ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र का कहना है कि शास्त्रों में नशे की घोर निंदा की गई है, ऐसे में गीता जैसे ग्रंथ में शराब पीने का जिक्र कैसे किया जा सकता है, जबकि गीता मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाती है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि सोमरस का मतलब शराब से लेना पूरी तरह गलत है। ऋग्वेद में साफतौर पर शराब की घोर निंदा करते हुए कहा गया है कि “हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्” यानी सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं। लिहाजा गीता के श्लोक में लिखे सोमपान का अर्थ शराब से लेना पूरी तरह गलत साबित होता है। ये श्रीमद्भगवद्गीता को बदनाम करने की साजिश है।
दरअसल सोम की लताएं राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरी, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। यह बिना पत्तियों का गहरे बादामी रंग का पौधा है। इसके गुण संजीवनी बूटी से मिलते हैं। लिहाजा कुछ विद्वान इसे ही संजीवनी बूटी मानते हैं। उनका मानना है कि लक्ष्मण की मूर्छा के वक्त हनुमान जी जब पर्वत उखाड़ कर लाए थे, तब संजीवनी बूटी यानी सोमरस से ही उन्हें ठीक किया गया था।