याचीगण के अधिवक्ता विजय गौतम का तर्क था कि मानवाधिकार आयोग को हर्जाना लगाने का अधिकार नहीं है। सिर्फ मानवाधिकार आयोग संस्तुति कर सकता है। कहां गया कि यूपी अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की दण्ड एवं नियमावली-1991 के नियम-14(1) की कार्यवाही किये बिना तथा वगैर सुनवाई का अवसर प्रदान किये पुलिस कर्मियों से हर्जाने की धनराशि नहीं वसूली जा सकती।
मामले के अनुसार थाना कासना जनपद गौतमबुद्धनगर में मु अ सं-187/2001, धारा- 420, 406, 467, 471, 120बी आई पी सी में अभियुक्त डॉ. सुधीर चन्द्रा के साथ उचित व्यवहार न करने एवं विवेचना में लापरवाही बरतने के सम्बन्ध में आरोपी डॉ. सुधीर चन्द्रा ने मानवाधिकार आयोग को उपनिरीक्षक सत्यपाल सिंह सिसोदिया व उपनिरीक्षक नरेन्द्र प्रसाद के विरूद्ध शिकायत की थी। मानवाधिकार आयोग द्वारा दिनांक एक फरवरी 2017 को आदेश पारित करते हुए यह निर्देशित किया गया था कि प्रश्नगत प्रकरण में मानवाधिकारों का उल्लंघन होना पाया गया। परिणाम स्वरूप एक लाख पचास हजार रूपये की धनराशि बतौर मुआवजा आरोपी डॉ. सुधीर चन्द्रा को देने के आदेश पारित किये गये।
तत्पश्चात दिनांक सात अगस्त 2017 को विशेष सचिव गृह उत्तर प्रदेश शासन द्वारा यह आदेश पारित किया गया कि राज्यपाल महोदय, ने पीड़ित डॉ. सुधीर चन्द्रा गौतमबुद्धनगर को एक लाख पचास हजार रूपये की धनराशि अन्तरिम सहयता के रूप में भुगतान किये जाने की स्वीकृति प्रदान की है। शासन द्वारा यह निर्देशित किया गया कि दोषी पुलिस कर्मियों के विरूद्ध नियमानुसार विभागीय कार्यवाही सुनिश्चित करके दोषी पुलिस कर्मियों पर वसूली का दण्ड अधिरोपित कर नियमानुसार वसूली की जाय।
यह कि मानवाधिकार आयोग के आदेश दिनांक एक फरवरी 2017 एवं विशेष सचिव गृह उत्तर प्रदेश शासन के आदेश दिनांक सात अगस्त 2017 के अनुपालन में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गौतमबुद्धनगर द्वारा दिनांक 15 अगस्त 2017 को आदेश पारित करते हुए 75-75 हजार रूपया उपनिरीक्षक सत्यपाल सिंह सिसोदिया व नरेन्द्र प्रसाद से वसूलने के आदेश पारित किये गये।
न्यायालय ने उमाशंकर शाही बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य तथा राजेश कुमार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य में दी गयी विधि की व्यवस्था को मानते हुए पुलिस कर्मियों के विरूद्ध हर्जाने की धनराशि वसूलने के आदेश को निरस्त कर दिया है। न्यायालय ने विपक्षी पार्टियों को यह छूट दी है कि कानून के तहत एवं सुनवाई का अवसर प्रदान करते हुए नये सिरे से आदेश पारित किये जा सकते हैं।
by Prasoon Pandey