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बालोद

उपेक्षा से आदिकालीन जीवन जीने को मजबूर ग्रामीण परेशानियां दूर करने के आवेदनों ने तोड़ा फाइलों में दम

घने जंगल और सुदूर वन मार्ग होने की वजह से खरखरा जलाशय के पास बसा, डौंडीलोहारा ब्लॉक का ग्राम राहटा के वासी आदिमानव के समय का जीवन जीने को मजबूर हैं। अधिकारियों की बात छोड़ो, जनप्रतिनिधि भी यहां की स्थिति को जानने नहीं पहुंचे।

बालोदJan 16, 2019 / 12:23 am

Chandra Kishor Deshmukh

balod patrika

उपेक्षा से आदिकालीन जीवन जीने को मजबूर ग्रामीण परेशानियां दूर करने के आवेदनों ने तोड़ा फाइलों में दम

बालोद @ patrika . काश पहले ही जिम्मेदार अधिकारी गांव की समस्याओं के प्रति ध्यान देते हुए जिम्मेदारी निभाते, तो कब से यहां सुविधाएं बहाल हो जाती। ग्रामीणों ने परेशानियां दूर करने के लिए कई बार ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत सहित जिला प्रशासन में आवेदन दिए, पर किसी जिम्मेदार ने झांका तक नहीं।
इसलिए घने जंगल और सुदूर वन मार्ग होने की वजह से खरखरा जलाशय के पास बसा, डौंडीलोहारा ब्लॉक का ग्राम राहटा के वासी आदिमानव के समय का जीवन जीने को मजबूर हैं। अधिकारियों की बात छोड़ो, जनप्रतिनिधि भी यहां की स्थिति को जानने नहीं पहुंचे।
गांव का नाम हर जुबान पर
वन क्षेत्र का ये गांव उस समय चर्चा में आया जब पत्रिका के प्रकाशित समाचार में यहां की बेटियां पीपे की नाव के सहारे जलाशय पार कर स्कूल जाने की बात शासन-प्रशासन तक पहुंचाई गई। उसके बाद जिला सहित प्रदेश भर में ग्राम राहटा की स्थिति पता चली और उक्त गांव का नाम हर की जुबान पर आ गया। यहां तक इस सुदुर गांव में कलक्टर सहित जिला प्रशासन के आला अधिकारी भी दौड़े-दौड़े पहुंचे। जहां पता चला इस गांव में सिर्फ एक ही समस्या नहीं है, यह गांव हर तरफ से उपेक्षित है।
चौपाल में पता चला आज तक नहीं पहुंचा यहां कोई जिम्मेदार
जिला प्रशासन की जब गांव में चौपाल लगी, तो पता चला कि यहां के वासी समस्याएं दूर करने जिम्मेदारों को अनेक आवेदन दिए पर आज तक यहां कोई भी जनप्रतिनिधि व अधिकारी नहीं पहुंचा। इस गांव की समस्या आदिमानव सा जीवन जीने को मजबूर करता है। कलक्टर को बताया गया कि आला अधिकारी भी यहां की परेशानियां जानते थे, पर भी ग्रामीणों के आवेदन फाइलों में ही दम तोड़ दिया।
ताज्जुब की बात ये कि बाढ़ नियंत्रण की सूची में नहीं डुबान क्षेत्र के गांव का नाम
जिले के सबसे बड़े अधिकारी किरण कौशल को भी ताज्जुब हुआ कि खरखरा जलाशय का यह डुबान छेत्र का गांव हर साल बारिश के दिनों में टापू बन जाता है, पर भी बाढ़ नियंत्रण की हर साल बनने वाली सूची में इस गांव का नाम ही नहीं है। जबकि यहां के लोग राशन लेने, पढ़ाई करने वाले बच्चे पीपे की नाव से स्कूल जाने को मजबूर हैं। इन गंभीर समस्याओं को लेकर जानकार यहां के अधिकारी मौन रहे और इन्ही वजह से यहां के वासियों को आदिकालीन जीवन जीने को मजबूर हैं।
अब जाकर मिली गांव को ये सुविधाएं
समाचार प्रकाशन के बाद जिला प्रशासन की सक्रियता की वजह से अब इस गांव की बेटियों को पढ़ाई करने पीपे की नाव चलाकर नहीं बल्कि नगर सेना के जवान स्कूल ले जा रहे हैं। यही नहीं कुछ दिनों बाद जिला प्रशासन इन ग्रामीणों को पतवार वाली नाव भी उपलब्ध कराएंगे।
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पेंशन लेने के लिए गांव से 7 किमी दूर पैदल नहीं जाना पड़ेगा
ग्राम राहटा से ग्राम रायगढ़ तक सड़क बनाने का काम शुरू करवा दिया गया। इसके लिए अभी सर्वे किया जा रहा है। साथ ही इस मार्ग में पडऩे वाले नदी-नालों में पुल-पुलिया के निर्माण के लिए प्रस्ताव बनाने के आदेश दिए गए हैं। इधर इस गांव के वृद्धों को पेंशन लेने के लिए गांव से 7 किमी दूर पैदल नहीं जाना पड़ेगा, इसके लिए व्यवस्था के तहत गांव में ही बुजुर्गों का पेंशन आएगा।
टीकाकरण के लिए गांव में आएगी चिकित्सकों की टीम
नवजात बच्चों को टीका लगाने गांव से 7 किमी दूर मडिय़ाकट्टा नहीं जाना पड़ेगा। अब यहींं चिकित्सकों की टीम आएगी। साथ ही गर्भवतियों को भी रेडी टू इट गांव में ही मिलेगा। पहले विभाग की टीम गांव दूर है कह कर नहीं आते थे। जिस गांव में पहले वर्षों से ढेरों समस्या पांव पसारे हुए थी, वहीं मीडिया की पहल ने इस गांव की कई समस्याओं को सप्ताह भर में दूर कर दिया है। अन्य परेशानियों दूर करने प्रक्रिया जारी है।

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