागू था। 1894 में नगर पालिका की आय पांच लाख 20 हजार रुपये थी।