उन्होंने कहा कि सोशल साइटों का उपयोग सूचनाओं के लिए प्रवाह से अधिक स्वयं को प्रदर्शित करने में हो रहा है। वर्तमान में लोग साथ में भी हैं तो शुभकामना, प्रणाम, बधाई जैसे शिष्टाचार को सोशल साइटों के माध्यम से दे रहे हैं। सच तो यह है सामने उपस्थित व्यक्ति, रिश्ते की अपेक्षा दूर के व्यक्ति को महत्व दे रहा है।
सोशल साइटों ने बढ़ाया एकाकीपन
जिला चिकित्सालय मनोचिकित्सा काउंसलर डा. माधुरी मिंज ने बताया कि नेट नहीं, हम फ्री हो गये हैं। सोशल साइटों का उपयोग युवाओं व किशोरों में ज्यादा बढ़ गया है। सोशल साइटों ने दिनचर्या को प्रभावित किया है।
अभिभावक की सावधानी से बचेगा समाज
राजीव गांधी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की अध्यक्ष डॉ. तृप्ति विश्वास ने बताया कि सोशल साइटों में आभासी (वर्चुअल) दुनिया के बढ़ते प्रभाव का कारण लोगों का आत्मकेन्द्रित होना है। सामने व्यक्ति बैठा है लेकिन दूर वाले से जुड़ा होना ठीक नहीं है। ऐसा करना वास्तविकता से दूर होना है।
सोशल साइटों की लत से पाना होगा छुटकारा
सोशल साइटों का नियंत्रित उपयोग होना चाहिए तथा इसमें समय की निश्चितता जरूरी है। उपस्थित व्यक्ति को कभी दरकिनार न करें बल्कि सोशल साइटों के मित्रों को वहां मौजूद व्यक्ति के बाद स्थान दें। सोशल साइटों के चक्कर में दिनचर्या बर्बाद नहीं करें।