चैती छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल षष्ठी यानी सोमवार की संध्या पहर में अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की पूजा संपन्न हो गई। शहर सहित जिले के विभिन्न छठ घाटों पर श्रद्धालु भगवान भास्कर को अघ्र्य देते नजर आए। व्रती महिला -पुरुष ने स्नान -ध्यान कर पीला व लाल वस्त्र धारण कर पूरी पवित्रता के साथ हाथों में बांस की सूप में फल ठेकुआ, ईख, नारियल रखकर डूबते हुए सूर्य अघ्र्य दान किया। पिछले दो वर्षों से कोरोना संक्रमण काल के कारण लोग काफी कम संख्या में छठ व्रत किया था।
छत व्रत चार दिनों का होता है। पहले दिन शनिवार को नहान खान के साथ व्रत शुरू हुआ था। दूसरे दिन रविवार को खरना के साथ व्रतियों ने ३६ घंटे का निर्जला उपवास रखा और सोमवार की शाम को डूबते सूर्य को अघ्र्य दिया। पर्व के चौथे और अंतिम दिन यानी मंगलवार की सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद श्रद्धालुओं का व्रत संपन्न हो जाएगा। इसके बाद व्रती अन्न-जल ग्रहण कर पारण करेंगे।
चैती छठ का विशेष महत्व है। अधिकांश लोग मन्नत पूरी करने के लिए यह व्रत करते हैं। कई व्रती अपने घरों से दंडवत देते हुए छठ घाटों तक पहुंचे। इस दौरान व्रतियों के आगे-आगे सिर पर दउरा लेकर खाली पैर लोग चल रहे थे।
३६ घंटे के निर्जला उपवास के बावजूद भी श्रद्धालु पूरी आस्था के साथ छठ की तैयारी में लगे रहे। पूरे दिन श्रद्धालु अपने-अपने घरों में प्रसाद बनाने का काम चलता रहा। छठ का मुख्य प्रसाद ठेकुआ बनाने में व्रती सुबह से ही लगे हुए थे। हालांकि व्रतियों के साथ घर के सदस्यों ने भी उनका हाथ बंटाया।