सात पीढ़ियों से चली आ रही परम्परा
ताजमहल से तीन किलोमीटर दूर फतेहाबाद रोड पर स्थित गांव कुआं खेड़ा में ये परम्परा सात पीढ़ियों से चली आ रही है। गांव की मौजूदा समय की बात करें, तो करीब 12 हजार की आबादी है। इस गांव में 600 के आस पास घर हैं। यहां के रहने वाले प्रदीप यादव ने बताया कि गांव में शायद ही ऐसा कोई घर है, जिसमें दो या तीन दुधारू गाय या भैंस न हों। हर घर में दूध होता है, बस इसे बेचा नहीं जा सकता है।
ताजमहल से तीन किलोमीटर दूर फतेहाबाद रोड पर स्थित गांव कुआं खेड़ा में ये परम्परा सात पीढ़ियों से चली आ रही है। गांव की मौजूदा समय की बात करें, तो करीब 12 हजार की आबादी है। इस गांव में 600 के आस पास घर हैं। यहां के रहने वाले प्रदीप यादव ने बताया कि गांव में शायद ही ऐसा कोई घर है, जिसमें दो या तीन दुधारू गाय या भैंस न हों। हर घर में दूध होता है, बस इसे बेचा नहीं जा सकता है।
दूध बेचा तो हो जाते हैं बर्बाद
गांव के वृद्ध अजंट सिंह यादव ने बताया कि इस गांव में दूध सात पीढ़ियों से नहीं बेचा जा रहा है। जो दूध बेचता है, वो बर्बाद हो जाता है। उन्होंने बताया कि हाल ही में गांव के एक व्यक्ति ने इस परम्परा को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन वह सफल न हो सका। उसकी दो भैंस मर गई, काफी नुकसान हुआ, फिर हार मानकर उसने भी ये काम बंद कर दिया।
गांव के वृद्ध अजंट सिंह यादव ने बताया कि इस गांव में दूध सात पीढ़ियों से नहीं बेचा जा रहा है। जो दूध बेचता है, वो बर्बाद हो जाता है। उन्होंने बताया कि हाल ही में गांव के एक व्यक्ति ने इस परम्परा को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन वह सफल न हो सका। उसकी दो भैंस मर गई, काफी नुकसान हुआ, फिर हार मानकर उसने भी ये काम बंद कर दिया।
दूध न बेचने का कारण
गांव में सैकड़ों वर्ष पुरान एक आश्रम है। ये आश्रम बाबा जादौ दास का है। इस आश्रम में रहने वाले संत धर्मदास बताते हैं कि इस गांव में काफी वर्ष पहले बाबा जादौ दास रहते थे। बाबा गांव से दूर रहते थे, उनके पास 100 से अधिक गाय रहती थीं। बाबा ने ही गांव वालों से कहा था, कि गाय का दूध बच्चों को पिलाओ, जिससे बच्चे तंदरुस्त रह सकें। कहा जाता है, बाबा जादौ दास के इसी आदेश के बाद ये परम्परा चली आ रही है।
गांव में सैकड़ों वर्ष पुरान एक आश्रम है। ये आश्रम बाबा जादौ दास का है। इस आश्रम में रहने वाले संत धर्मदास बताते हैं कि इस गांव में काफी वर्ष पहले बाबा जादौ दास रहते थे। बाबा गांव से दूर रहते थे, उनके पास 100 से अधिक गाय रहती थीं। बाबा ने ही गांव वालों से कहा था, कि गाय का दूध बच्चों को पिलाओ, जिससे बच्चे तंदरुस्त रह सकें। कहा जाता है, बाबा जादौ दास के इसी आदेश के बाद ये परम्परा चली आ रही है।
फ्री में दे देते हैं दूध
गांव के अशोक यादव ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति गांव में दूध का भाव पूछने आता है, तो उसे साफ कहते हैं, कि यहां दूध फ्री में मिलता है। इसे लोग मजाक समझते हैं। कई बार लोग यकीन नहीं करते, तो उन्हें फ्री में दूध दे भी दिया जाता है, उससे पैसे नहीं लिए जाते हैं। लोग खुद ही समझ जाते हैं, कि यहां दूध बेचा नहीं जाता है। एक दो बार आवश्यकता पड़ने पर मु्फ्त में दूध ले भी जाते हैं।
गांव के अशोक यादव ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति गांव में दूध का भाव पूछने आता है, तो उसे साफ कहते हैं, कि यहां दूध फ्री में मिलता है। इसे लोग मजाक समझते हैं। कई बार लोग यकीन नहीं करते, तो उन्हें फ्री में दूध दे भी दिया जाता है, उससे पैसे नहीं लिए जाते हैं। लोग खुद ही समझ जाते हैं, कि यहां दूध बेचा नहीं जाता है। एक दो बार आवश्यकता पड़ने पर मु्फ्त में दूध ले भी जाते हैं।