राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण (एनटीसीए) की मंजूरी के बाद सरिस्का में लंबे समय से रणथंभौर से युवा नर बाघ लाने की कवायद चल रही थी। रणथंभौर में पहले टी-64 को सरिस्का भेजने के लिए चिह्नित किया गया, लेकिन इस प्रक्रिया में अड़चन आ गई। बाद में बाघ टी-66 व टी-75 को चिह्नित किया गया और अन्तत: टी-75 को सरिस्का भेजने का निर्णय किया गया। बाघ लाने की यह प्रक्रिया भी रणथंभौर से जुड़े कुछ वन्यजीव विशेषज्ञों की चिंता के बाद अटक गई थी, लेकिन सरिस्का प्रशासन ने हार नहीं मानी। आखिरकार सोमवार सुबह बाघ टी-75 को टे्रंक्यूलाइज कर सरिस्का ले आया गया। रणथंभौर के सीसीएफ मनोज पाराशर, डीएफओ मुकेश सैनी व सरिस्का के डीएफओ एसआर यादव बाघ को लेकर आए। शाम करीब 5 बजे बाघ सरिस्का पहुंचा और करीब 5 बजकर 5 मिनट पर बाघ को पिंजरे से आजाद कर एनक्लोजर में छोड़ दिया गया। एनक्लोजर में पहले ही बाघ के भोजन के लिए शिकार बांधा हुआ था। हालंकि एनक्लोजर में पानी की समुचित व्यवस्था नहीं थी लेकिन बाद में वाटर होल्स में पानी डलवा दिया गया।
सडक़ मार्ग से लाया गया रणथंभौर से बाघ को सडक़ मार्ग से सरिस्का लाया गया। रणथंभौर व सरिस्का के अधिकारी कैंटर में रखे पिंजरे में बाघ को लेकर सरिस्का पहुंचे। बाघ को दौसा, सैंथल, गोलाकाबास होते हुए सरिस्का लाए। इस मौके पर सरिस्का के सीसीएफ घनश्याम शर्मा, जयपुर से आए वन्य जीव चिकित्सक अरविंद माथुर मौजूद थे।
रणथंभौर से लाया गया बाघ पूरी तरह स्वस्थ्य है। उसने भोजन के लिए बांधा गया शिकार भी मारकर खाया है। रेडियो कॉलर लगे होने से उसकी पल-पल की गतिविधियों पर अधिकारी नजर रखे हुए हैं।
-सेढूराम यादव, डीएफओ, सरिस्का बाघ परियोजना।