भारतीय टीम को तीसरा टेस्ट मैच जितने के बाद जो आत्मविश्वास हासिल हुआ था वो चौथे टेस्ट में अभिमान में तब्दील हो गया और फिऱ 244 रन का जवाब देने में भी 60 रन कम पड़ गए। क्युंकि जवाब देने के लिए जरुरत थी एक ठन्डे दिमाग और प्रदर्शन में निरंतरता की जो दुर्भाग्य से भारत की इस टीम के पास देखने को नहीं मिला।
तारीफ करनी होगी इंग्लैण्ड के कैप्टन कूल जो रूट की। जिन्होने मुश्किल हालात में भी खुद के हौसले को कम नहीं होने दिया। जहां विराट कोहली किसी एक विकेट के गिरने मात्र पर या किसी गैर बल्लेवाज़ द्वारा रन बनाने पर खुशी में झूम उत्थते थे वहीं रूट को पता था की मील के पत्थर मंजिल नहीं हुआ करते हैं। वो मंजिल के उस पत्थर की ओर धीमे धीमे बढ़ते रहे जिस पर लिखा होता है “0” किलोमीटर।
कप्तानी का यह फर्क भारत को 2019 की गर्मियों में होने वाले विश्व कप में बहुत भारी पडऩे वाला है। क्युंकि वो इंग्लैण्ड में ही होगा। जोश और चीखना चिल्लाना कामयाबी का एक फार्मूला हो सकता है पर सिर्फ एक ही। भारतीय गेंदबाजों का आलम यह रहा कि शुरु के दो मैचों में तो उन्हे यह भी पता नहीं था की पिच कैसा है और मौसम क्या कहानी कह रहा है। तीसरा मैच जीता तो चौथे में लगा बिना तय्यारि ही उतर गए। बतौर बल्लेबाज विराट सफल रहे लेकिन दूसरे बल्लेबाजों ने मानो कसम खा रखी थी कि अच्छा नहीं ही खेलेंगे।
उधर इंग्लैण्ड वाले ना तो पहले दोनों टेस्ट मैच जीतने पर बौराये और ना ही तीसरा टेस्ट गंवाने पर घबराये। उन्होने ठन्डे दिमाग के साथ टीम में व्यापक फेरबदल कर पिच के अनुकूल मोइन अली को स्पिनर के रूप में शामिल किया। खुद कप्तान रूट मिडिल के बजाये ऑफ़ स्टंप पर खेल रहे थे। और ऐसा वे सिर्फ बुमराह के खिलाफ कर रहे थे। इससे उनकी गम्भीरता समझी जा सकती है।
भारत वाले इस तय्यरि को भांप नहिं पाए। वो सिर्फ एन्डरसन से निपटने में ही लगे रहे और स्टुअर्ट ब्रॉड आदिल रशीद स्टोक्स जेनिन्ग्स करेनऔर वोक्स को भूल गए। जो काम उनका ब्रहमास्त्र एंडरसन नहीं कर सके वो काम बाकी ने थोड़ा त्गोदा मिल कर निपटा लिया।
इसी तरह कोई शक नहीं की रिषभ पन्त भविष्य के धोनिसाबित हो सकते हैं पर एक नये प्लेअर को इतना जोश में नहों आना चाहिये की वो स्थापित गेंदबाजों को मजाक बनाना चाहे। उन्हे सीखना च्सहिये अपने ही समकालीन अन्ग्रेज खिलाड़ी करेन से जिसकी छोटी किन्तु जिम्मेदारी भरी पारियों ने इंग्लैण्ड की टीम को शेम्पैन खोलने का मौका दिलाया।
भारत के पास बल्लेबाजी में तो एक विराट फिऱ भी था जो इंग्लिश हमले को झेल और खेल सकता था पर गेंदबाजी में ऐसा एक भी महावीर नहीं था अंग्रेजों की नाक को ज़मीन छुआ देता। विराट पर ऐसी निर्भरता 94 से 99 के बीच के उस दौर की तरह हो गई है जैसे कभी सचिन पर पूरी टीम सवार रहती थी। या उस्स्से पहले 85 से 94 के बीच कपिल देव पर।
इस तरह की असन्तुलित टीम में तुरन्त सही बदलाव करना जरुरी होगा अन्यथा याह टीम इसी महिने होने वाले एशिया कप मे तो पसरी खायेगी ही साथ ही याह टीम विश्व कप के लीग मैचों से आगाए का सफर नहीं कर सकेगी।