नीमूचाना जैसे वीभत्स कांड के समय महात्मा गांधी सहित आजादी के आंदोलन के सभी प्रमुख नेताओं के ध्यान और चिंता मेें अलवर के आंदोलन को स्थान मिला। यहां का प्रजामंडल आंदोलन भी अनूठा रहा। आज के राजस्थान की नींव भी मत्स्य संघ से पड़ी। स्वतंत्रता आंदोलन और इसके तत्काल बाद महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद का अलवर से सम्पर्क रहा। रियासतकाल में यहां के राजाओं को राजऋषि की उपाधि मिली।
अलवर के उल्लास, इतिहास, उत्साह, विरासत, शौर्य और जीवट को किसी उत्सव में बांधना सरल नहीं है। पर प्रशासन की पहल अच्छी है। इसमें नागरिकों की भागीदारी की कमी खल रही है। इसमें सुधार की दरकार है। एप गुरु इमरान जैसे उत्साही लोगों की नई पहचान वाला है अलवर। आज राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होकर अलवर इतराए या चिंता करे यह भी शोध का विषय है।
मत्स्य उत्सव के आयोजक भी इस बार की कमियों से सबक लेकर अगली बार जनभागीदारी से इसे और बड़ा बनाएं। मत्स्य उत्सव एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन सकता है जो अलवर में पर्यटन की संभावनाओं के द्वार खोल सकता है। सरिस्का दिल्ली के लिए शुद्ध हवा के चेम्बर के रूप में प्रसारित किया जा सकता है। टाइगर टूरिजम की अपार संभावनाएं हैं यहां। दिल्ली-आगरा-जयपुर को अगर पर्यटन के लिहाज से गोल्डन ट्रायंगल कहा जाता है। मत्स्य उत्सव जैसे आयोजनों के बूते हममें इस गोल्डन ट्रायंगल का हीरा बनने की हर संभावना मौजूद है। बस चार दिन नहीं साल भर अलवर की जय का उत्सव मनना चाहिए।