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बालोद

आदिवासियों के बच्चों पर सितम, यहां पढऩे से ज्यादा लगता है मासूमों को जान जाने का डर

10 किमी दूर सुरडोंगर में स्थित आदिवासी बालक छात्रावास है, जिसकी स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि यहां रहने वाले छात्रों के लिए जान के लाले पड़ सकते हैं।

बालोदOct 16, 2017 / 11:58 am

Dakshi Sahu

balod
बालोद. केन्द्र और राज्य सरकार आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के विकास और वहां रह रहे आदिवासियों की उन्नति और प्रगति के लिए निरंतर विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रयासरत है, लेकिन इस सोच व योजनाओं को प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी ही पलीता लगाने में लगे हुए हैं। इसका जीता जागता नमूना डौण्डी नगर से लगभग 10 किमी दूर सुरडोंगर में स्थित आदिवासी बालक छात्रावास है, जिसकी स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि यहां रहने वाले छात्रों के लिए जान के लाले पड़ सकते हैं।
पूर्व में दुर्ग जिला तथा वर्तमान में बालोद जिला का एकमात्र आदिवासी विकासखंड डौंडी की हमेशा उपेक्षा की जाती है। इसका सबूत वर्ष 1973 से संचालित सुरडोंगर का आदिवासी बालक छात्रावास है। छात्रावास में कक्षा 6 वीं से 10 वीं तक अध्ययनरत कुल 25 बच्चे रहते हैं। अत्यंत जर्जर पूर्व छात्रावास भवन में बच्चों को 5 कमरों में व्यवस्थापन कर संचालित किया जा रहा था, लेकिन अत्यधिक जर्जर व कभी भी गंभीर दुर्घटना को देखते हुए दो साल इन बच्चों को समीप में ही शासन द्वारा रिजेक्टेड खपरैल युक्त पुराने जर्जर प्राथमिक शाला भवन के मात्र एक छोटे से कमरे में ठहराया गया है।
कमरे में रह रहे बच्चों को हमेशा यह भय बना रहता है कि जर्जर भवन कभी गिर न जाए। इस प्रकार बच्चें अपने जान जोखिम में डालकर रहने को मजबूर हैं। बच्चे एक तरह से घुटन भरे वतावरण में रहकर मानसिक प्रताडऩा का सामना कर रहे हैं। बच्चों के रहने के कमरे के साथ में प्राथमिक शाला संचालित किया जाता है, जिसका शौचालय अटैच है, जहां सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक कन्या प्राइमरी स्कूल के छात्राओं की कमरे से होकर लगातार आवाजाही से बालक छात्रावास के बच्चों को अध्ययन के समय ध्यान भटक जाने से पढ़ाई में कठिनाई होती है।
वनांचल ग्राम मरदेल, मगरदाह, जपकसा, कुजकन्हार, जिलेवाही, कांड़े, मरकाटोला के आदिवासी बच्चे छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। 20 बिस्तर वाले इस छात्रावास में वर्तमान में 25 छात्र रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। इस वर्ष 10-15 छात्रों के आवेदन और आए थे, लेकिन व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हे छात्रावास में रहने की अनुमति नहीं मिली। अधीक्षक कार्यालय भी जर्जर होने की वजह से अधीक्षक स्वयं जर्जर भवन में रहने के साथ साथ बच्चों के व्यवस्थापन के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। बिना छात्रावास भवन के शासन द्वारा जबरन नए-नए कुर्सी टेबल, बेड, अन्य सामग्री भिजवाया गया है, जिसे रखने के लिए जगह ही नहीं है।
नए भवन की जरूरत
इस संबंध में बच्चों से पूछे जाने पर एक स्वर में उन्होंने बताया कि नए भवन की अति आवश्यकता हो गई है। वर्तमान में रह रहे भवन की स्थिति अत्यंत जर्जर है, साथ ही शौचालय, स्नानागार व अन्य समस्याओं के लिए दिन या रात में पुराने छात्रावास जाने के समय रात में जहरीले कीडे-मकोड़ों की वजह से डर लगा रहता है। सहायक आयुक्त आरएस भोई ने बताया कि छात्रावास का निरीक्षण किया है।
भवन जर्जर होने के कारण एक प्राथमिक शाला भवन के कमरे वैकल्पिक व्यवस्था की गई है, साथ इस भवन की मरम्मत के लिए पिछले वर्ष राशि आंबंटित किया जा रहा था, लेकिन ग्रामीणों के अनुसार मरम्मत कर पश्चात नवीन भवन नहीं बनेगा, इसलिए वहां एक करोड़ की लागत से नवीन छात्रावास भवन के लिए प्रस्ताव भेजा जा चुका है। इसके मरम्मत के लिए प्रस्ताव भेज दिया गया है। आज ही वहां के अधीक्षक को अन्यत्र वैकल्पिक व्यवस्था के लिए किराए का भवन यथाशीघ्र उपलब्ध कराने आदेशित करता हूं। सरपंच मरकाम ने बताया कि छात्रावास के जर्जर भवन की लगातार शिकायत उच्चाधिकारियों, सांसद, कलक्टर, मुख्यमंत्री, सहायक आयुक्त से की जा चुकी है, लेकिन अब तक कोई पहल नहीं दिखाई पड़ रही है।
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