अहमदाबाद, मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है। वह जो कुछ भी देखता-सुनता है, उसी पर चिंतन करने लगता है। चिंतन करना, गहन विचार करना और सत्य को जानने का प्रयत्न करना मनुष्य की विशेषता है। जो मनुष्य पशुओं की भांति खाता, पीता और सोता रहकर जीवन बिता देता है, उसे पशु की ही संज्ञा दी जाती है। वह मनुष्य के रूप में पशु ही है। मनुष्य ने बुद्धि के द्वारा चिन्तन के आधार पर ज्ञान, विज्ञान, कला, धर्म और संस्कृति की रचना की है, जो मानव जाति की एक महत्वपूर्ण निधि है। जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराज घोडासर में स्मृति मंदिर के निकट मिर्ची मैदान में नारायण सेवा समिति की ओर आयोजित श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ में यह प्रवचन दिया। उन्होंने बताया भारतीय ऋषियों ने प्रकृति की गोद में बैठकर, प्राकृतिक सौंदर्य में रस विभोर होकर, केवल बुद्धि के सहारे चिन्तन ही नहीं किया, बल्कि अपने भीतर गहरे पैठकर बुद्धि से परे जाकर शाश्वत सत्य की अनुभूति की। उसे मन की आँखों से देखा। उसका दर्शन किया।