बता दें कि वर्ष 2007 तक दीदारगंज विधानसभा सुरक्षित थी। इसे सरायमीर के नाम से जाना जाता था। इसके बाद हुए परिसीमन में वर्ष 2012 में नाम बदलकर दीदारगंज कर दिया गया। साथ ही इसे सुरक्षित से अनारक्षित कर दिया गया। सामान्य होने के बाद सपा और बसपा के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिला था। सपा के आदिल शेख ने इस सीट से जीत हासिल की थी। उन्होंने बसपा के कद्दावर नेता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर को करीब 2700 मतों से पराजित किया था।
इसके बाद वर्ष 2017 के चुनाव में भी दोनों ही प्रत्याशियों के बीच मुकाबला देखने को मिला लेकिन बाजी सुखदेव राजभर के हाथ लगी थी। सपा के आदिल शेख को हार का सामना करना पड़ा था। सपा वर्ष 2022 में इस सीट को किसी भी हालत में जीतना चाहती है। सपा से पूर्व विधायक आदिल शेख, पूर्व मंत्री राम आसरे विश्वकर्मा, पूर्व मंत्री डा. राम दुलार राजभर दावेदारी कर रहे थे। इस सीट मुस्लिम और राजभर मतदाता सर्वाधिक हैं इसलिए टिकट की लड़ाई सीधे तौर पर रामदुलार और आदिल शेख के बीच थी लेकिन परिस्थिति तब बदली जब दो माह पूर्व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने अखिलेश को पत्र लिखकर उन्हें पिछड़ों का सबसे बड़ा नेता करार दिया और अपने पुत्र कमलाकांत को सपा में शामिल करने की बात कही।
कमलाकांत इस उम्मीद से सपा में शामिल हुए कि उन्हें टिकट मिलेगा। इसी बीच सुखदेव राजभर का निधन होने से यह सीट खाली हो गयी। सपा ने सुभासपा से गठबंधन कर लिया। चुंकि इस विधानसभा में 70 हजार राजभर वोट है इसलिए ओमप्रकाश भी इस सीट की डिमांड कर रहे हैं। अब सपा के सामने दुविधा की स्थिति है। कमलाकांत के साथ पिता के निधन की वजह से सहानुभूति हैं। वहीं तीन दावेदार पहले से मौजूद हैं। अगर पार्टी सीट सुभासपा को देती है तो कमलाकांत सहित चारों की दावेदारी समाप्त हो जाएगी। नहीं देते हैं तो भी पार्टी के तीन दावेदार नाराज होंगे।
बसपा ने बाहुबली भूपेंद्र सिंह मुन्ना को मैदान में उतार ऐसे भी विपक्ष की मुश्किल बढ़ा दी है। वर्ष 2012 में अगर आदिल शेख चुनाव जीते थे तो उसमें मुन्ना का बड़ा योगदान था। अब मुन्ना खुद मैदान में हैं। वहीं बीजेपी से कृष्ण मुरारी विश्वकर्मा का लड़ना तय माना जा रहा है। कांग्रेस भी किसी पिछड़ी जाति के नेता को उम्मीदवार बना सकती है। एसे में सपा के सामने बिकट स्थिति उत्पन्न हो गयी है। अपनों की नाराजगी पार्टी पर भारी पड़ सकती है।