लॉ कॉलेज में प्रतिवर्ष दाखिलों में देरी के चलते विद्यार्थियों को नुकसान होता है। विश्वविद्यालयों के केवल एक साल की संबद्धता देने, सरकार के रिपोर्ट भेजने में विलम्ब और अन्य कारणों से बीसीआई को दिक्कतें हो रही हैं। कौंसिल ने जनवरी में सभी विश्वविद्यालयों को पत्र भेजकर एक की बजाय लॉ कॉलेज को लगातार तीन साल की संबद्धता देने को कहा। इसके बावजूद पांच महीने में राज्य सरकार और विश्वविद्यालय कोई फैसला नहीं ले पाए हैं।
नियमों के पेंच अधिकृत सूत्रों की मानें तो उदयपुर का सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय अपने क्षेत्राधिकार वाले लॉ कॉलेज को तीन साल की एकमुश्त संबद्धता देने को सिद्धांतत: तैयार है। इसके तहत कॉलेज से तीन साल का शुल्क एक साथ लिया जाना है। दूसरी तरफ मदस विश्वविद्यालय बीसीआई के आदेश को तवज्जो ही नहीं दे रहा। प्रशासन एकेडमिक कौंसिल और प्रबंध मंडल में फैसले के अलावा सरकार पर निगाहें लगाए बैठा है।
दाखिलों पर लटकी तलवार प्रदेश के लॉ कॉलेज में प्रथम वर्ष के दाखिलों पर तलवार लटकी हुई है। कॉलेज शिक्षा निदेशालय ने हमेशा की तरह बीसीआई की मंजूरी के बगैर दाखिले नहीं करने की शर्त लगाई है। इससे छात्रों को समय रहते प्रवेश मिलने मुश्किल हैं। अजमेर के लॉ कॉलेज की परेशानी और बढ़ गई है। बीसीआई ने कॉलेज में सीमित संसाधन और शिक्षकों को कमी को देखते हुए सरकार से अंडरटेकिंग मांगी थी। इसके आधार पर कॉलेज को बीती 30 अप्रेल तक प्रवेश की अस्थायी मंजूरी दी गई। यह अवधि खत्म हो चुकी है।
शिक्षकों की कमी यथावत यूजीसी के नियमानुसार किसी भी विभाग में एक प्रोफेसर, दो रीडर और तीन लेक्चरर होने चाहिए। लेकिन कोटा, नागौर, बूंदी, सीकर, भीलवाड़ा सहित किसी लॉ कॉलेज में पर्याप्त स्टाफ नहीं है। किसी कॉलेज में शारीरिक शिक्षक, खेल मैदान, सभागार, और अन्य सुविधाएं नहीं हैं।
फैक्ट फाइल प्रदेश में सरकारी लॉ कॉलेज : 15 स्थापना : 2005-06 स्थायी मान्यता: किसी कॉलेज को नहीं विद्यार्थियों की संख्या-करीब 15 हजार सरकार से अनुदान : कुछ नहीं
प्रथम वर्ष में दाखिले बीसीआई की अनुमति से ही हो सकते हैं। सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय द्वारा तीन साल की संबद्धता देने की जानकारी मिली है। इस बारे में सरकार और मदस विश्वविद्यालय ही फैसला ले सकते हैं।
-डॉ. डी. के. सिंह, प्राचार्य लॉ कॉलेज -डॉ. डी. के. सिंह, प्राचार्य लॉ कॉलेज -डॉ. डी. के. सिंह, प्राचार्य लॉ कॉलेज