यह सब तब हुआ जब रावण न सिर्फ प्रकांड पंडित था, बल्कि उच्च कोटि का विद्वान भी था, लेकिन माता सीता के हरण की उसे ऐसी सजा मिली कि उसके कुल का नाश हो गया। हम आज भी बुराई के प्रतीक रावण, उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद का पुतला दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे समाज में आज भी सैकड़ों बुराइयां हैं, जो किसी रावण से कम नहीं हैं।
दशहरे पर नाभि में भगवान राम का अग्निबाण लगने से पूर्व जब रावण का पुतला अ_ाहस करता है तो शायद हम पर यही व्यंग्य करता है कि कब तक मेरी ही बुराइयों को जलाते रहोगे, अपनी बुराइयों को खत्म करोगे तब ही शायद मेरी पराजय का सच्चा जश्न मनेगा।
वर्तमान के दशानन आतंकवाद : दुनिया के अनेक देश आज भी आतंकवाद से जूझ रहे हैं। आए दिन कहीं न कहीं आतंकवादी वारदातें होती रहती हैं। इनमें हजारों लोगों के जान गंवाने के बाद भी आतंकवाद पर नकेल नहीं कसी जा सकी है।
भ्रष्टाचार : लगभग हर सरकारी महकमे में भ्रष्टाचार के किस्से आज भी सुनाई देते रहते हैं। यहां तक कि पुलिस और सीबीआई जैसे जिन महकमों पर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी है, उसके अधिकारी भी इसमें लिप्त हैं।
घरेलू हिंसा : आज लगभग हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर बराबरी पर खड़ी हैं। इसके बावजूद महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा पर रोक नहीं लग सकी है।
दहेज : 21वीं सदी के इस दौर में जब महिलाएं किसी से कम नहीं हैं तब भी उन्हें दहेज के लिए प्रताडऩा का दंश झेलना पड़ रहा है। आज भी समाज में दहेज और तीन तलाक जैसे महिला विरोधी मामले सामने आ रहे हैं।
बाल अत्याचार : पिछले कुछ दशकों में शिक्षा के क्षेत्र में खासी प्रगति हुई है। उच्च शिक्षा का आंकड़ा भी बढ़ा है। इसके बावजूद छोटे बच्चे पढऩे और खेलने की उम्र में जो जून रोटी के लिए बाल मजदूरी करते देखे जा सकते हैं।
बेरोजगारी : शिक्षा के साथ समाज में बेरोजगारी का आंकड़ा भी दिन पर दिन बढ़ रहा है। हालात यह हो गए हैं कि चंद पदों के लिए नौकरी के आवेदन निकलने पर लाखों की संख्या में उच्च शिक्षित युवा कतार में खड़े नजर आते हैं।
गरीबी : आज इंसान चांद पर पहुंच गया, लेकिन देश-दुनिया से गरीबी नहीं मिट पा रही है। आज भी लाखों लोग रोजाना दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करते और कई बार भूखे सोते देखे जा सकते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण : विज्ञान ने आज बहुत प्रगति की है। इंसान मशीनी युग में जी रहा है, लेकिन पर्यावरण को खासा नुकसान भी पहुंच रहा है। फैक्ट्रियां धुआं और केमिकल उगल रही हैं, तो हरियाली और पहाड़ों की बलि ली जा रही है।
महंगाई : महंगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही है। लोगों का जीवन यापन कर पाना भी मुश्किल हो रहा है। हालात यह हैं कि आज भी बड़ी संख्या में किसानों और गरीबों की आत्महत्या के मामले सुनाई देते हैं।
मॉब लिंचिंग : कानून के राज में भी लोग कानून को हाथ में लेने से नहीं चूक रहे हैं। पिछले कुछ समय में बिना अपराध साबित हुए ही भीड़ की मारपीट से कई लोगों की मौत के मामले भी सामने आए हैं।