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प्रदूषण कर सकता है आपके बच्चों के दिमाग को परमानेंट डैमेज: रिपोर्ट

यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वायु प्रदूषण किसी बढ़ते बच्चे के दिमाग को हमेशा के लिए डैमेज कर सकता है

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AIR POLLUTION

नई दिल्ली। दिल्ली और उत्तर भारत के इलाकों में छाये धुंध से लोगों को सांस और त्वचा संबंधित कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन यूनिसेफ ने हाल ही में इस मामले पर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है। यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वायु प्रदूषण किसी बढ़ते बच्चे के दिमाग को हमेशा के लिए डैमेज कर सकता है।

'डेंजर इन द एयर' नामक रिपोर्ट में किया गया यह दावा
यूनिसेफ ने मंगलवार को 'डेंजर इन द एयर' नाम की रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साउथ एशिया में सर्वाधिक प्रदूषण वाले इलाकों में बच्चों की संख्या सबसे अधिक हैं और वो प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। इन इलाको में विश्व के किसी भी इलाके से औसतन 6 गुना ज्यादा प्रदूषण है। यूनिसेफ ने अपने रिपोर्ट में लिखा है कि पूरे विश्व में एक साल से कम उम्र के लगभग 1 करोड़ 70 लाख से ज्यादा बच्चे सबसे प्रदूषित इलाकों में हैं जिनमें से अकेले साउथ एशिया में 1 करोड़ 22 लाख बच्चे हैं। जबकि पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 43 लाख बच्चे प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं।

प्रदुषण से ब्रेन-मेमब्रेन को होता है नुक्सान
रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से बच्चे के दिमाग को कई तरह से नुकसान पहुंच सकता है। सबसे पहले पार्टिकुलेट मैटर से ब्लड-ब्रेन मेम्ब्रेन को नुकसान पहुंचता है। दरअसल मेम्ब्रेन एक पतली सी झिल्ली होती है जो दिमाग को जहरीले पदार्थों से बचाने में मदद करती है। इसे नुकसान पहुंचने पर बच्चे के दिमाग में सूजन आ सकती है।

ट्रैफिक वाले इलाकों में दिमाग के 'वाइट मैटर' पर बुरा असर
प्रदूषित हवा में बच्चे के सांस लेने पर जहरीले मैग्नेटाइट पार्टिकल अंदर जाते हैं जो ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस पैदा करते हैं। इसकी वजह से न्यूरोडिजेनरेटिव बीमारियां होने की आशंका बढ़ती है। कई शोध को आधार मानते हुए इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिक ट्रैफिक वाले इलाकों में हवा में ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन पाया जाता है जिससे दिमाग के वाइट मैटर को नुकसान पहुंचता है। वाइट मैटर में नर्व फाइबर होते हैं जो दिमाग के अलग-अलग हिस्सों और शरीर के बीच संतुलन बनाए रखने का काम करते हैं। इसके अलावा वाइट मैटर सीखने और बढ़ने में भी मदद करता है।

जहरीले हवा से आईक्यू लेवल में गिरावट
रिपोर्ट में बताया गया है, 'एकशोध में पता चला है कि जहरीले वायु में सांस लेने वाले बच्चों का आईक्यू लेवल 5 से 4 प्वाइंट तक गिर सकता है। एक बच्चे का दिमाग बहुत संवेदनशील होता है और थोड़े से प्रदूषण से भी डैमेज हो सकता है। बच्चों पर इसलिए भी प्रदूषण का ज्यादा प्रभाव पड़ता है क्योंकि वह वयस्कों की अपेक्षा ज्यादा तेजी से सांस लेते हैं और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह से विकसित नहीं होती है। गर्भ में भी बच्चों पर प्रदूषण का प्रभाव हो सकता है, जिससे उनके दिमाग का विकास रुक सकता है।

बच्चो को अच्छा भोजन दें और मास्क पहनाए : यूनिसेफ
यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों को कम से कम प्रदूषित वातावरण में निकालें। उन्हें हमेशा मास्क पहनने कि सलाह दी गयी है। साथ ही उनके स्वास्थ्य में सुधार के लिए अच्छा भोजन और स्तनपान को बढ़ावा दें।

उत्तर भारत के कई इलाकों में है धुंध
इस समय भारत की राजधानी और अधिकांश शहर गंभीर रूप से प्रदूषण से जूझ रहे हैं, ऐसे में इस तरह कि रिपोर्ट मामले की गंभीरता पर जोर देने वाला है। उत्तर भारत को पिछले काफी हफ्तों से धुंध की मार झेलनी पड़ रही है। जिनके वजह से स्कूलों की छुट्टी घोषित की गई थी।