scriptInnovation-पिता-पुत्र दे रहे माटी कला को नया आयाम | Innovation- Father and son are giving a new dimension to clay art | Patrika News
बालाघाट

Innovation-पिता-पुत्र दे रहे माटी कला को नया आयाम

गुम होती माटीकला को फिर से जीवित रखा जा रहा है। बेटे के तकनीकी ज्ञान को पिता ने पैत्रक कला में समाहित किया। माटी कला को नया आयाम देकर नवाचार किया है। घरेलू उपयोग के मिट्टी के बर्तन तैयार किए और कर रहे है। बालाघाट. गुम होती माटीकला को फिर से जीवित रखा जा रहा […]

बालाघाटJun 07, 2024 / 09:32 pm

Bhaneshwar sakure

माटी कला को नया आयाम

बर्तनों में रंग-रोगन करता कुम्हार

गुम होती माटीकला को फिर से जीवित रखा जा रहा है। बेटे के तकनीकी ज्ञान को पिता ने पैत्रक कला में समाहित किया। माटी कला को नया आयाम देकर नवाचार किया है। घरेलू उपयोग के मिट्टी के बर्तन तैयार किए और कर रहे है।
बालाघाट. गुम होती माटीकला को फिर से जीवित रखा जा रहा है। बेटे के तकनीकी ज्ञान को पिता ने पैत्रक कला में समाहित किया। माटी कला को नया आयाम देकर नवाचार किया है। घरेलू उपयोग के मिट्टी के बर्तन तैयार किए और कर रहे है। घरेलू उपयोग के एक कप से लेकर प्रेशर कुकर, फ्राई पेन जैसे बर्तन तैयार कर चुके है। दैनिक उपयोग के 100 प्रकार से अधिक उपयोग के बर्तनों का निर्माण कर उसे विक्रय भी कर चुके है। सेहत, स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में जनपद पंचायत कटंगी के ग्राम कटेरा के कुम्हार पिता-पुत्र अभिनव प्रयास कर रहे हैं।
जानकारी के अनुसार कटेरा गांव के निवासी मुरलीधर टरंडे (47) का परिवार पिछले 5 पीढिय़ों से मिट्टी से मटके जैसी आवश्यक सामग्री बनाते चले आ रहे हैं। लेकिन पिछले 7 से 8 वर्षों से उनके सुपुत्र हितेश ने भी अपने पैतृक कार्य को एक नए स्वरुप देने का प्रयास किया है। आज हितेश के तकनीकी ज्ञान को पिता ने पैतृक कला में समाहित करते हुए मिट्टी के बर्तनों पर नवाचार कर रहे है। वर्तमान में पिता-पुत्र ने मिलकर करीब 100 तरह के मिट्टी के बर्तन बना चुके हैं और बना रहे है। इसमें धार्मिक मूर्तियां भी शामिल है।
ऋण लेकर शुरु किया लघु उद्योग
पिता-पुत्र ने बताया कि इस उद्योग को संचालित करने के लिए उन्होंने ऋण लिया। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से 5 लाख रुपए का ऋण मिलने के बाद उन्होंने इसे लघु उद्योग का रुप से दिया है। स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी कर चुके हितेश टरंडे ने कहा कि आधुनिक समाज धातुओं के बर्तनों का मजबूरी में उपयोग कर रहें है। उनके पास अच्छे विकल्प नहीं है। इस कारण वे चाहते हुए भी धातुओं के बर्तनों से रसोईघर में भोजन पका रहें है। हमने यही प्रयास किए है कि उन्हें मिट्टी के रूप में विकल्प प्रदान करें। आज हम अपने इस कार्य में सफल भी हो रहे है।
प्रेशर कुकर में कर रहे लगातार प्रयोग
मुरलीधर टरंडे के अनुसार उन्हें पिता टोलूराम टरंडे से यह कला विरासत के रुप में मिली है। इस कला को अब अनोखा रुप दे रहे है। 8 वर्ष पूर्व मिट्टी के हेंडल वाला कुकर बनाया था। इसकी काफी लोकप्रियता के बाद कई गृहणियों ने सुझाव दिए थे। उसके अनुसार अब मिट्टी के हेंडल वाला कुकर भी बनाने में सफलता मिली हैं। अब मिट्टी के ढक्कन वाले कुकर के प्रयास प्रारंभ कर दिए है। इसमें ढक्कन कुकर के ऊपर लगाने का प्रयास किया गया है। अब तक करीब 1500 से 2000 कुकर बिक चुके हैं।
यूट्यूब से हासिल की तकनीकी जानकारी
हितेश ने बताया कि विभिन्न वेबसाइट पर मिट्टी के अलग-अलग स्वरुपों के आधार पर बनने वाले बर्तनों की जानकारी यूट्यूब पर देखी। इसके बाद उसे व्यवहारिक रुप दिया है। उन्होंने बताया कि बर्तन बनाने में वे साडू नामक मिट्टी, नार्मल और पत्थर रेत वाली मिट्टी का उपयोग करते हैं। इन मिट्टियों से 100 से अधिक प्रकार के बर्तन और मूर्तियां बना रहे है। इसमें अभी फ्राई पेन नवीनतम प्रयोग किया है। इसके अलावा कुकर, कढ़ाई, तवा, जग, ग्लास, चाय के लिए कप बसी, केटली, थाली, वॉटर जग, पानी की टंकी, पानी की बोतल पिछले 7 से 8 वर्षों से बनाने में लगे है।
अन्य राज्यों में बढ़ रही डिमांड
हितेश ने बताया कि उनके पास मिट्टी के बर्तन के ऑनलाइन ऑर्डर भी आते हैं। वहीं जिन लोगों तक जानकारी मिली है, वे घर आकर मिट्टी के बर्तनों की बनावट देखने और खरीदारी के लिए आने लगे है। अन्य राज्यों में मिट्टी के बर्तनों की डिमांड बढ़ रही है। बीते कुछ दिनों पूर्व यूपी के अयोध्या के एक परिवार ने रसोईघर का पूरा सेट खरीदा है। इसके अलावा नागपुर, खजुराहों और जबलपुर के नागरिकों में भी खूब लोकप्रियता मिली है। इन बर्तनों की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सीजन के एक माह में करीब 20 से 25 हजार रुपए की बिक्री हो जाती है।
स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है मिट्टी के बर्तन
मिट्टी के बर्तन ही आदि मानव का पहला प्रयोग रहा है। आज धातुओं की उपलब्धता से हर घर में धातुओं के बर्तन मिल जाते है। हर इंसान के लिए प्राकृतिक रुप से आयरन, कैल्शियम, सल्फर, फॉस्फोरस, पोटेशियम, जिंक सहित कई नेचुरल तत्वों की जरूरत होती है। जो हमें मिट्टी के बर्तनों में आसानी से प्राकृतिक रुप में मिल जाते है। मिट्टी के बर्तनों के उपयोग से प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को कम किया जा सकता है। मिट्टी के बर्तनों में पके भोजन ग्रहण करने से कब्ज, गैस, अपच जैसी समस्या से राहत मिलती है।

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