इसके जवाब में कोर्ट ने पूछा कि राज्य को ऐसा क्यों करना चाहिए? अगर किसी परिवार में मृत्यु होती है, तो क्या यह राज्य की जिम्मेदारी है?इसके अलावा, मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि हम इस याचिका में की गई मांग को अमल में लाने के आदेश नहीं दे सकते। बल्कि आपको कुछ व्यक्तिगत योगदान दिखाना होगा। कोर्ट ने कहा कि यह एक जनहित याचिका नहीं हैं, बल्कि प्रचार हित याचिका हैं। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने अंतिम संस्कार और उसके संबंध में कोई शोध नहीं किया है। गंगा के किनारे रहने वाले विभिन्न समुदायों के बीच जो रीति-रिवाज प्रचलित हैं, उसपर कुछ शोध कार्य के साथ फिर से याचिका दायर की जा सकती है।