सुरक्षा की दृष्टि से रणनीतिक महत्व प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच के महामंत्री इंजी दिवाकर तिवारी द्वारा भेजे गए आमंत्रण के जवाब में एक पत्र प्रेषित किया है। प्रधानमंत्री ने पत्र में कहा है कि भारत विविधता में एकता के लिए जाना जाता है। पुरातन काल में हमारे देश की सीमाओं का चित्रण इस प्रकार किया गया है-
“उत्तरस्य यतसमुद्रस्य हिमाद्रिश्चैव दक्षिणम्,
वर्ष तद भारतं नाम भारती यत्र संतति।
उत्तर में जिसके हिमालय है और दक्षिण में समुद्र है, ऐसा देश भारत के नाम से जाना जाती है और यहां की संतानों भारतवंशी कहते हैं। यह भौगोलिक क्षेत्र सुरक्षा की दृष्टि से रणनीतिक महत्व रखता है। इस क्षेत्र में हम एक अद्भुत स्थान रखते हैं।
पुरातन काल से हिमालय न केवल उत्तरी मोर्चे पर हमारी सुरक्षा करता रहा है बल्कि आध्यात्मिक एवं शांति का आशीर्वाद भी देता रहा है। हिमालय के प्राकृतिक रास्ते एवं समुद्री रास्ते भारत के पुरातन व्यापार के एकीकृत हिस्सा रहे हैं। सामाजिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र बिंदु रहा है। मुझे विश्वास है ये कॉन्फ्रेंस हिमालय-हिन्द महासागर से जुड़े राष्ट्रों के मध्य आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों के लिए एक आदर्श मंच साबित होगा।
सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को मजबूती मिलेगी प्रधानमंत्री ने कहा है कि विषय विशेषज्ञों के आधुनिक शोध से सूचनाओं का आदान-प्रदान हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को और मजबूत करेगा। मैं इस अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में आए प्रतिभागियों को उनके सफलतापूर्वक विमर्श के लिये बधाई देता हूँ। मैं इस कांफ्रेंस से निकलने वाले परिणाम के लिए आशान्वित हूँl
खुश हैं आयोजक
प्रधानमंत्री के इस पत्र पर कांफ्रेंस के संयोजक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच राष्ट्रीय महासचिव डॉ. रजनीश त्यागी, ब्रिगेडियर मनोज कुमार, स्क्वाड्रन लीडर एके सिंह, कर्नल जीएम खान, कर्नल यूसी दुबे, इंजी. दिवाकर तिवारी, रविन्द्र पाल सिंह टिम्मा, पवन सिंह, डॉ. डीएस तोमर, अन्नू दुबे इत्यादि ने खुशी जताई है। जाहिर है कि प्रधानमंत्री ने भी आयोजकों के मन की बात कही है तो खुशी तो होगी ही।