यहां के एक एसई ने पहले ही आरक्षित दर पर प्लॉट ले रखा था, अब इन्होंने सूर्य नगर में एक कॉर्नर का प्लॉट लाटरी में निकलवा लिया। सी ब्लॉक में कार्नर के एक प्लॉट को हर बार बोली से हटा दिया गया जबकि इसके कई खरीददार परेशान होते रहे। इस प्लॉट पर पहले से अधिकारियों की नजर थी।
इसी प्रकार सिंचाई विभाग से नगरीय विकास में मर्ज हुए एक अधिशासी अभियंता ने भी बुध विहार में एक प्लॉट पर नजर बना रखी थी जिसे लाटरी में ले लिया। ये अभियंता नगर परिषद में भ्रष्टाचार के मामले में पूरे राज्य में चर्चित हैं।
बोली में लगने नहीं दिया- इस तरह अलवर यूआईटी के अधिकारियों ने अपने-अपने प्लॉट पहले से ही छांट रखे थे जिन्हें बोली में नहीं लगने दे रहे थे। इसका परिणाम यह रहा कि इन्होंने लाटरी में चाहे कोई भी अंक आए हो लेकिन इन्होंने तो अपनी मजी से प्लॉट ले लिया। कई अधिकारियों ने पहले ही लाटरी शीट में अपने प्लॉट का नंबर और कॉलोनी का नाम भर दिया। इसके बाद दिखाने को लाटरी निकाली गई। इस लाटरी के समय आए अतिरिक्त जिला कलक्टर के आगे औपचारिकता की गई जिससे इनको मनमर्जी से प्लॉट मिल सके। लाटरी में प्लॉट निकलने का नियम सहायक कर्मचारियों तक ही लागू किया गया जिनको उनकी किस्मत से ही प्लॉट का नंबर मिल सका। इस बारे में यूआईटी के कार्य वाहक सचिव जितेन्द्र नरुका कहते हैं कि लाटरी निकालते समय वीडियो ग्राफी करवाई गई थी जिसमें किसी प्रकार की अनियमिता नहीं की गई है।