हरियाणा और गुजरात के कुछ जिलों में भी इसके मिलने की पुष्टि होती है। इस सांप का रंग आसपास की रेत से मेल खाता है, जिससे यह आसानी से खुद को सुरक्षित कर लेता है।
दिखने में सुंदर, लाल चिन्हों वाला करीब छह फीट लंबा रेड स्पॉट रॉयल सांप अब तेजी से दुर्लभ होता जा रहा है। यह प्रजाति पूर्णत: जहरविहीन होते हुए भी अज्ञानता के कारण अक्सर मारी जाती है, जबकि इसे मरुस्थलीय पर्यावरण और खेती का मित्र माना जाता है। गर्म रेतीले क्षेत्रों में मिलने वाला यह सांप राजस्थान के लगभग 17 जिलों में देखा जाता रहा है, लेकिन अब इसकी संख्या लगातार घट रही है।
हरियाणा और गुजरात के कुछ जिलों में भी इसके मिलने की पुष्टि होती है। इस सांप का रंग आसपास की रेत से मेल खाता है, जिससे यह आसानी से खुद को सुरक्षित कर लेता है। वन्यजीव प्रेमियों के अनुसार रेड स्पॉट रॉयल अत्यंत शर्मीला और डरपोक जीव है, जो मानव संपर्क से दूरी बनाकर रखता है। जानकारी के अभाव में लोग इसे अचानक देखकर डर जाते हैं और मार देते हैं, जो गलत है। यह प्रजाति वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 4 में संरक्षित है और इसका वध प्रतिबंधित है।
किसानों के अनुसार यह सांप खेतों में पाए जाने वाले चूहे, कीट-पतंगे, छोटे जीव और पक्षियों के अंडे खाकर फसल को नुकसान से बचाता है। जहरीले सर्पों के पास यह नहीं जाता और उन्हें देखकर तुरंत दिशा बदल देता है। मरुस्थल के कम नमी वाले गर्म इलाकों में इसकी उपस्थिति अधिक पाई जाती है। किसी जहरीले सांप से सामना होने पर यह तुरंत रेत में छिपकर अपनी रक्षा करता है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि रेड स्पॉट रॉयल अब अत्यंत दुर्लभ हो चुका है। कृषि भूमि के विस्तार, रसायनों के उपयोग, चूहों को खत्म करने वाले जहर तथा बदलते पर्यावरणीय हालात के कारण इस प्रजाति का अस्तित्व खतरे में है। लगातार घटती संख्या चेतावनी है कि मरुस्थलीय पारिस्थितिकी की यह महत्वपूर्ण कड़ी टूट सकती है। उक्त सांप को लेकर जन-जागरूकता, संरक्षण उपायों और वैज्ञानिक निगरानी की तात्कालिक आवश्यकता है, ताकि मरुस्थल के इस अद्भुत और उपयोगी जीव को बचाया जा सके।