गांव के पांव: कभी हर्रा बहेरा के पेड़ों से हरा भरा था यह गांव, ग्रामीणों ने रख दिया हर्राटोला
औषधियुक्त पेड़ों को बचाने युवा कर रहे संरक्षण की पहल, गांव में आज भी अधिक संख्या में मौजूद है पेड़
गांव के पांव: कभी हर्रा बहेरा के पेड़ों से हरा भरा था यह गांव, ग्रामीणों ने रख दिया हर्राटोला
अनूपपुर। औषधियुक्त पेड़ों में हर्रा-बहेरा के नाम अग्रणी लिए जाते हैं। घरेलू जरूरतों के साथ औषधि में उपयोग होने वाले इस पेड़ के फल आज भी हर्री गांव की पहचान बने हुए हैं। कोतमा जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत कटकोना में शामिल ग्राम हर्री का नाम यहां स्थित हर्रा-बहेरा पेड़ के अधिक संख्या में पाए जाते थे। जिसे ग्रामीणों ने इसे हर्रा के नाम पर हर्री रख दिया। आज भी गांव में अधिक संख्या में यह पेड़ उगे हैं। ग्राम पंचायत कटकोना अंतर्गत 4 गांव स्थित है। जिसमें हर्री में लगभग 730 की आबादी निवासरत है।
औषधीय कार्य में भी उपयोग
गांव के स्थानीय निवासी प्रवीण कुमार उपाध्याय ने बताया कि हर्रा का पेड़ औषधीय कार्यों में भी उपयोग किया जाता है। जिसके उपयोग आज भी ग्रामीण पाचन संबंधी समस्याओं में इसका सेवन करते हैं । इसकी जानकारी गांव के लगभग सभी ग्रामीणों को होने से इसका लाभ सभी को प्राप्त होता है। वहीं विनय कुमार ने बताया कि गांव का नाम हर्रा के पेड़ पर पड़ा था। इसकी कहानी वह अपने पूर्वजों से सुनते चले आ रहे हैं । लगभग 200 वर्ष पूर्व उनके पूर्वज इस गांव में आकर बसे थे, तब यह पूरी तरह सिर्फ हर्रा-बहेरा के पेड़ से हरी-भरी और जंगल की भांति नजर आता था। बाद में आबादी बढ़ती गई और ग्रामीणों ने जरूरतों के अनुसार इन पेड़ों की कटाई कर अपने घर और खेत बना लिए। पूर्व की भांति अब पेड़ो की तादाद वैसी नहीं रही, हर्रा बहेरा के जंगल की संख्या घटती गई है। लेकिन जो बचे हैं उनके संरक्षण में गांव के युवा आगे आ रहे हैं। इसमें गांव के बुजुर्ग भी उनकी मदद कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इसी हर्रा-बहेरा से इस गांव का अस्तित्व बना है इसके नाश से गांव के अस्त्वि पर प्रभाव पड़ सकता है।
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