कृषि अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिक पीएस चौरसिया ने बताया कि मैनपाट की जलवायु ठंडी है, यह मौसम काफी हद तक हिमाचल प्रदेश से मिलता-जुलता है। इसके साथ ही पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना से भी अलग-अलग प्रकार के फलों के बीज लाए गए थे, उसमें अंगूर, आलू बटाटा, अनानास, नाशपाती शामिल हंै। इनका सफल प्रशिक्षण कर अंगूर व नासपाती सहित सभी प्रकार के फलों की खेती की जा रही है।
तीन एकड़ जमीन पर सफल परीक्षण
इंदिरा गांधी कृषि अनुसंधान केंद्र ग्राम बरिमा के एक एकड़ व केसरा की 2 एकड़ जमीन पर सेब के उत्पादन का सफल प्रयोग किया है, अब फसल भी शुरू हो गई है। बताया जा रहा है कि यहां सेब का प्लांटेशन भी तैयार किया जा रहा है। एक सेब के पौधे में कम से कम 15 किलो तक फल प्राप्त किया जा रहा है। जैसे-जैसे पेड़ बड़े होंगे, उसका प्रबंधन ठीक से किया जाएगा।
कम ठंड वाली बीज होने की वजह से मैनपाट के किसान सेब की फसल को लगाकर ज्यादा आय प्राप्त कर सकते हैं। जानकारों के अनुसार एक पौधे से किसान एक वर्ष के बाद से ही फसल प्राप्त कर सकते हैं। सेब का पौधा जैसे-जैसे बड़ा होता है, उससे किसान ज्यादा फसल प्राप्त कर सकते हैं।
ग्रीन व लाल सेब दोनों का किया जाएगा उत्पादन
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार हिमाचल प्रदेश से जो सेब बीज लाए गए हैं। उससे ग्रीन व लाल सेब दोनों ही प्राप्त किए जा सकते हंै। ग्रीन सेब मिलने की वजह से अब बाजार में इसकी शार्टेज नहीं होगी।
अनुसंधान केंद्र से तिब्बती केंद्र क्रमांक-4 के किसान डुडुप, कुदारीडीह के कपिल राम बघेल, बरिमा के मनमोहन यादव, रोपाखार के रजनीश कुमार सहित अन्य किसानों को सेब बीज दिए गए हंै। उनके द्वारा 15 एकड़ से अधिक भूमि पर सेब की खेती की जा रही है। इसके साथ ही काला व हरा अंगूर, आलू बुखारा, नाशपाती व अनानास की भी खेती की जा रही है।
इन प्रजातियों का हुआ परीक्षण
हिमाचल प्रदेश से सेब की अलग-अलग प्रजाति अन्ना, ट्रासेड गोल्डन, गेलगाला, जिप्सन गोल्डन का उत्पादन किया जा रहा है। इन सभी प्रजातियों के सेब मैनपाट के जलवायु से मैच कर गए हैं।
हिमाचल प्रदेश से काफी मिलती है यहां की जलवायु
हिमाचल प्रदेश व मैनपाट की जलवायु लगभग मिलती-जुलती है। सेब सहित अन्य फलों का भी उत्पादन मैनपाट में शुरू हो गया है। बेहतर प्रबंधन के साथ सेब की अच्छी फसल प्राप्त की जा सकती है।
पीसी चौरसिया, कृषि वैज्ञानिक, आलू एवं शीतोष्ण अनुसंधान केंद्र
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