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आजमगढ़

जानिये मायावती अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र से आने वाले गुड्डू जमाली का क्यों बढ़ा रही हैं कद, क्या है प्लान

पूर्वांचल के ढह चुके किले को फिर से मजबूत करने तथा दलित के साथ ही मुस्लिम मतदाताओं को साधने की कोशिश में जुटी बसपा मुखिया मायावती ने मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले मुबारकपुर विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को विधान मंडल का नेता बनाया है। कारण कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी के पार्टी छोड़ने के बाद बसपा के पास कोई बड़ा मुस्लिम नेता नहीं बचा था। मायावती को भरोसा है कि जमाली इस खालीपन को भरने के साथ ही मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने में सफल होंगे।

आजमगढ़Jun 06, 2021 / 08:58 pm

रफतउद्दीन फरीद

प्रतीकात्मक फोटो

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. लगातार हार और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की भीतरघात से परेशान मायावती के लिए क्या गुड्डू जमाली ट्रंप कार्ड साबित होगें?, क्या वे वर्ष 2007 की तरह मुस्लिम मतदाताओं को पार्टी के तरफ लामबंद कर पाएंगे। ऐसे कई सवाल है जो राजनीतिक हलके में चर्चा का विषय बने हुए हैं। वैसे मायावती के इस दाव ने कम से कम सपा को बेचैन कर दिया है। कारण कि पूर्व मंत्री आजम खां के अस्वस्थ होने के बाद पार्टी में ऐसा कोई मुस्लिम चेहरा नहीं है जो मुलसमानों पर अपना प्रभाव छोड़ सके। वहीं मायावती जमाली को प्रोन्नति देकर कहीं न कहीं नसीमुद्दी सिद्दीकी की कमी को भरने की कोशिश की है। यह दाव कितना सफल होगा यह तो 2022 में पता लगेगा लेकिन माहौल दिलचस्प हो गया है।

बता दें कि सपा के पास यादव तो बसपा के पास दलित वोट बैंक हैं लेकिन इनकी संख्या इतनी नहीं है कि अकेले दम पर युपी की सत्ता दिला सके। मुलायम सिंह ने हमेंशा ही एम-वाई फैक्टर के जरिये सत्ता हासिल की। वर्ष 2007 में मायावती ने मुसलमानों को अपने पक्ष में कर पूर्ण बहुमत हासिल किया था लेकिन बटला एनकाउंटर के बाद आजमगढ़ व आसपास के जिलों में मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी के बाद मुसलमान बसपा से नाराज हो गया। वर्ष 2012 के चुनाव में सपा ने इसका फायदा उठाया और सपा मुखिया मुलायम सिंह ने गिरफ्तार युवकों की रिहाई का वादा कर मुसलमानों का वोट एक मुश्त हासिल किया और अखिलेश यादव सीएम बन गए।

वर्ष 2016 में समाजवादी परिवार में रार के बाद परिस्थितियां तेजी से बदली है। मुलायम सिंह के बीमार होने के बाद अखिलेश के पास कोई बढ़िया रणनीतिकार नहीं बचा। शिवपाल ने अपनी अलग पार्टी बना ली है। पार्टी के मुस्लिम चेहरा रहे आजम खान अब अस्वस्थ है। जो पार्टी के एक मात्र बड़ा मुस्लिम चेहरा था। मुसलमानों को सपा के पक्ष में लामबंद करने में इनकी हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पूर्व मंत्री अहमद हसन पार्टी के वरिष्ठ नेता जरूर है लेकिन इनका अपना जनाधार नहीं है।

वर्ष 2017 के चुनाव में बीजेेपी को मुस्लिम मतदाताओं के बिखराव का फायदा मिला और पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल रही। यह बात सपा बसपा को अच्छी तरह पता है कि अगर उन्हें सत्ता हासिल करनी है तो एक मुश्त मुस्लिम वोट हासिल करना होगा। कारण कि अदर बैकवर्ड पंचायत चुनाव में भी बीजेपी के साथ नजर आया है। प्रदेश में 100 से अधिक सीटें ऐसी है जिसे मुस्लिम मतदाता सीधे प्रभावित करता है। पूर्वांचल में ऐसी सीटों की संख्या 40 से 50 है।

बसपा का लालजी वर्मा को हटाकर अखिलेश यादव के संसदीय क्षेेत्र आने वाले विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को विधानमंडल का नेता बनाना बड़ा दाव माना जा रहा है। कारण कि जमाली पिछले दो चुनाव में यहां सपा को नुकसान पहुंचाते रहे है। वहीं उनके पास अकूत संपत्ति भी है। पूर्वांचल ही नहीं गाजियाबाद और नोएडा जैसे जिलों में भी उनकी गहरी पैठ है। यानि कि वे पूरब से लेकर पश्चिम तक मस्लिम मतदाताओं को प्रभावित कर सकते है।

आजम खान को छोड़ दिया जाय तो सपा में कोई जनाधार वाला मुस्लिम नेता नहीं है। ऐेसा नहीं है कि पार्टी में मुस्लिम आया नहीं केवल आजमगढ़ में नफीस अहमद, आलमबदी सपा से विधायक है लेकिन गुटबंदी के चलते कभी इन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला। जमाली की प्रोन्नति से सपा की टेंशन बढ़नी तय है। कारण कि बाटला का जिन्न जिस तरह से बंगाल के चुनाव में सामने आया वैसे ही यूपी के चुनाव में भी यह फिर मुद्दा बन सकता है। अगर बसपा शासनकाल में मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी का दर्द लोगों के दिल में है तो सपा द्वारा युवाओं को रिहा करने का वादा पूरा न करने की कसक भी है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मायावती के तुरूप का इक्का काम आता है अथवा अखिलेश यादव की रणनीति।

BY Ran vijay singh

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