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अंबिकापुर

आजादी के 73 वर्ष बाद भी 300 की आबादी वाले इस गांव में सडक़-बिजली और पानी के लिए संघर्ष, राशन लेने जाते हैं 22 किमी

Shameful: सरगुजा जिले के ग्राम पंचायत (Gram Panchayat) डूमरडीह के आश्रित गांव परसाढोढ़ी का ऐसा है हाल, सरगुजा (Surguja) से कई मंत्री (Minister) बने पर किसी ने इस गांव की नहीं ली सुध, हां, वोट लेने जरूर पहुंचते हैं नेता

अंबिकापुरDec 03, 2020 / 06:46 pm

rampravesh vishwakarma

आजादी के 73 वर्ष बाद भी 300 की आबादी वाले इस गांव में सडक़-बिजली और पानी के लिए संघर्ष, राशन लेने जाते हैं 22 किमी

Village road

अंबिकापुर. आजादी के 73 वर्ष बाद भी सरगुजा जिले (Surguja district) में ऐसे कई गांव है जहां मूलभूत सुविधाओं से ग्रामीण वंचित हैं। आधुनिक युग में स्वास्थ्य, बिजली, सडक़ जैसी जरूरी सुविधाओं से लोग कोसों दूर हैं। यहां रहने वाले लोगों को भले ही मूलभूत सुविधाएं नसीब नहीं हुई है लेकिन ये हर बार अपना वोट उस नेता (Leaders) को देते हैं जो उनका दर्द समझ सके।
चुनाव के बाद यहां कोई झांकने तक नहीं आता है। ये लोग अपना दर्द बयां करें भी तो किससे। सरगुजा से कई विधायक-मंत्री (Minister) चुनकर आए हैं लेकिन यह गांव आज भी अपनी खुशहाली ढूंढ रहा है।

हम बात कर रहे है लुंड्रा ब्लॉक के ग्राम पंचायत डूमरडीह के आश्रित ग्राम परसाढोढ़ी की। इस गांव की आबादी 300 के करीब है। सडक़ न होने से ग्रामीणों को जंगल के पथरीली रास्ते से 22 किमी का सफर तय करना पड़ता है, तब जाकर इन्हें इलाज जैसी जरूरी सुविधा व सरकारी राशन मिल पाता है।
घने वन के रास्ते से आने-आने में जंगली जानवरों (Wild animals) का भी भय बना रहता है। वहीं बारिश के दिनों टापू जैसी स्थिति निर्मित हो जाती है। लोगों को आना-जाना पूरी तरह बंद हो जाता है।
यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर दूर है। ग्रामीणों की तकलीफ सुनने वाला कोई नहीं है। भले ही राजनीतिक दल चुनाव के दौरान वोट लेने के लिए गांव में पहुंच जाते हंै, लेकिन चुनाव जीतने के बाद गांव की सुध लेना भूल जाते हंै।
इस गांव के हालात बद से बदतर हो चुके हैं। अश्रित ग्राम परसाढोढ़ी के पंच ने बताया कि कई दशकों से यहां सडक़, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सुविधाएं (Health service) नहीं हंै।


चंदा कर ट्रैक्टर से लाना पड़ता है सरकारी राशन
आधुनिक युग में सडक़, बिजली, पानी जैसी सुविधा न होना काफी दुखद है। अगर किसी भी गांव में ये सारी सुविधा न हो तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां के लोग कैसे जीवन यापन करते होंगे। गांव में पीडीएस दुकान तक नहीं है। हितग्राहियों को सरकारी राशन लाने जाने के लिए सोचना पड़ता है।
हर महीने राशन (Ration) लाने के लिए गांव वालों को आपस में चंदा जमा करना पड़ता है। चंदा जमा कर लोग ट्रैक्टर बुक कर जंगल (Forest) व पथरीली रास्ते से होते हुए 22 किमी दूर ग्राम पंचायत डूमरडीह जाते हैं। तब जाकर इन्हें राशन मिल पाता है।

क्या कहते हैं ग्रामीण
परसाढोढ़ी निवासी कैलाश प्रसाद ने कहा कि गांव की समस्या से कई बार जनप्रतिनिधयों व अधिकारियों (Officers) के समक्ष अवगत कराया जा चुका है। इसके बावजूद भी कोई पहल नहीं की जा रही है। दशकों से गांव की यही स्थिति है। पानी के लिए भी परेशानी है। पीने के पानी के लिए काफी दूर जाना पड़ता है।
बेचन यादव का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या सडक़ (Road) की है। पथरीली सडक़ होने के कारण आने-जाने में काफी परेशानी होती है। वहीं विशेष कर बारिश के दिनों में गांव से बाहर से बाहर जाना पूरी तरह से बंद हो जाता है और न ही कोई आ सकता है। वहीं गांव में बिजली भी नहीं है। लालटेन युग में रहने को मजबूर हैं।

मूलभूत आवश्यकताओं को जल्द करेंगे पूरा
ग्राम पंचायत डूमरडीह के आश्रित ग्राम परसाढोढ़ी की समस्या आपके माध्यम से सामने आई है। ग्रामीणों को राशन के लिए 22 किमी जाना पड़ता है। इसकी जानकारी जिले के अधिकारियों से मंगवाकर पीडीएस दुकान (PDS shop) आवंटित कराने की पहल की जाएगी। मूलभूत आवश्यकताओं को भी जल्द पूरा किया जाएगा।
अमरजीत भगत, खाद्य मंत्री, छग शासन

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