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प्रयागराज

कांग्रेस में गुटबाजी फिर हुई तेज, यह कुर्सी तय करेगी पार्टी में किसका वर्चस्व

-दशको पुराना है गुटबाजी का इतिहास

प्रयागराजOct 09, 2019 / 06:29 pm

प्रसून पांडे

Congress internal clash before district president selection in Up pray

कांग्रेस में गुटबाजी फिर हुई तेज, यह कुर्सी तय करेगी पार्टी में किसका वर्चस्व

प्रयागराज। कांग्रेस में लंबी जद्दोजहद के बाद प्रदेश अध्यक्ष के नाम का ऐलान हुआ। जिसके बाद जिला और महानगर की समितियों में अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारियों के चयन को लेकर स्थानीय तौर पर कांग्रेसमें द्वंद शुरू हो गया है। एक तरफ कांग्रेस के दिग्गज मठाधीश नेताओं की टोली है । वहीं दूसरी तरफ प्रियंका गांधी को अपना नेता मानने वाले युवाओं की टीम। अब दिलचस्प होगा कि कांग्रेस के अपने घर प्रयागराज में जिले की कमान किसको सौंपी जाती है।

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निशाने पर अध्यक्ष की कुर्सी
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष अनिल द्विवेदी जिन पर भाजपाई होने का आरोप लगातार लगता रहता है । दरअसल तत्कालीन कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के कार्यकाल में जिले की इकाइयां बनाई गई थी । जिसमें उनके करीबी होने का पदाधिकारियों पर आरोप लगता रहा । बीते चुनावों में कांग्रेस का एक खेमा अनिल द्विवेदी को भाजपा का प्रचारक तक कहता रहा । लेकिन यह सच है कि अनिल द्विवेदी सोनिया गांधी के करीबी दिग्गज नेता मधुसूदन मिस्त्री के बेहद खास है । जिसके चलते उनकी कुर्सी कोई डिगा नहीं सका। लेकिन अब कार्यकारिणी के गठन को लेकर उठापटक तेज़ हो गई है ।

भीतर खाने में चल रही साइलेंट लड़ाई
बीते मेयर के चुनाव में कांग्रेस में बगावत हुई और शहर अध्यक्ष उपेंद्र सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया । जिसके बाद महीनों तक खाली रही शहर अध्यक्ष की कुर्सी पर नसीफ अहमद को कार्यवाहक की जिम्मेदारी सौंपी गई जिस पर वह अभी भी बरकरार है । लेकिन जिला और शहर के नेताओं की टीम दो खेमों में बटी है और दो दिग्गज नेताओं में अपने -अपने गुट को स्थापित कराने की साइलेंट लड़ाई चल रही है। हालाकि यह गुटबाजी और खेमे बाजी नई नही है । नेहरू और इंदिरा के जमाने से ही उनके शहर में खेमे बाजी की जंग हुआ करती थी । कांग्रेस के बड़े नेता ने बताया की जिले में लंबे समय तक बाजपेई बनाम बहुगुणा की लड़ाई चली। हालांकि अब दोनों परिवार एक साथ एक ही पार्टी में हैं । दरअसल पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा और पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजेंद्र कुमारी बाजपेई के गुट की रंजिश दिल्ली के दरबार तक जग जाहिर थी ।

कट गया परम्परागत शीट से टिकट
दोनों नेता राजनीति के शिखर तक गये लेकिन स्थानीय लड़ाई जारी रही । राजेंद्र बाजपेई के राज्यपाल बनने के बाद और हेमवती नंदन बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी दूसरी पीढ़ी में इसे निभाती रही। अशोक बाजपेई और रीता बहुगुणा जोशी के खेमे की लड़ाई किसी से छुपी नही है । 2007 के विधानसभा चुनाव में बतौर प्रदेश अध्यक्ष रीता जोशी बने बाजपेयी परिवार की परंपरागत शीट पर हर्ष बाजपेयी का टिकट काटा जिसके बाद बाजपेयी पारिवार लगभग अस्सी बरस बाद कांग्रेस से अलग हो गया । जिसके बाद से अब तक कांग्रेस में वो मजबूती देखने को नही मिली ।

भाजपा से छीन ली शीट
छात्र राजनीति से सक्रिय राजनीति में आए पूर्व विधायक अनुग्रह नारायण सिंह सक्रीय हुए । यूपी में सबसे ज्यादा साक्षर मतदाताओं की सीट मानी जाने वाली शहर उत्तरी से भाजपा के मुंह से उन्होंने जीत छीन कांग्रेसी विधायक हुए । वही अशोक बाजपेई के भाजपा में जाने के बाद दूसरा गुट राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी के खेमे में शामिल हो गया ।अब जिले में प्रमोद तिवारी बनाम अनुग्रह नारायण सिंह का खेमा काम कर रहा है । हालांकि दोनों के बीच वो तल्खी देखने को नही मिलती जो जो बहुगुणा और बाजपेई के बीच देखने को मिलती थी।

अब ये दो गुट है सक्रीय
बता दें कि अनुग्रह नारायण सिंह पूर्व विधायक रहे हैं इन्हें राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता है अनुग्रह नारायण सीडब्ल्यूसी कांग्रेस के सदस्य और साथ ही उत्तराखंड के प्रभारी अनुग्रह नारायण के साथ चलती है तो शहर की टीम प्रमोद तिवारी काफिले में दिखाई देती एक बार फिर दोनों खेमों में अपना अध्यक्ष और शहर अध्यक्ष बनाने की जद्दोजहद शुरू हो गई है अभी आने वाला समय तय करेगा कि कांग्रेस में वर्चस्व की लड़ाई का नेतृत्व कौन करता है।

ये नाम है चर्चा में
वही अब लंबे समय बाद जिला अध्यक्ष का चुनाव होना है । कांग्रेस के सूत्रों की माने तो जिला अध्यक्ष पद पर भाजपा से आए विजय मिश्रा कांग्रेस के पूर्व यूथ अध्यक्ष महेश त्रिपाठी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष संजय तिवारी का नाम सबसे ऊपर चल रहा है वही शहर अध्यक्ष के लिए अनिल कुशवाहा फुजैल अहमद सिद्दीकी, नसीफअनवर इस रेस में शामिल है । बता दें कि बीते कुछ दिनों से लगातार अजय लल्लू शहर का दौरा करते रहे हैं ।अब उनके अध्यक्ष बनने के बाद उनका अनुभव और कार्यकर्ताओं के मन के मन की बात कैसे समझते है यह तो नये गठन के बाद तय होगा । साथ यह भी निश्चित होगा की नेहरू और इंदिरा के शहर की कमान मिलने से कौन सा खेमा ज्यादा मजबूत होगा ।

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