202 जर्जर भवनों में बच्चे गढ़ रहे भविष्य, एक मात्र नदी को नहीं संभाल पाया प्रशासन
प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह गुरुवार को जिले में पहुंच रहे हैं। यहां वे जनता को अपने कार्यकाल में किए विकास की गाथा बताएंगे।

बालोद. प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह गुरुवार को जिले में पहुंच रहे हैं। यहां वे जनता को अपने कार्यकाल में किए विकास की गाथा बताएंगे। दावा किया जाएगा कि 14 साल में जनता को सारी सुविधाएं दी जा चुकी हैं। पर जमीनी हकीकत कुछ और कह रही है। बाहर से जिले में विकास दिखता है, पर शासन-प्रशासन व अधिकारियों, कर्मचारी के लापरवाही कहें या अनदेखी जिसकी वजह से जहां तक सुविधाएं पहुंचनी थी वह नहीं पहुंच पाई है, जिसकी आस 14 साल पहले से थी और आज भी है। जो अधिकारी आए वो अपने तरीके से दिखावे में रमे रहे।
तांदुला नदी की स्थिति दयनीय
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण जिला मुख्यालय की जीवनदायिनी तांदुला नदी है। जिला तो बन गया पर बालोद को पालने वाली नदी की स्थिति दयनीय होती चली गई। दूसरी ओर भविष्य गढऩे वाले स्थान शिक्षा का मंदिर दर्जनों स्कूल भवनों की स्थिति को अब तक सुधारा नहीं जा सका है। कमजोर, जर्जर भवनों में किसी अनहोनी हो जाने के खतरे के बीच बच्चे पढ़ाई करने को मजबूर हैं। पर इस ओर किसी जिम्मेदार ने तत्परता नहीं दिखाई।
दिव्यांग स्कूल हो गया बंद
जिले के कई ऐसे पुल-पुलिया है जो दो दशक से हर बारिश में जन-जीवन अस्त-व्यस्त कर देता है। नालों में दशकों पहले बनाए पुल-पुलिया कमजोर व काफी नीचे हो गए हैं। जहां पर पुल बनाने की मांग पर कोई पहल नहीं की जा सकी है। अस्पताल में अब तक पूरा सेटअप तैयार नहीं किया जा सका है। जिले का एकमात्र दिव्यांग स्कूल को भी सरकार नहीं संभाल पाई और बंद हो गया।
दान के भरोसे दिव्यांग बच्चे भविष्य गढ़ रहे थे, पर प्रशासन सहयोग में भी बाधा बना
दुख की बात है कि ग्राम कचांदुर में संचालित जिले का एक मात्र दिव्यांगों का आवासीय विशेष प्रशिक्षण केंद्र को भी शासन संभाल नहीं पाया। संचालन के लिए दान का सहारा था, पर शासन से राशि का सहयोग नहीं मिल पाया। इसआभाव में इस केंद्र में ताला लगाना पड़ा। यहां के बच्चे घर बैठ गए। पर आज जिले में पहुंच रहे मुख्यमंत्री से फिर उम्मीद लगाई जा रही है कि दिव्यांग बच्चों के प्रशिक्षण केंन्द्र को पुन: संचालित करने की घोषणा की जाएगी। बता दें कि इस विशेष प्रशिक्षण केंद्र में 22 दिव्यांग बच्चे जिसमें कई नेत्रहीन हैं जो यहां रहकर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे। इस केंद्र की उपेक्षा ऐसे हुई कि जिला प्रशासन के पत्र को भी सरकार ने अनदेखी कर दी।
इस सत्र भी सैकड़ों बच्चे खतरों के बीच करेंगे पढ़ाई
पत्रिका को जिला शिक्षा विभाग से मिले आंकड़े काफी चौकाने वाला है। बता दें कि जिले में कुल 1485 शासकीय स्कूल हैं जिसमें से 202 प्राथमिक व माध्यमिक स्कूल भवन जर्जर हैं। जिसमें से 90 स्कूल ऐसे हैं जिसकी स्थिति बेहद दयनीय हो चुकी है। जिले के107 स्कूल तो ऐसे हैं जहां बारिश के दिनों में सबसे ज्यादा परेशानी होती है। इन स्कूलों की छत ही कमजोर है। बारिश में छत से पानी रिसता है। मिली जानकारी के मुताबिक शिक्षा विभाग इन स्कूलों की सूची मांगकर मरम्मत के लिए राज्य शासन को भेजी है, पर विडंबना है कि सालभर बाद भी शासन इस ओर ध्यान नहीं दिया।
सबसे अधिक जर्जर स्कूल भवन डौंडीलोहारा ब्लॉक में
शिक्षा के प्रथम स्तर सबसे दयनीय स्थिति प्राथमिक शालाओं के भवनों की है। जिले में कुल 1485 स्कूल है जिसमें 202 चिन्हांकित जर्जर स्कूलों में मात्र 36 माध्यमिक स्कूल हैं। बाकी 166 स्कूल प्राथमिक के हैं। 107 भवनों में छत जर्जर हो गया है। बताया जाता है कि बारिश के दिनों में तो कई स्कूलों की छत से पानी टपकने के कारण कक्षा में बैठकर पढ़ाई भी नहीं कर पाते। मिले आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा जर्जर भवन डौंडीलोहारा ब्लॉक में मिले हंै। यहां लगभग 76 स्कूल ऐसे हंै जिसका भवन कमजोर हो चुका है। स्थिति सुधारने जानकारी 2 साल पहले से दे दिए गए हैं।
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