नौसर घाटी निवासी बन्नाराम पशुओं से उन इशारों में बातचीत करते हैं जैसे मूक-बधिर लोग एक-दूसरे से करते हैं। बनाराम सड़कों पर भटकते लावारिस मवेशियों को अपनी संतान मानते हैं। सड़कों के बीच जमघट लगाने वाले पशुओं को वे कान से पकड़ कर बीच रास्ते से हटाते हैं। यही नहीं पशुओं को बीच सड़क से हटने का इशारा करने पर पशु भी उनकी बात मानते हैं और रास्ता खाली कर देते हैं।
संतान की तरह पालन-पोषण
बन्नाराम खुद न ही बोल पाते हैं न ही उनमें सुनने की क्षमता है। इशारों में बन्नाराम ने बताया कि वे जानवरों को अपने बच्चे जैसा मानते हैं। वे उनका पालन-पोषण वैसे ही करते हैं, जैसे मनुष्य अपने बच्चों का करता है। जब लावारिस पशु बीच सड़क पर घूमते हुए मिलते हैं तो वे उनके कान पकड़ कर रास्ते से हटाते हैं।
यही नहीं पशुओं का लगाव उनसे कुछ ऐसा है कि अगर वह एक गाय के साथ घूमते हैं तो उनका साथ पाने के लिए अन्य गायें भी उनकी ओर दौड़ी चली आती हैं।हादसों पर रोकथाम का प्रयास बाईस वर्षीय बन्नाराम ने बताया कि सड़क पर भटकते मवेशियों के कारण होने वाले हादसों में कई लोग अपने सुनने व बोलने की शक्ति गवा चुके हैं। बन्नाराम प्रतिदिन इशारों में मवेशियों को समझाने का प्रयास करते हैं कि उन्हें सड़क पर नही बैठना चाहिए। उन्हें देख अब तो पशु भी बीच सड़क से उठकर चल देते हैं।