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अंबिकापुर

सीएम साहब! ये तस्वीर एक स्कूल की है, यहां तिरपाल के नीचे लगती है बच्चों की क्लास

स्कूल भवन हो चुकी है जर्जर, चौथी के गनेश्वर को स्कूल के भीतर पढऩे से लगता है डर, भविष्य गढऩे की है विवशता

अंबिकापुरJul 25, 2018 / 02:12 pm

rampravesh vishwakarma

Class under the tarpaulin

Children class

अंबिकापुर. सरगुजा जिले के उदयपुर विकासखंड अंतर्गत ग्राम जरहाडीह के प्राथमिक शाला का कक्षा चौथी का छात्र गनेश्वर को स्कूल भवन के भीतर बैठकर पढऩे से डर लगता है। डर इस बात का कि स्कूल की छत भरभरा कर गिर न जाए।
अब गनेश्वर और उसके साथ स्कूल में पढऩे वाले प्राथमिक स्कूल जरहाडीह के पहली से पांचवीं तक के सभी 17 बच्चे किचन शेड के बगल में तिरपाल के के नीचे ककहरा सीखकर भविष्य गढ़ रहे हैं। शहर से लेकर गांव-गांव तक शिक्षा के अधिकार का नारा लगाने वाली सरकार के लिए ये तस्वीर जमीनी हकीकत से वाकिफ कराने के लिए काफी है।

उदयपुर विकास खण्ड मुख्यालय से सलका मुख्य मार्ग पर महज २ किलोमीटर की दूरी पर स्थित करीब 250 की आबादी वाले ग्राम जरहाडीह के प्राथमिक शाला के भवन की स्थिति काफी जर्जर है। यह कभी भी भरभरा कर गिर सकता है।
School building
भवन की जर्जर स्थिति को देखते हुए विद्यालय में पदस्थ शिक्षक नंदलाल सिंह द्वारा वर्ष 2011 से ही विकास शिक्षा अधिकारी कार्यालय उदयपुर में प्रत्येक वर्ष भवन के जर्जर होने की सूचना और मरम्मत की मांग की जा रही है। लेकिन विभागीय अधिकारियों को इसकी सुध लेने की भी फुर्सत नहीं मिल पाई है।
इस गांव के गरीब परिवार के अधिकतर बच्चों को ऐसी ही स्थिति से हर साल दो चार होना पड़ रहा है। विकल्प के तौर पर उपयोग करने के लायक यहां कोई शासकीय भवन भी नहीं है जिसे स्कूल के उपयोग में लाया जा सके।

चार सत्र से झेल रहे परेशानी
विगत चार शिक्षा सत्र में बरसात के मौसम में स्कूल की भवन के भीतर कक्षाएं न लगाकर गांव के ही किसी ग्रामीण के बारामदे में शिक्षण कार्य कराया जा रहा था। इस सत्र में ग्रामीणों के छोटे-छोटे घरों के बारामदे में स्कूल संचालन संभव नहीं हो पा रहा था तब विवश होकर स्कूल में पदस्थ दोनों शिक्षक नंदलाल सिंह एवं पूनम शाक्य ने किचन शेड के बगल में बांस के खंभों के सहारे तिरपाल लगाकर तंबू बनाया और अब वहीं नियमित कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है।

मुझे नहीं है जानकारी
तंबू में स्कूल लगाए जाने के संबंध में मुझे सूचना नहीं है। वैसे भी जर्जर स्कूल भवनों के विकल्प के तौर पर गांव में आसपास में स्थित किसी अन्य शासकीय भवन को उपयोग करने के निर्देश पहले ही दिए गए हैं।
डॉ. डीएन मिश्रा, बीईओ, उदयपुर

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