रामलला से मांगी जा रही माफी, हो रहा प्रायश्चित, इसके पीछे की वजह जान हो जाएंगे हैरान
अयोध्या में राम मंदिर समारोह की शुरुआत सबसे पहले प्रायश्चित पूजा से होगी। इस पूजा के स्टार्ट होते ही प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की विधवत शुरुआत हो जाएगी। आज यानी मंगलवार को सुबह 9:30 बजे से प्रायश्चित पूजा की शुरुआत हो गई है, जो लगभग 5 घंटे तक चलने वाली है।
भगवान श्रीराम की नगरी यानी अयोध्या में आज से 22 जनवरी तक लगातार जाप-मंत्रों की गूंज से पूरी अयोध्या राममय होने वाली है। अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर आज से विधवत पूजा-अनुष्ठान का आगाज होने वाला है।
राम मंदिर समारोह की शुरुआत सबसे पहले प्रायश्चित पूजा से होगी और इसके साथ ही प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की विधवत शुरुआत हो जाएगी। आज यानी मंगलवार को सुबह 9:30 बजे से प्रायश्चित पूजा की शुरुआत होगी, जो करीब अगले 5 घंटे तक चलेगी। 121 ब्राह्मण इस प्रायश्चित पूजन को संपन्न कराएंगे। इस प्रायश्चित पूजन से ही रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की शुरुआत मानी जाएगी। तो चलिए जानते हैं कि आखिर यह प्रायश्चित पूजा क्या है और राम मंदिर अनुष्ठान में कितने नियम होते हैं।
क्या होती है प्रायश्चित पूजा?
दरअसल, प्रायश्चित पूजा पूजन की वह विधि होती है, जिसमें शारीरिक, आंतरिक, मानसिक और बाह्य इन तीनों तरीके का प्रायश्चित किया जाता है। धार्मिक जानकारों और पंडितों की मानें तो वाह्य प्रायश्चित के लिए 10 विधि स्नान किया जाता है।
इसमें पंच द्रव्य के अलावा कई औषधीय व भस्म समेत कई सामग्री से स्नान किया जाता है। इतना ही नहीं, एक और प्रायश्चित गोदान भी होता है और संकल्प भी होता है। इसमें यजमान गोदान के माध्यम से प्रायश्चित करता है। कुछ द्रव्य दान से भी प्रायश्चित होता है, जिसमें स्वर्ण दान भी शामिल है।
प्रायश्चित पूजा का मतलब और भावना भी जान लीजिए
प्रायश्चित पूजा का आशय इस बात से भी है कि मूर्ति और मंदिर बनाने के लिए जो छेनी, हथौड़ी चली, इस पूजा में उसका प्रायश्चित किया जाता है और इसके साथ ही प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा कराई जाती है।
प्रायश्चित पूजाा के पीछे मूल भावना यह है कि यजमान से जितने भी तरीके का पाप जाने अनजाने में हुआ हो, उसका प्रायश्चित किया जाए। दरअसल, हम लोग कई प्रकार की ऐसी गलतियां कर लेते हैं, जिसका हमें अंदाजा तक नहीं होता, तो एक शुद्धिकरण बहुत जरूरी होता है। यही वजह है कि प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रायश्चित पूजा का महत्व बढ़ जाता है।
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