– हाइफा का युद्ध 23 सितंबर 1918 को लड़ा गया था। यह युद्ध प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शांति के लिए सिनाई और फिलस्तीन के बीच चलाए जा रहे अभियान के अंतिम महीनों में लड़ा गया था।
– इस दिन भारतीय शूरवीराें ने जर्मनी और तुर्कों की सेनाओं को हाइफा से खदेड़ बाहर कर दिया। प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत की 3 रियासतों मैसूर,
जोधपुर और हैदराबाद के सैनिकों को अंग्रेजों की ओर से युद्ध के लिए तुर्की भेजा गया।
– हैदराबाद रियासत के सैनिक मुस्लिम थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुर्की के खलीफा के विरुद्ध युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया। केवल जोधपुर व मैसूर के सैनिकों को युद्ध लड़ने का आदेश दिया।
– मारवाड़ के घुड़सवाराें ने जर्मन सेना की मशीनगनों का मुकाबला करते हुए इजरायल के हाइफा शहर पर महज एक घंटे में कब्जा कर लिया था। इस युद्ध का नेतृत्व जोधपुर लांसर के मेजर दलपत सिंह शेखावत और कैप्टन अमान सिंह जोधा किया था।
– उस वक्त जोधपुर रियासत के घुड़सवारों के पास हथियार के नाम पर मात्र बंदूकें, लेंस (एक प्रकार का भाला) और तलवारें थी । वहीं, जर्मन सेना तोपों तथा मशीनगनों से लैस थी। लेकिन राजस्थान के रणबांकुरों के हौसले के आगे दुश्मन पस्त हो गया। इस दौरान मेजर दलपत सिंह शहीद हो गए।
– हाइफा में शहीद हुए मेजर दलपत सिंह शेखावत पाली जिले के देवली पाबूजी के रहने वाले थे। ठाकुर दलपत सिंह को पढ़ाई के लिए जोधपुर के शासक सर प्रताप ने इंग्लैंड भेजा था। शेखावत 18 साल की उम्र में वे जोधपुर लांसर में बतौर घुड़सवार भर्ती हुए और बाद में मेजर बने।
– युद्ध में 1,350 जर्मन और तुर्क कैदियों पर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया। युद्ध में मेजर दलपत सिंह के समेत 6 घुड़सवार शहीद हुए, जबकि टुकड़ी के 60 घोड़े भी मारे गए।
– मेजर दलपत सिंह को मिलिट्री क्रॉस जबकि कैप्टन अमान सिंह जोधा को सरदार बहादुर की उपाधि देते हुए आईओएम (इंडियन आर्डर ऑफ मेरिट) तथा ओ.बी.ई (ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंपायर) से सम्मानित किया गया था।
– इस युद्ध ने इजरायल राष्ट्र के निर्माण के रास्ते खोल दिए। 14 मई 1948 को यहूदियों का नया देश इजरायल बना।