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अपना अलवर : चार दिन नहीं साल भर मनना चाहिए अलवर की जय का उत्सव, पढि़ए पत्रिका में अलवर को लेकर यह विशेष लेख

Alwar : अलवर जबर हठीलो… कवि कन्हैयालाल सेठियां ने धरती धौरां री में अलवर का कुछ इस तरह की जिक्र किया है। पढ़ें अलवर में कितनी हैं संभावनाएं।

अलवरNov 23, 2019 / 01:24 pm

Hiren Joshi

Apna Alwar : Alwar Matsya Utsav Alwar History Alwar City Tourism

अपना अलवर : चार दिन नहीं साल भर मनना चाहिए अलवर की जय का उत्सव, पढि़ए पत्रिका में अलवर को लेकर यह विशेष लेख

हीरेन जोशी
अलवर. मत्स्य उत्सव की सभी को बधाई। कवि कन्हैयालाल सेठिया ने जब धरती धोरां री में अलवर का जिक्र किया तो इस क्षेत्र के मिजाज का मर्म सामने रख दिया। उन्होंने लिखा कि, ईं रो अलवर जबर हठीलो। यह हठ कभी शौर्य की निशानी था। महा जनपदकाल के मत्स्य देश से अलवर बनने तक की यात्रा रोचक रही। अलवर सदा चर्चा में रहा। यहां तक कि वाल्मीकि रामायण में भी इस क्षेत्र का उल्लेख है। इसी क्षेत्र में महाभारत के वन पर्व और विराट पर्व की कथाएं साक्षात हुई थी। जन-जन के आराध्य की पांडुपोल हनुमान की विश्राम स्थली इसका गवाह है। योगी भर्तृहरि के वैराग्य का गवाह है मत्स्य क्षेत्र। गाल्लव ऋषि ने भी यहां तप किया था। हसन खां मेवाती का मादर-ए-वतन से प्रेम। उनका महान राणा सांगा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आततायी बाबर के खिलाफ लडऩे का गवाह है अलवर। अलवर को हेमू के सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य बनने का गर्व सदा रहेगा। राव तुलाराम के देशप्रेम का अनुकरण करने वाला है अलवर। बाबा हीरानाथ, बाबा खेतानाथ, बाबा मस्तनाथ की धरती है अलवर। यहां अलीबख्श ने कृष्ण भक्ति की अनूठी परंपरा को पल्लवित किया। काठ नवे पर राठ न नवे स्वभाव है यहां का। काल यात्रा में आधुनिक अलवर की नींव पडऩे से पहले ही इसका गौरवशाली इतिहास रहा था। उलूर से अलवर बनना भी अलवर के हठ का गवाह है। महान संन्यासी स्वामी विवेकानंद के प्रवास और प्रारम्भिक उपदेशों का गवाह है अलवर। यह विरासत भी मत्स्य उत्सव में शामिल होनी चाहिए। अपना अलवर इतिहास के हर मोड़ पर सजग नजर आया। कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक सुर्खियों से अलवर का नाम चर्चा में आता रहा।
नीमूचाना जैसे वीभत्स कांड के समय महात्मा गांधी सहित आजादी के आंदोलन के सभी प्रमुख नेताओं के ध्यान और चिंता मेें अलवर के आंदोलन को स्थान मिला। यहां का प्रजामंडल आंदोलन भी अनूठा रहा। आज के राजस्थान की नींव भी मत्स्य संघ से पड़ी। स्वतंत्रता आंदोलन और इसके तत्काल बाद महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद का अलवर से सम्पर्क रहा। रियासतकाल में यहां के राजाओं को राजऋषि की उपाधि मिली।
अलवर के उल्लास, इतिहास, उत्साह, विरासत, शौर्य और जीवट को किसी उत्सव में बांधना सरल नहीं है। पर प्रशासन की पहल अच्छी है। इसमें नागरिकों की भागीदारी की कमी खल रही है। इसमें सुधार की दरकार है। एप गुरु इमरान जैसे उत्साही लोगों की नई पहचान वाला है अलवर। आज राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होकर अलवर इतराए या चिंता करे यह भी शोध का विषय है।
मत्स्य उत्सव के आयोजक भी इस बार की कमियों से सबक लेकर अगली बार जनभागीदारी से इसे और बड़ा बनाएं। मत्स्य उत्सव एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन सकता है जो अलवर में पर्यटन की संभावनाओं के द्वार खोल सकता है। सरिस्का दिल्ली के लिए शुद्ध हवा के चेम्बर के रूप में प्रसारित किया जा सकता है। टाइगर टूरिजम की अपार संभावनाएं हैं यहां। दिल्ली-आगरा-जयपुर को अगर पर्यटन के लिहाज से गोल्डन ट्रायंगल कहा जाता है। मत्स्य उत्सव जैसे आयोजनों के बूते हममें इस गोल्डन ट्रायंगल का हीरा बनने की हर संभावना मौजूद है। बस चार दिन नहीं साल भर अलवर की जय का उत्सव मनना चाहिए।

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