अहमदाबाद. राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने रविवार को कहा कि हम जो कर्म करते हैं, वही हमारे सुख या दुख का कारण बनते हैं। जिन सिद्धांतों को अपनाने से हम भी सुखी हों और हमारे संपर्क में आने वाले अन्य लोग भी सुखी हों, वही सच्चा धर्म कहलाता है। इस दुनिया में केवल धर्म ही है, जो मनुष्य को अन्य पशु-पक्षियों से अलग करता है।
वे गांधीनगर के कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य महाश्रमण के चातुर्मासिक प्रवेश समारोह को संबोधित कर रहे थे। राज्यपाल ने कहा कि चातुर्मास के दौरान साधु-संत एक ही स्थान पर ठहरते हैं और लोगों के साथ शास्त्रों तथा आत्मा-परमात्मा के विषय में चर्चा करते हैं। साथ ही लोगों के प्रश्नों का समाधान कर आत्मा के विकास का मार्ग बताते हैं। हम सभी के लिए यह आनंद की बात है कि आचार्य महाश्रमण चार महीने यहां रहेंगे, हमें उनके ज्ञान का लाभ अवश्य लेना चाहिए।
अहिंसा की व्याख्या करते हुए राज्यपाल ने कहा कि प्राणियों के प्रति दया, करुणा और सहनशीलता की भावना रखना, मन, वचन और कर्म से किसी के बारे में बुरा न सोचना, यही सच्ची अहिंसा है। अहिंसा के सिद्धांत के बिना यह दुनिया टिक नहीं सकती। जो व्यक्ति अहिंसा, दया और सहनशीलता को अपने जीवन में अपनाता है, उसी के लिए अध्यात्म का रास्ता खुलता है।
आचार्य महाश्रमण ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि अहिंसा, संयम और तप सबसे उत्कृष्ट धर्म हैं। प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा की भावना, मैत्रीपूर्ण व्यवहार, सभी प्राणियों को अपने समान मानना, यही सच्चा धर्म है। हम दूसरों से जैसा व्यवहार चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार हमें दूसरों के साथ करना चाहिए, यही सच्ची अहिंसा है।
आचार्य ने कहा कि जैन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है, इसमें साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर चार महीने तक साधना करते हैं और लोगों को उपदेश देते हैं। यह परंपरा भारत की अमूल्य आध्यात्मिक विरासत है। इस अवसर पर हम सभी को सच्चे धर्म को अपनाकर पूरी दुनिया के लिए सुख और शांति का मार्ग बनाना चाहिए।
Published on:
06 Jul 2025 10:27 pm