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बालाघाट

कर्ज के बोझ तले किसान ने की खुदकुशी, सरकार ने नहीं किया कर्ज माफ, तीन बच्चों ने छोड़ी पढ़ाई

मौत को गले लगाने वाले किसान के परिवार को साहूकारों से कौन बचाएगा सरकार?

बालाघाटSep 06, 2019 / 02:57 pm

Muneshwar Kumar

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बालाघाट/ मध्यप्रदेश में सरकार कर्जमाफी को लेकर खूब दावे किए हैं। कर्ज के बोझ तले प्रदेश में कई किसानों ने खुदकुशी कर ली। इन किसानों पर बैंकों के साथ-साथ साहूकारों के भी कर्ज थे। हम आपको अपने #KarjKaMarj सीरीज में बालाघाट के एक किसान परिवार की कहानी बताएंगे। किसान ने कर्ज के बोझ तले दो साल पहले खुदकुशी कर ली। लेकिन परिवार पर कर्ज आज तक माफ नहीं हुआ है।
बैंकों से लिए गए कर्ज को माफ करने के वादे के बाद कमलनाथ की सरकार ने साहूकारों के कर्ज को माफ करने का फैसला किया है। लेकिन आज भी जो इसके वाजिब हकदार हैं। उन तक यह योजना पहुंची ही नहीं है। कर्ज के बोझ तले किसान ने खुदकुशी कर ली लेकिन परिवार आज भी नारकीय जिंदगी जी रही है। न घर में खाने को अनाज हैं और न बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसे। ऐसे मृतक किसान के परिवारों की स्थिति काफी बदहाल हो गई है।
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बालाघाट के एक किसान के बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी। रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है। बावजूद इसके न तो प्रशासन ने कोई मदद की और न ही पूर्व में दिए गए आश्वासन पर कोई अमल किया गया। अब जनप्रतिनिधि भी पीड़ित परिवार का दर्द बांटने के लिए नहीं पहुंच रहे हैं। आलम यह है कि मृतक किसानों का परिवार अब बदहाली का जीवन जी रहा है। आर्थिक तंगी उन्हें और ज्यादा परेशान कर रही है। विडम्बना यह है कि प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को कर्ज से मुक्ति के लिए बनाए गए नए नियम के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है।
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3 दिसंबर 2017 को की थी खुदकुशी
जनपद पंचायत बालाघाट के ग्राम पंचायत नैतरा निवासी शांतिलाल सौलखे ने कर्ज के बोझ तले 3 दिसम्बर 2017 को आत्महत्या कर ली थी। शांतिलाल सौलखे के उपर चार लाख रुपए से अधिक का कर्ज था। जिसमें बैंक, सोसायटी के अलावा साहूकारों का कर्जा भी शामिल है। निधन के बाद सोसायटी का करीब 40 हजार रुपए का ही केवल कर्जा माफ हो पाया है। बाकी अभी भी कर्जा बरकरार है।
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तीनों बेटों की छूट गई पढ़ाई
मृतक किसान के तीन पुत्र हैं। तीनों पुत्रों ने पढ़ाई छोड़ दी है। बड़े पुत्र ने 8वीं, मंझले पुत्र ने चौथी और सबसे छोटे पुत्र ने तीसरी के बाद से पढ़ाई छोड़ दी है। बड़ा पुत्र परिवार की आय के लिए अन्यत्र नौकरी कर रहा है। जबकि मंझला और छोटा पुत्र, मां के साथ हाथ बंटा रहे हैं। मृतक किसान की पत्नी एक बगीचे में काम कर परिवार का भरण पोषण कर रही है।
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भागवंती सौलखे बताती है कि घटना के बाद से उनकी स्थिति काफी बदतर हो गई है। उनका कोई कर्जा माफ नहीं हुआ है। घर की खेती, जेवरात सहित अन्य सामग्री कर्जा चुकाने के लिए पहले ही उनके पति बेच चुके थे। आर्थिक तंगी के चलते बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी। भाई भक्त प्रहलाद सौलखे बताते है कि कर्जा माफ करने, मुआवजा दिए जाने अनेक बार प्रशासन को आवेदन दिया गया। लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया। आज भी पीडि़त परिवार बदहाली में जीवन जी रहा है।
जाहिर है सरकारी घोषणाएं बाबूओं की दफ्तरों में बैठी है। दफ्तर से अधिकारी न निकल खुदकुशी करने वाले किसानों की सुध तक नहीं लेने जा रहे हैं। न ही सरकार के कर्जमाफी योजना का इन्हें लाभ दिलाव पा रहे हैं। परिवार के लोग दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते थक गए हैं। लेकिन इन्हें लाभ नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में सवाल है कि क्या सरकार इन्हें इनकी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया है।

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