आगरा में वायु प्रदूषण का मुद्दा अधिवक्ता एमसी मेहता ने उठाया। सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका में नीरी, वरदराजन कमेटी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तमाम रिपोर्ट के हवाले से कहा गया कि आगरा में वायु प्रदूषण के कारण ताजमहल को नुकसान हो रहा है। इसके लिए उद्योगों को जिम्मेदार ठहराया गया। सुप्रीम कोर्ट ने पहला आदेश 1993 में किया कि ताजमहल के आसपास 500 मीटर के इलाके को खाली करा लिया जाए। इस आदेश से पूरे आगरा में हड़कंप मच गया था। तब भाजपा विधायक केशो मेहरा ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की और आदेश को रद्द कराया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने टीटीजेड अथॉरिटी (ताज संरक्षित क्षेत्र) का गठन किया। इसमें आगरा के अलावा मथुरा, हाथरस , फिरोजाबाद और राजस्थान के भरतपुर जिले को लिया। 600 करोड़ रुपये दिए गए। इन जिलों में सभी प्रदूषणकारी उद्योग बंद कराने, कोयले या कोक का उपयोग प्रतिबंधित करने, 24 घंटे विद्युत आपूर्ति, जलमल निस्तारण की उचित व्यवस्था करने जैसे आदेश दिए गए। प्रशासन ने प्रदूषण फैलाने वाले खतरनाक292 उद्योग बंद करा दिए। ईंट-भट्ठे बंद करा दिए। 24 घंटे विद्युत आपूर्ति का आदेश आज तक लागू नहीं हुआ है। आगरा शहर में ही सब जगह सीवर लाइन नहीं है। आगरा बैराज नहीं बना। यमुना के लिए कोई कार्य नहीं हुआ। यह भी तय हुआ था कि यमुना किनारे की ट्रांसपोर्ट एजेंसी, पेठा इकाइयां, जूता इकाइयां शहर से बाहर जाएंगी। यमुना का शुद्धीकरण होगा। कुछ भी नहीं हुआ है। नए अधिकारी आते गए, अपने हिसाब से काम कराते गए, लेकिन प्रदूषण यथावत है। टीटीटेड को सरकारी अधिकारियों ने चारागाह बना लिया। मंडलायुक्त की अध्यक्षता में टीटीजेड की समीक्षा होती है, लेकिन खानापूरी के लिए। टीटीजेड से अब प्रायः कोई काम नहीं हो रहा है। टीटीजेड में आगरा की जनता की ओर से एक प्रतिनिधि है, जो सिर्फ अफसरों की हां में हां मिलाता है। डीके जोशी की मृत्यु के उपरांत तो अधिकारी बेलगाम हो गए हैं। टीटीजेड के तहत ही मायावती ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में ताज हेरिटेज कॉरीडोर के नाम पर यमुना को पाटना शुरू कराया था। विवादों का यह प्रोजेक्ट बाद में बंद करना पड़ा. इस स्थान पर अब हरियाली विकसित की जा रही है। हर साल पेड़ लगते हैं, लेकिन न जाने कहां चले जाते हैं?
आगरा में विद्युत वितरण व्यवस्था निजी हाथों में जाने के बाद स्थिति में थोड़ा सुधार आया है। लेकिन मथुरा, हाथरस औऱ फिरोजाबाद में विद्युत आपूर्ति में सुधार नहीं है। उद्योगों की भट्ठियां गैस आधारित होने के कारण लागत बढ़ गई है। उद्योगों का बुरा हाल है। नए उद्योग यहां लग नहीं सकते हैं। गैर प्रदूषणकारी इलेक्ट्रॉनिक उद्योग लग नहीं रहे हैं। इसके चलते आगरा में “ब्रेन ड्रेन” की बड़ी समस्या है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कड़ाई से अनुपालन कराया जाए तो घरेलू जूता उद्योग पूरी तरह बंद हो जाएगा। जनरेटर चलाने पर भी रोक है। ताजमहल के आसपास आप ईंधन चालित वाहन लेकर नहीं जा सकते हैं। ताजगंजवासियों को परिवहन विभाग पास जारी करता है।
ताजमहल को लेकर आगरा में कई बार बैठकें कर चुके पर्यावरणविद संतोष गुप्ता (पुणे) का कहना है कि समस्या कहीं और है। पहले कोयला और निम्न स्तर का पेट्रोल-डीजल था। अब ऐसा नहीं है। ताजमहल को नुकसान उद्योगों या मथुरा रिफाइनरी से नहीं बल्कि आगरा में चारों ओर उड़ रही धूल से है। जब तक सड़कों में गड्ढे रहेंगे या सड़क के दोनों ओर कच्चा स्थान रहेगा, पीएम2-5 की समस्या बनी रहेगी। जरूरत इस बात की है कि कच्चा स्थान न रहे। अगर निर्माण कार्य कर रहे हैं तो उस दौरान पानी का पर्याप्त छिड़काव हो, ताकि धूल न उड़े। यमुना नदी में निरंतर पानी बना रहे।
जरूरत इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट ने आगरा के लिए जो तमाम आदेश दिए हैं, उनका भी अनुपालन होना चाहिए। ताजमहल को सदियों तक बचाने के लिए कार्ययोजना बनाई जा रही है, लेकिन यह भी टीटीजेड की तरह अफसरशाही का शिकार न हो जाए। प्रदूषण दूर करने के लिए एक तारणहार की जरूरत है। आप क्या कहते हैं?
आगरा में विद्युत वितरण व्यवस्था निजी हाथों में जाने के बाद स्थिति में थोड़ा सुधार आया है। लेकिन मथुरा, हाथरस औऱ फिरोजाबाद में विद्युत आपूर्ति में सुधार नहीं है। उद्योगों की भट्ठियां गैस आधारित होने के कारण लागत बढ़ गई है। उद्योगों का बुरा हाल है। नए उद्योग यहां लग नहीं सकते हैं। गैर प्रदूषणकारी इलेक्ट्रॉनिक उद्योग लग नहीं रहे हैं। इसके चलते आगरा में “ब्रेन ड्रेन” की बड़ी समस्या है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कड़ाई से अनुपालन कराया जाए तो घरेलू जूता उद्योग पूरी तरह बंद हो जाएगा। जनरेटर चलाने पर भी रोक है। ताजमहल के आसपास आप ईंधन चालित वाहन लेकर नहीं जा सकते हैं। ताजगंजवासियों को परिवहन विभाग पास जारी करता है।
ताजमहल को लेकर आगरा में कई बार बैठकें कर चुके पर्यावरणविद संतोष गुप्ता (पुणे) का कहना है कि समस्या कहीं और है। पहले कोयला और निम्न स्तर का पेट्रोल-डीजल था। अब ऐसा नहीं है। ताजमहल को नुकसान उद्योगों या मथुरा रिफाइनरी से नहीं बल्कि आगरा में चारों ओर उड़ रही धूल से है। जब तक सड़कों में गड्ढे रहेंगे या सड़क के दोनों ओर कच्चा स्थान रहेगा, पीएम2-5 की समस्या बनी रहेगी। जरूरत इस बात की है कि कच्चा स्थान न रहे। अगर निर्माण कार्य कर रहे हैं तो उस दौरान पानी का पर्याप्त छिड़काव हो, ताकि धूल न उड़े। यमुना नदी में निरंतर पानी बना रहे।
जरूरत इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट ने आगरा के लिए जो तमाम आदेश दिए हैं, उनका भी अनुपालन होना चाहिए। ताजमहल को सदियों तक बचाने के लिए कार्ययोजना बनाई जा रही है, लेकिन यह भी टीटीजेड की तरह अफसरशाही का शिकार न हो जाए। प्रदूषण दूर करने के लिए एक तारणहार की जरूरत है। आप क्या कहते हैं?