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बालोद

स्वतंत्रता दिवस विशेष : इस गांव के चार स्वतंत्रता सेनानियों का परिवार आज भी गुमनामी की जिंदगी बसर कर रहा है, नहीं मिला सम्मान

देश को आजाद कराने में जिन लोगों ने जल सत्याग्रह किया और 24 दिनों तक जेल की यातानाएं काटी उन्हें शासन प्रशासन ने बिसरा दिया। साल में दो बार जिला मुख्यालय में होने वाले आयोजन में भी उनके परिजनों की पूछपरख नहीं होती है। मान सम्मान को दूर की बात है उनके परिजन को भारत सरकार की ओर सम्मान निधि स्वतंत्रता संग्राम पेंशन भी नहीं दी जा रही है।

बालोदAug 14, 2019 / 10:31 pm

Chandra Kishor Deshmukh

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इस गांव के चार स्वतंत्रता सेनानियों का परिवार आज भी गुमनामी की जिंदगी बसर कर रहा है, नहीं मिला सम्मान

बालोद @ patrika. देश को आजाद कराने में जिन लोगों ने जल सत्याग्रह किया और 24 दिनों तक जेल की यातानाएं काटी उन्हें शासन प्रशासन ने बिसरा दिया। साल में दो बार जिला मुख्यालय में होने वाले आयोजन में भी उनके परिजनों की पूछपरख नहीं होती है। मान सम्मान को दूर की बात है उनके परिजन को भारत सरकार की ओर सम्मान निधि स्वतंत्रता संग्राम पेंशन भी नहीं दी जा रही है।
स्मृति स्थल को संरक्षित करने की मांग
इतना ही नहीं जिला प्रशासन गांव में स्थित सेनानी स्मृति गौरव स्थल को संरक्षित क्षेत्र घोषित नहीं कर पाया है। इसी के चलते लोगों को उनके स्वाधीनता आंदोलन में योगदान और संघर्ष गाथा की भी संपूर्ण जानकारी नहीं मिल पाई है। सेनानियों के परिजन और ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से मांग उनकी स्मृति स्थल को संरक्षित करने की मांग की है।
जल सत्याग्रह आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने किया था गिरफ्तार
जानकारी के मुताबिक सन 1930 में अंग्रेज सरकार द्वारा किसानोंं को पानी दिए बिना ही जल कर (लगान) के लिए मजबूर कर दिया था। इसी के विरोध में जल सत्याग्रह आंदोलन हुआ। इस आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ नारागांव के सुकालु राम, पीताम्बर, बिसाहू राम और सूरजु राम भी शामिल हुए थे। किसानों के आंदोलन को तितर-बितर करने अग्रेंजों ने 19 अक्टूबर 1930 को सभा में भगदड़ करा दिया। इसके बाद चारों लोगों को जेल भेज दिया गया। जेल में 24 दिनों तक रहे और 24 नवंबर 1930 को जेल से रिहा हुए। जेल से रिहा होने के बाद छत्तीसगढ़ के गांधी कहे जाने वाले पंडित सुंदर लाल शर्मा के साथ भी काम किए और अपने क्षेत्र में गांव-गांव जाकर लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जागरूक करने लगे। लोगों को जागरूक करने इन्होंने नाटक मंचन का भी सहारा लिया।
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तीन साल तक मिली 400 रुपए पेंशन
इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की मौत के बाद अविभाजित मध्यप्रदेश शासन ने भी परिवारों की सुध नहीं ली। शासन ने इन परिवारों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का प्रमाण पत्र दिया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सूरजु राम के नाती फेतु राम ने बताया कि मध्यप्रदेश शासन ने 1992 से पेंशन शुरू की और 1994 तक पेंशन दी गई। उस समय पेंशन की राशि मात्र 400 रुपए चार साल तक दी गई उसके बाद बंद कर दी गई।
मजदूरी कर गुजर बसर कर रहा परिवार
गांव के इन चार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवार को शासन से कुछ ही दिनों तक सहयोग मिला। इसके बाद शासन ने सहयोग व पेंशन देना भी बंद कर दिया और अब यह परिवार खेती किसानी व रोजी मजदूरी करके ही परिवार चलाने मजबूर है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से आज तक प्रदेश सरकार ने इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के परिवारों की सुध नहीं ली है। देश के आजादी के लिए 24 दिनों तक जेल की हवा खाने वालों को सभी ने भूला दिया।
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2015 में एक सेनानी के परिवार का हुआ था सम्मान
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुकालु राम के बेटे रेखलाल ने बताया कि सन 2015 में जिला प्रशासन ने जिला मुख्यालय बालोद में हुए स्वतंत्रता दिवस में सम्मान के लिए बुलाया था। उसके बाद तो सम्मान तो दूर किसी न तो कोई सुध ली और न ही कोई गांव आया।
शासन से नहीं मिला किसी तरह का सहयोग आपबीती बताते परिजन हुए भावुक
1994 में अंतिम पेंशन 700 रुपए मिली। यही हाल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. पीताम्बर के परिवार के साथ भी हुआ। उन्हें भी 2 सालों तक 400 रुपए प्रति माह पेंशन मिलती थी। बीते 12-13 साल से पेंशन बंद हो गया। वहीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुकालु राम व सुरजु राम को पेंशन किसी कारणवश नहीं मिल पाई, किसी को भी पता नहीं। सेनानियों के परिजनों ने बताया कि आज तक शासन से कोई सहयोग नहीं मिला। जबकि मध्यप्रदेश सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का प्रमाण पत्र भी दिया है। पर शासन-प्रशासन से कोई अन्य सहयोग या सम्मान नहीं मिला। परिजनों ने कहा कि जिन्होंने देश की आजादी में भाग लिया ऐसे सेनानी और परिजन और गुमनामी की जिदंगी जी रहे हैं।
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