अभियोजन पक्ष संदेह से परे हत्या के आरोप को सिद्ध करने में नाकाम रहा है। साथ ही गवाहों के बयान व मेडिकल रिपोर्ट में विरोधाभास होने के नाते वे अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं करते। कोर्ट ने अन्य केस में वांछित न होने पर अपीलार्थी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति बी.के नारायण तथा न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता की खण्डपीठ ने राजा भईया उर्फ कन्हैया लाल पंडा की सजा के खिलाफ आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। सत्र न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा के साथ दस हजार रूपये का हर्जाना लगाया था। जिसे अपील में चुनौती दी गयी थी। अपीलार्थी के अधिवक्ता अजातशत्रु पांण्डेय व प्रदीप कुमार राय का कहना था कि मष्तक की आरोपी के पिता ध्रुव पंडा से दुश्मनी थी। दो नवम्बर 2005 को दो लोग आए और मष्तक को प्लाट दिखाने के लिए ले गये। मोटर साइकिल पर आए दो लोगों ने राइफल से फायर किया। जिसमें राम विशाल पाल की मौत हो गयी।
चश्मदीद गवाहों के बावजूद मोटर साइकिल ड्राइवर का नाम प्राथमिकी में नहीं दिया गया और बयान चौबीस दिन बाद दर्ज किया गया। सह अभियुक्त हनुमान प्रसाद फतेहपुर घाट कौशाम्बी घटनास्थल से मात्र 18 किमी. दूरी का निवासी है। शिकायतकर्ता भी इसी गांव का है। नाम न देने का मतलब वे मौके पर मौजूद नहीं थे। जो प्लाट दिखाने ले गये थे उनका बयान नहीं लिया, जिससे संदेह पैदा होता है।
BY- Court Corrospondence