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सूबेदारगंज के अवधेश सिंह की याचिका पर यह आदेश जस्टिस एपी केसरवानी और जस्टिस आरएन तिलहरी की बेंच ने दिया। कोर्ट का कहना है कि अगर बैंक ग्राहक द्वारा फ्राॅड की सूचना दिये जाने के बाद भी कोई कदम नहीं उठाता है तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की गाइड लाइन के मुताबिक ग्राहक की शून्य जिम्मेदारी होगी। यानि ग्राह जिम्मेदार नहीं होगा। हालांकि कोर्ट के आदेशानुसार अगर रकम ग्राहक की लापरवाही के चलते निकाली गई है तो इसके लिये बैंक जिम्मेदार नहीं होगा।
याची आनंद केसरवानी के खाते से ऑनाइन फ्राॅड करके रुपये निकाले गए, जिसके बाद उन्होंने बैंक से शिकायत की, लेकिन उसके बाद भी उनके खाते से रुपये निकाले जाते रहे। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद के धूमनगंज थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया। याची के वकील आदर्श सिंह कहते के मुताबिक पंजाब नेशनल बैंक की सूबेदारगंज शाखा में याची के सैलेरे अकाउंट में 4 लाख रुपये से अधिक की रकम थी। 21 फरवरी 2019 को अज्ञात नंबर से आए फोन काॅल पर उनके खाते में पेंशन की रकम डालने के नाम पर ओटीपी मांग ली गई। इसके बाद खाते से चार किस्तों में एक लाख रुपये निकाले गए। बैंक के टाॅल फ्री नंबर पर शिकायत दर्ज कराने और धूमनगंज थाने में मुकदाम दर्ज कराने के बाद भी बैंक की ओर से कोई कदम नहीं उठाा गया। इसके चलते खाते से 22 और 23 फरवरी 2019 को भी एक-एक लाख रुपये निकाले गए।
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इस मामले में याची की ओर ऑनालाइन फ्राॅड कर निकाली गई रकम वापस दिलाने के लिये इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। हालांकि बैंक की ओर से इसका यह कहकर विरोध किया गया कि याची द्वारा ओटीपी बताए जाने के चलते एक लाख रुपये की रकम निकाली गई। हालांकि बैंक ने माना कि सिस्टम की गड़बड़ी के चलते खाता सीज नहीं हो सका। कोर्ट का कहना था कि शिकायत के बाद भी बैंक ने खाता सीज करने में देरी की। आरबीआई की गाइडलाइन के क्लाॅज नौ के तहत बैंक रकम वापस करने के लिये जिम्मेदार है।