लखनऊ में हुई बैठक बीते रविवार को लखनऊ में आयोजित हुई ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक के बाद जफरयाब जिलानी (Zafaryab Jilani) और मौलाना उमरेन महफूज रहमानी (Umren Mahfooz Rehmani) का कहना है कि वह 30 दिन के अंदर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे। बोर्ड की तरफ से राजीव धवन (Rajiv Dhawan) ही वकील होंगे। जिलानी और रहमानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनकी समझ से परे है। हम इस मामले में इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट गए थे, न कि कहीं और जमीन लेने के लिए। जिलानी ने कहा कि मस्जिद की जमीन अल्लाह की होती है। हम दूसरी जमीन कबूल नहीं कर सकते। यह हमारी शरीयत के खिलाफ है।
रिव्यू पिटीशन के लिए ये हैं 3 प्रमुख आधार 1- जब 22/23 दिसंबर 1949 की रात बलपूर्वक मूर्तियां रखी गईं तो उनको ‘देवता’ कैसे मान लिया गया। 2- जब बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा और नमाज पढ़ा जाना साबित माना गया है तो मस्जिद की जमीन को किस आधार पर दे दिया गया।
3- मस्जिद की जमीन के बदले में दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है, जबकि खुद माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने दूसरे निर्णयों में स्पष्ट कर रखा है कि अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करने की माननीय न्यायमूर्तियों के लिए कोई सीमा निश्चित नहीं है।
फैसले पर बंटा मुस्लिम पक्ष वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के फैसले से मामले के मुख्य पक्षकार इकबाल अंसारी (Iqbal Ansari) और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने किनारा कर लिया है। इकबाल अंसारी का कहना है कि मुस्लिम पक्ष के पांच पक्षकार हैं। कोई क्या कह रहा है, इससे हमें कोई लेना-देना नहीं। हम कोई रिव्यू याचिका दाखिल नहीं करेंगे। इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं है, जब फैसला वही रहेगा। इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ेगा। दूसरी तरफ, सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर फारूकी (Zafar Farooqui) ने कहा कि हम पुनर्विचार याचिका दाखिल न करने के अपने फैसले पर अडिग हैं। हालांकि पांच एकड़ जमीन को लेकर पर्सनल लॉ बोर्ड के नजरिए पर वह गौर करेंगे। सुन्नी वक्फ बोर्ड 26 नवंबर को इस पर चर्चा करेगा।