Gujarat: गुजरात हाईकोर्ट में गुजराती भाषा में कार्यवाही की फिर उठी मांग
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Gujarat: गुजरात हाईकोर्ट में गुजराती भाषा में कार्यवाही की फिर उठी मांग
Demand for proceedings in Gujarati language in Gujarat high court गुजरात हाईकोर्ट में दायर होने वाली याचिकाओं, पुनर्विचार याचिकाओं तथा अन्य कार्यवाही में गुजराती भाषा के उपयोग की मंजूरी देने की मांग एक बार फिर उठी है।
गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन की ओर से गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत को पत्र लिखकर यह मांग की गई है। पत्र में उनसे गुजरात हाईकोर्ट की कार्यवाही में गुजराती भाषा को संविधान की धारा 348 (2) के तहत अतिरिक्त भाषा के रूप में मंजूरी देने की मांग की है।
गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट एसोशिएशन के अध्यक्ष असीम पंड्या की ओर से 14 अगस्त 2022 को राज्यपाल को लिखे गए पत्र में कहा है कि अंग्रेजों से देश को आजाद हुए 75 साल हो गए हैं। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन आज भी गुजरात हाईकोर्ट में अंग्रेजी भाषा में ही कार्यवाही हो रही है। गुजराती भाषा में कार्यवाही की मंजूरी नहीं है। इस निर्णय के चलते लोगों को काफी परेशानी होती है। इतना ही नहीं अंग्रेजी भाषा में ही याचिका दायर करने की बाध्यता के चलते हाईकोर्ट में गुहार लगाने वाले प्रत्येक याचिकाकर्ता को कम से कम 10-15 हजार रुपए सिर्फ अपनी याचिका का गुजराती भाषा से अंग्रेजी भाषा में अनुवाद कराने पर खर्च करना पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रत्येक याचिका 50 पेज से ज्यादा की होती है। गुजराती से अंग्रेजी भाषा में अनुवाद कराने का खर्च प्रति पेज 90-120 रुपए है। गुजराती भाषा में गुजरात हाईकोर्ट में कार्यवाही की मंजूरी दी जाए तो इस खर्च से बचा जा सकता है।
गुजरात ऑफिशियल लेंग्वेज एक्ट 1960 के अधिनियम के तहत गुजराती भाषा राज्य की आधिकारिक भाषा है। इसी भाषा में प्रशासनिक, अद्र्धन्यायिक, जुडिशियल कम्युनिकेशन जिसमें लेटर, ऑर्डर, नोटिंग, अपील, रिप्रजेंटेशन आदि राज्य की आधिकारिक भाषा के तहत गुजराती भाषा में करने की मंजूरी दी गई है।
इसके अलावा केन्द्रीय ऑफिशियल लेंग्वेज एक्ट 1963 के प्रावधान के तहत, संबंधित राज्यपाल को यह अधिकार है कि, वह राष्ट्रपति की ओर से पहले दी जा चुकी मंजूरी के तहत हिंदी या राज्य की अन्य आधिकारिक भाषा को राज्य के हाईकोर्ट में अतिरिक्त भाषा के रूप में मंजूरी दे सकता है। संविधान की धारा 348 (2) के तहत राज्यपाल को इसका अधिकार दिया गया है।
पत्र में कहा गया है कि मध्यप्रदेश के राज्यपाल की ओर से हिंदी भाषा को वर्ष 1971 में ही संविधान की धारा 348 (2) के तहत मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में अतिरिक्त भाषा के रूप में इस्तेमाल करने की मंजूरी दे दी गई है। ऐसे में देश जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो लोगों को इसका अधिकार मिलना चाहिए।
राजस्थान, उ.प्र.,म.प्र., बिहार में हिंदी में कार्यवाही की मंजूरी
केन्द्र सरकार की ओर से हाल ही में लोकसभा में दी गई जानकारी के तहत देश में अभी राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार हाईकोर्ट में अंग्रेजी भाषा के अलावा हिंदी भाषा को अतिरिक्त भाषा के रूप में मंजूरी दी गई है। जिसमें उत्तरप्रदेश में हिंदी भाषा को वर्ष 1969 में, मध्यप्रदेश में 1971 में, बिहार में 1972 में हिंदी भाषा को अतिरिक्त भाषा के रूप में संविधान की धारा 348 (2) के तहत मंजूरी दी गई है। राजस्थान हाईकोर्ट में 1950 से ही हिंदी भाषा को अतिरिक्त भाषा के रूप में मंजूरी दी गई है।
सुप्रीमकोर्ट 2012 में खारिज कर चुका है गुजराती भाषा की मांग
गुजरात सरकार की ओर से गुजराती भाषा के उपयोग की मंजूरी के लिए, तमिलनाडु से तमिल भाषा की, छत्तीसगढ़ से हिंदी की, पश्चिम बंगाल से बंगाली की, कर्नाटक से कन्नड़ भाषा के उपयोग की संबंधित राज्य के हाईकोर्ट में मंजूरी के लिए केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजे गए थे। इन प्रस्तावों पर सुप्रीमकोर्ट की ओर से विचार भी किया गया। काफी चर्चा के बाद 16 अक्टूबर 2012 को सुनाए अपने फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने राज्यों के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने 2014 में पुर्नविचार याचिका भी दायर की थी, लेकिन उस पुर्नविचार याचिका को भी सुप्रीमकोर्ट की ओर से 18 जनवरी 2016 के निर्देश से खारिज कर दिया।
अन्य भाषा के लिए सीजेआई की मंजूरी जरूरी
लोकसभा में केन्द्र सरकार की ओर से दी गई जानकारी के तहत 21 मई 1965 को केन्द्र सरकार की कैबिनेट कमेटी ने निर्णय किया कि देश के किसी भी हाईकोर्ट में अंग्रेजी के अलावा अन्य किसी भी भाषा के उपयोग से संबंधित प्रस्ताव पर सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की मंजूरी ली जानी चाहिए।
पीएम भी कर चुके हैं क्षेत्रीय भाषाओं की वकालत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी 30 अप्रेल 2022 को हुई मुख्य न्यायाधीश, मुख्यमंत्रियों की संयुक्त कॉन्फ्रेंस में कोर्ट की कार्यवाही
10:24 PM
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में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की आवश्यकता की वकालत कर चुके हैं। वे कह चुके हैं इससे आम आदमी भी न्यायिक प्रक्रिया से जुड़ सकेगा।