पिछले साल जिले में 28 दिन तक के 244, एक साल तक के 194 और 5 साल तक की आयु के कुल 499 शिशुओं की मौत हुई है। इसमें लक्ष्मणगढ़ में 48, मालाखेड़ा में 50, खेरली में 47, राजगढ़ में 28, रैणी में 34, थानागाजी में 50, गोविंदगढ़ में 37, शहरी क्षेत्र में 20, उमरैण में 36 एवं रामगढ़ में 149 शिशुओं की मौत हुई है।
बीमार नवजात शिशुओं की स्थानीय स्तर पर ही बेहतर देखभाल के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में एनबीएस यूनिट संचालित की जा रही है। इनमें प्रीमैच्योर बेबी, कम वजन के शिशु, सांस संबंधी परेशानी एवं पीलिया व डायरिया से ग्रसित नवजात शिशुओं को भर्ती कर इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, लेकिन यहां मरीजों को भर्ती करने के स्थान पर रेफर किया जा रहा है। यही वजह है कि अक्टूबर में 17 में से 7 यूनिट में एक भी शिशु को भर्ती नहीं किया गया। वहीं, कई ऐसी यूनिट्स है जहां मरीजों को भर्ती करने के बाद सभी को रेफर किया जा रहा है। इसके कारण जिला अस्पताल पर भी मरीजों को दबाव कम नहीं हो रहा है।
नियमानुसार बच्चे के जन्म के बाद उसके अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी घर जाकर स्वास्थ्य संबंधी जांच करने का प्रावधान है। इसके तहत आशा सहयोगिनी के लिए 6 विजिट, एएनएम के लिए 2 और कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर (सीएचओ) का एक विजिट अनिवार्य है। इस दौरान शिशु के घर जाकर पीलिया, निमोनिया, त्वचा व आंखों के संक्रमण एवं सांस संबंधी परेशानी सहित कई तरह की जांच करनी होती है। इसके साथ ही शिशु दूध पी रहा है या नहीं और स्वच्छता का ध्यान रखा जा रहा है या फिर नहीं ऐसे कई बिंदुओं को भी जांचना होता है, लेकिन विभागीय कार्मिकों की ओर से विजिट के नाम पर खानापूर्ति कर काम चलाया जा रहा है।
सभी बच्चों की मॉनिटरिंग की जा रही है। विभाग की ओर से एक-एक बच्चे की मौत की सोशल ऑडिट कर कारणों का पता लगाया जाता है। जो भी कमियां हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।
डॉ. अरविंद गेट, आरसीएचओ।