&मैंने 25 साल पहले लोक कला को अपनाया और जयपुर घराने के रूप सिंह राठौड़, अंतरराष्ट्रीय कलाकार ओम राणा और अलवर के गिर्राज बांबी ग्रुप में भी काम किया। मैंने पहली बार अलवर में फायर डांस की प्रस्तुति दी। इसके बाद और भी लोग इससे जुड़ गए। 25 साल में यह पहला मौका है जब मैं काम के लिए भटक रहा हूं। 5 महीने पहले तक मेरे पास 15 ग्रुप थे जिनमें डेढ़ सौ से 200 कलाकार थे। काम बंद होने से पेट भरना मुश्किल हो गया है। आज मैं ठेली लगाकर अपना पेट भर रहा हूं। हमें सरकार मदद करने करें तो बहुत से कलाकारों की कला बच जाएगी।
बबलू राजा, कलाकार
&जन्माष्टमी हो या महाशिवरात्रि कोई त्योहार खाली नहीं जाता था। समाज के सामाजिक आयोजनों में भी बढ़ चढ़कर प्रस्तुति दी जाती थी। लेकिन न जाने किसकी नजर लगी कि सब कुछ पीछे छूट गया। नृत्य कला मेरी पहचान थी। इससे मेरी रोजी-रोटी चलती थी। लॉकडाउन ने सब कुछ छीन लिया। मैंने अपना कबाड़ी का काम छोड़ दिया था, लेकिन आज मैं फिर से वही काम करने लगा हूं।क्योंकि परिवार को चलाने की जिम्मेदारी मुझ पर है। पिता का साया भी नहीं है। मैंने राधा-कृष्ण शिव-पार्वती कृष्ण सुदामा की नृत्य नाटिका दिखाकर लोगों का खूब मनोरंजन किया। लेकिन आज पेट भरना मुश्किल है। कबाड़ी का काम भी नहीं चल पा रहा। सरकार ने हमारे जैसे कलाकारों के लिए आज तक कुछ नहीं किया।
घनश्याम वर्मा, कलाकार