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आगरा

इस शिवालय में स्थापित शिवलिंग दिन में तीन बार बदलता है रंग, दर्शन मात्र से होती है भक्त की हर इच्छा पूरी, देखें वीडियो

Sawan मास का पहला सोमवार, यानि भोले बाबा की आराधना का दिन।

आगराJul 22, 2019 / 05:24 pm

धीरेंद्र यादव

Rajeshwar Temple Shiva Ling

Rajeshwar Temple Shiva Ling

आगरा। sawan मास का पहला सोमवार, यानि भोले बाबा की आराधना का दिन। आज के दिन वैसे तो हर शिवालय पर भक्तों की भीड़ दिखाई देती है, लेकिन श्री राजेश्वर महादेव मंदिर पर हर भक्त विशेष रूप से भगवान की आराधना के लिए आता है। मान्यता है कि श्रीराजेवश्वर महादेव के दर्शन मात्र से भक्त की हर इच्छा पूरी हो जाती है। यहां अद्भुत शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलती है, जिसे देख भक्त भगवान के दर्शन की अनुभूति करते हैं।
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सुबह से शाम तक तीन रंग
shiv ling के भोर की पहली किरण के साथ जब दर्शन किए जाते हैं, तो ये दूधिया सफेद होती है। सुबह की पूजा के बाद जब दोपहर में इस शिवलिंग के दर्शन किए जाएं तो इस दूधिया शिवलिंग पर नीले रंग की धारियां आ जाती हैं। वहीं शाम की आरती के समय जब भक्त् पूजन के लिए आते हैं, तो भक्तों को गुलाबी रंग के शिवलिंग के दर्शन होते हैं।
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आज मेले का आयोजन
श्रीराजेश्वर महादेव मंदिर पर आज मेले का आयोजन हुआ। सुबह से ही मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ रहा था, तो वहीं मंदिर के बाहर भव्य मेला अनुपम छटा बिखेर रहा था। चाट पकौड़ी की दुकान और मेले में लगे झूलों पर लुत्फ उठाते बच्चे। इसके साथ ही यहां सुरक्षा व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम दिखाई दिए। मंदिर से करीब एक किलोमीटर पहले ही चार पहिया और दो पहिया वाहनों की एंट्री बंद कर दी गई। वहीं मंदिर के आस पास पुलिस के जवान मुस्तैद दिखाई दिए।
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ये है मंदिर का इतिहास
मंदिर में शिवलिंग की स्थापना राजाखेडा के एक साहूकार ने करवाई थी। बताया जाता है, कि साहूकार नर्मदा नदी से शिवलिंग लेकर आ रहे थे। गांव से पहले उन्होंने रात्रि विश्राम के लिए एक जगह बेलगाड़ी रोक दी। रात्रि में स्वप्न हुआ कि जिसमें साहूकार को बताया गया कि शिवलिंग को इसी स्थान पर रहना है। इसके बाद जब सुबह बेलगाड़ी में रखने के लिए शिवलिंग को जमीन से उठाकर ले जाने का प्रयास किया गया, तो बैलगाड़ी आगे ही नहीं बड़ी। कई गाड़ी और दर्जनों लोगों के प्रयास के बाद भी गाड़ी का पहिया आगे नहीं बड़ा, जिसके बाद शिवलिंग जमीन पर गिर गई। वहीं पर शिवलिंग ने एक स्थान ले लिया। इसके बाद पांच गांव के लोगों ने मिलकर मंदिर का निर्माण कराया, जिसमें गांव उखर्रा, राजपुर, बाग राजपुर, चमरौली और कहरई सम्मलित हैं। मंदिर की सेवा के लिए 24 बीघा जमीन भी जमीदारों द्वारा दी गई थी, जो आज बहुत कम बनी है।
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