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तिथि याद न हो तो पितृ अमावस्या के दिन विधि विधान से ऐसे करें श्राद्ध, पितरों का मिलेगा आशीर्वाद

जानें कब है पितृपक्ष अमावस्या, श्राद्ध के नियम व विधि।

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आगरा

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suchita mishra

Oct 06, 2018

जिन लोगों को अपने पितरों की तिथि याद न हो, या भूलवश तिथि पर श्राद्ध न कर पाए हों, उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है। 8 अक्टूबर को पितृपक्ष अमावस्या है। पितृपक्ष का समापन आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या के दिन होता है। इसे सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या भी कहा जाता है। ये पितृपक्ष का आखिरी दिन होता है और इस दिन अपने पितरों को विदा किया जाता है। ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से जानते हैं कि अमावस्या के दिन कैसे करें श्राद्ध कि संतुष्ट होकर विदा हो पितृ और परिवार को आशीर्वाद देकर जाएं।

शास्त्रों के अनुसार सर्वपितृ अमावस्या को 16 ब्राह्मणों के भोजन कराने की बात कही गई है। यदि ऐसा न कर पाएं तो जितने पितरों का श्राद्ध उस दिन करना है उनके रूप में उतने ब्राह्मणों को बुलाएं। पुरुष के श्राद्ध के लिए पुरुष और महिला के श्राद्ध के लिए ब्राह्मण महिला को बुलाएं। घर की दक्षिण दिशा में सफ़ेद वस्त्र पर पितृ यंत्र स्थापित कर उनके निमित्त, तिल के तेल का दीप व सुगंधित धूप करें। चंदन व तिल मिले जल से तर्पण दें। तुलसी पत्र समर्पित करें। कुश आसन पर बैठाकर गीता के 16वें अध्याय का पाठ करें। इसके उपरांत ब्राह्मणों को खीर, पूड़ी, सब्ज़ी, कढ़ी, चावल, मावे के मिष्ठान, लौंग-ईलाइची व मिश्री अर्पित करें। यथाशक्ति वस्त्र-दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें। इस दिन रात्रि में पितृ अपने लोक जाते हैं। पितृ को विदा करते समय उन्हें रास्ता दिखाने हेतु दीपदान किया जाता है। अतः सूर्यास्त के बाद घर की दक्षिण दिशा में तिल के तेल के 16 दीप जलाएं। इस विधि से पितृगण सुखपूर्वक आशीर्वाद देकर अपने धाम जाते हैं।

इन बातों का रखें ध्यान
1. श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति उस दिन न तो पान खाएं और न ही शरीर पर तेल लगाएं।

2. सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। गुस्सा नहीं करना चाहिए।
3. श्राद्ध के भोजन में चना, मसूर, उड़द, सत्तू, मूली, काला जीरा, खीरा, प्याज, लहसुन, बासी या अपवित्र फल या अन्न का उपयोग नहीं करना चाहिए।

4. श्राद्ध करने से पहले हाथ में अक्षत, चंदन, फूल और तिल लेकर संकल्प लें फिर पितरों का तर्पण करें।

5. जरूरत मंद लोगों में कपड़े और खाना बांटें। इससे पितरों को शान्ति मिलती है।

6. दोपहर से पहले श्राद्ध कर लें।

7. ब्राह्मण को भोजन कराते समय दोनों हाथों से भोजन परोसें।

8. पहला ग्रास गाय, कुत्ते व काले कौए के लिए निकालें।